चैत्र शुक्ल १ (९ अप्रैल २०२४)
हिन्दू नवसंवत्सरारंभ कहते ही आते हैं … ब्रह्मध्वज पूजन, रंगोली, आकर्षक वेशभूषा, मीठे व्यंजन, भगवा ध्वज तथा सबसे महत्त्वपूर्ण होती हैं नववर्ष की शुभकामनाएं ! जी हां, हिन्दू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
जैसे हिन्दुओं का कोई भी त्योहार मौज-मस्ती का विषय नहीं, अपितु मंगलता, पवित्रता, चैतन्य एवं आनंद का समारोह है, वैसे ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भी है ! इसकी एक और विशेषता यह है कि यह काल का प्रत्यक्ष भान कराकर जीव को अधिकाधिक अंतर्मुख बना देता है ! इस प्रकार से अंतर्मुख जीव ईश्वर की ओर अधिकाधिक खींचा जाता है !
जब नए वर्ष का संबंध आता है, तब स्वाभाविक ही काल का भी संबंध आता है । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की धार्मिक कृतियों में इसीलिए अभ्यंगस्नान करते समय ‘देशकालकथन’ करने के लिए कहा गया है । यह देशकालकथन न केवल प्राचीन हिन्दू संस्कृति की महानता से हमें अचंभित करा देता है, साथ ही इस अतिप्रचंड काल की पृष्ठभूमि पर हमारे सूक्ष्मतम अस्तित्व का भान भी कराता है !
‘ब्रह्माजी के जन्म से लेकर अभी तक ब्रह्माजी के कितने वर्ष हुए ? किस वर्ष का कौनसा मन्वंतर चल रहा है ? इस मन्वंतर का कौनसा महायुग तथा कौनसा उपयुग चल रहा है ?’, इन सभी का उल्लेख ‘देशकालकथन’ में होता है ।
इन त्योहारों के विषय में जानकारी हेतु पढें – सनातन का ग्रंथ ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’
ब्रह्मध्वज की स्थापना के समय की जानेवाली सामूहिक प्रतिज्ञा एवं प्रार्थनाचैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिन्दुओं की सफलता और विजयोत्सव का दिन है । इस शुभमुहूर्त पर की गई प्रतिज्ञा (संकल्प) एवं प्रार्थना फलीभूत होती है; इसलिए यह प्रतिज्ञा और प्रार्थना करें । प्रतिज्ञा १. ‘हम समस्त हिन्दू इस शुभमुहूर्त पर केवल भारत में ही नहीं, अपितु संपूर्ण पृथ्वी पर हिन्दू धर्म प्रस्थापित कर अखिल मानवजाति के लिए सुसंस्कृत एवं सुख-समृद्धि से युक्त जीवन प्रदान करने का निश्चय करते हैं । २. हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए हम सदैव ही ढाल बनकर खडे होंगे । ३. व्यष्टि साधना अर्थात नामजप आदि धर्माचरण करेंगे और समष्टि साधना अर्थात राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा कर हिन्दू धर्म की ध्वजा संपूर्ण विश्व में फहराएंगे ।’ ऐसी हम ब्रह्मध्वज के सामने प्रतिज्ञा करते हैं । प्रार्थना ‘हे ब्रह्माजी एवं हे प्रतिपालक श्रीविष्णु, इस ब्रह्मध्वज के माध्यम से वातावरण में विद्यमान प्रजापति, सूर्य एवं सात्त्विक तरंगें हम ग्रहण कर पाएं । उनसे मिलनेवाली शक्ति में विद्यमान चैतन्य हममें निरंतर बना रहकर उस शक्ति का उपयोग हमारे द्वारा साधना हेतु, साथ ही राष्ट्र एवं धर्म के कार्य के लिए किया जाए, यही आपके चरणों में प्रार्थना है !’ |