‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की कृपा से ‘सनातन के साधक आनंद में रहनेवाले जीव हैं, इसकी प्रतीति लेनेवाले समाज के विभिन्न व्यक्ति !

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कहा है, ‘‘साधना आनंदमय जीवन जीने के लिए है । ‘गुरुकृपायोग’ अनुसार साधना करने से मोक्ष अर्थात आनंद प्राप्त होगा ।’’ वर्ष २००५ में मैं कार्यालयीन काम से मद्रास अर्थात चेन्नई गया था, तब गुरुकृपा से मुझे ‘सनातन का साधक आनंद में रहनेवाला जीव है’, इसकी प्रतीति हुई । चेन्नई में साधक श्री. काशिनाथ शेट्टी अध्यात्मप्रसार की सेवा कर रहे थे । उस समय मैं उनसे पहली बार ही मिलनेवाला था । मेरा उद्देश्य था कि ‘चेन्नई स्थित मेरे संपर्क के व्यक्तियों से धर्मकार्य हेतु सहयोग तथा अर्पण मिलेगा तथा उसके उपरांत श्री. काशिनाथ शेट्टी उन लोगों के संपर्क में बने रहेंगे ।’

सनातन संस्था : आनंदमय जीवन का मार्ग !

 

पू. शिवाजी वटकरजी को जो अनुभूति हुई, वैसी अनुभूति अब तक किसी को नहीं हुई है । इतनी अनुपम अनुभूति के लिए पू. शिवाजी वटकरजी की जितनी प्रशंसा की जाए, अल्प ही है !

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी (२५.९.२०२३)

१. श्री. काशिनाथ शेट्टी को कार्यालय में आमंत्रित करना, कार्यालय में अनेक लोग होना तथा ‘कार्यालय में मैं किस अधिकारी के सामने बैठूंगा’ यह ज्ञात न होने से उस संदर्भ में श्री. काशिनाथ को न बता पाना

मैं जहां नौकरी करता था, उस ‘शिपिंग कार्पाेरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड’ प्रतिष्ठान का कार्यालय ‘मद्रास पोर्ट ट्रस्ट’ नामक बंदरगाह पर था । वहां पहली मंजिल पर बडे सभागार जैसे स्थान पर सभी कर्मचारी बैठे हुए थे । वहां जहाज पर कार्यरत तथा स्थानीय लोगों की बहुत आवाजाही थी । मैं एक अधिकारी के सामने बैठा हुआ था । मैंने श्री. काशिनाथ को वहां दोपहर १२ बजे बुलाया था । उससे पूर्व मैंने उन्हें कभी नहीं देखा था । उस समय हमारे पास चल-दूरभाष नहीं थे, साथ ही ‘उस समय मैं निश्चित रूप से किस अधिकारी के सामने बैठूंगा’ यह मुझे भी ज्ञात नहीं था; इसलिए मैं श्री. काशिनाथ को सूचित नहीं कर पाया ।

२. अधिकारी ने मुझसे पूछा, ‘आप इतनी भीड में श्री. काशिनाथ को कैसे पहचानेंगे ?’, तब मैंने उनसे कहा ‘सनातन के साधक सदैव आनंद में रहते हैं’ तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की महानता के संबंध में अधिकारी को अवगत कराना

मैं जिस अधिकारी के सामने बैठा था, उस अधिकारी ने मुझसे पूछा, ‘‘इतनी भीड में आप अपने साधक को कैसे पहचानेंगे ?’’ तब मैंने उनसे कहा, ‘‘सनातन के साधक सदैव आनंद में रहते हैं । हमारे यहां संप्रदाय जैसी विशिष्ट वेशभूषा नहीं होती; परंतु ‘चेहरे पर दिखाई देनेवाला आनंद’ ही हमारे साधकों की पहचान है । हमारे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हमें आनंद दिया है तथा हमारे पास आनंद के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है ।’’ मेरी यह बात सुनकर उस अधिकारी को आश्चर्य हुआ । वास्तव में वहां मद्रासी लोगों की इतनी भीड में ‘दक्षिण भारतीय श्री. काशिनाथ को पहचानना’ मेरी परीक्षा ही थी ।

पू. शिवाजी वटकर

३. मैं आश्वस्त था कि ‘श्री. काशिनाथ निर्धारित समय पर दोपहर १२ बजे कार्यालय में आएंगे ।’ मैं ११.५५ को सीढी से सभागार में आनेवाले लोगों की ओर देख रहा था । उसी समय एक आनंदमय व्यक्ति शांति के साथ सभागार में आता हुआ दिखाई दिया । उस समय मैंने उस अधिकारी से कहा, ‘‘यही हमारे साधक हैं ।’’

४. मैं श्री. काशिनाथ के पास जाकर उन्हें अधिकारी के पास ले आया । मैं सूक्ष्म अथवा स्पंदनों के संबंध में अधिक नहीं समझता; परंतु तब भी गुरुकृपा से मैं श्री. काशिनाथ को पहचान पाया । उस अधिकारी को इसका आश्चर्य हुआ । उन्होंने हमें धर्मकार्य हेतु सहायता की ।

५. कृतज्ञता

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी हमसे ‘गुरुकृपायोग’ के अनुसार साधना करवा रहे हैं तथा हमें आनंद प्रदान कर रहे हैं । उन्होंने संसार को दिखाया है कि आनंद में रहनेवाले व्यक्ति सनातन के साधक हैं । इसके लिए मैं साक्षात श्रीविष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉक्टरजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।’

– (पू.) शिवाजी वटकर, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (९.७.२०२०)