वर्तमान काल में समाज भौतिक सुखों की प्राप्ति में रत दिखाई देता है । इसलिए भले ही ऊपर से सुख दिखाई देता हो; परंतु समाज आत्मिक आनंद से वंचित है । आध्यात्मिक साधना के अभाव में अधिकतर लोगों को जीवन में आनेवाले तनावों का सामना करते समय मनोबल एवं आत्मबल अल्प पडता है । तनाव, निराशा, नकारात्मकता, चिडचिडाहट; ऐसी अनेक लोगों की स्थिति होती है । इन सब कारणों से समाज की सात्त्विकता का पतन हो गया है, ऐसा दिखाई देता है । सर्वत्र बीमारियां, पारिवारिक विवाद, अनाचार, स्वैराचार, पाप, धोखाधडी, शोषण, भ्रष्टाचार, हत्या, धर्म पर होनेवाले आघात आदि ने सीमा पार कर दी है । इसके उपायस्वरूप समाज की सात्त्विकता बढाने हेतु आज सहस्रों साधक सनातन संस्था के मार्गदर्शन में तन-मन-धन का त्याग कर समाज में अध्यात्म का प्रसार कर रहे हैं ।
संकलनकर्ता : श्री. चैतन्य तागडे, पुणे एवं श्रीमती अर्पिता पाठक, पनवेल
१. कोरोना महामारी के कारण अनेक लोगों का साधना की ओर मुडना !
वर्ष २०२० में कोरोना महामारी के कारण सर्वत्र यातायात बंदी लागू की गई । अकस्मात उत्पन्न आपातकालीन परिस्थिति के कारण समाज में भय का वातावरण बन गया था । प्रसारमाध्यम, इंटरनेट एवं यू-ट्यूब के माध्यम से अनेक लोग इस परिस्थिति से लडने तथा मनोबल बढाने के प्रोत्साहनात्मक कार्यक्रम ले रहे थे । भले ही ऐसा हो; परंतु सभी प्रयास करने पर भी जीवन को स्थिर, सकारात्मक एवं आनंदमय बनाने में सफलता नहीं मिल रही है, ऐसा अधिकतर लोग अनुभव कर रहे थे । उसमें भी अनेक प्रकार की सावधानियां बरतकर भी कोरोना विषाणु के संक्रमण के कारण समाजमन अस्वस्थ था । जब विज्ञान के नियमों का पालन करने पर भी विषाणुजन्य बीमारियां होती हैं, उस समय विज्ञान से परे अध्यात्मशास्त्र को समझ लेना आवश्यक हो जाता है; क्योंकि पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे का अनुभव करने हेतु आवश्यक शास्त्र है ‘अध्यात्मशास्त्र’ ! जैसे हम बीमार होने अथवा अन्य संकट आने के बुद्धिजन्य एवं वैज्ञानिक कारणों की खोज करते हैं, वैसे ही आध्यात्मिक कारण भी होते हैं । हमें सभी समस्याओं एवं संकटों का समर्थ रूप से सामना करना सिखाकर जीवन को आनंदमय बनाने में उपयुक्त अध्यात्मशास्त्र तथा उसके सिद्धांत कहीं नहीं सिखाए जाते । सनातन संस्था द्वारा सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ने इसी आपातकाल के संबंध में समाज में जागृति लाने का कार्य विगत अनेक वर्षाें से आरंभ किया है । कोरोना महामारी का काल ऐसा था, उस काल में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक आदि सभी स्तरों पर अस्थिरता थी । इसलिए अनेक लोगों में सनातन संस्था के बताए अनुसार आपातकाल के सूत्र के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई तथा साधना करने की आवश्यकता उनके ध्यान में आई ।
समाज को अध्यात्मशास्त्र के संबंध में मार्गदर्शन करने हेतु सनातन संस्था द्वारा बालसंस्कारवर्ग, युवा सत्संग, साधना सत्संग, अध्यात्म के अभ्यासवर्ग के माध्यम से तनावमुक्त जीवन हेतु अध्यात्म, आनंदमय जीवन हेतु अध्यात्म आदि विषयों पर प्रत्यक्ष रूप से निःशुल्क प्रवचन आयोजित किए जाते हैं । संत समाज की चिंता करते हैं । कोरोना महामारी में समाज की स्थिति को ध्यान में रखकर सभी को आधार देने की दृष्टि से यातायात बंदी के काल में अर्थात वर्ष २०२० से सनातन संस्था द्वारा ‘ऑनलाइन साधना सत्संग’ उपक्रम आरंभ किया गया । इन सत्संगों की विशेषता यह है कि समाज में जिनके पास ‘स्मार्टफोन’ एवं ‘इंटरनेट’ उपलब्ध है तथा जिनमें जीवन को आनंदमय बनाने हेतु उचित साधना सीखने की जिज्ञासा है, ऐसे सभी जिज्ञासुओं को इन सत्संगों में नियमितरूप से निःशुल्क जुडने का अवसर मिला ।
२. ९ भाषाओं में २५० से अधिक सत्संग !
सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो यातायात बंदी के काल में समाज को अत्यंत प्रेमपूर्वक, निरपेक्ष, निःशुल्क एवं शास्त्रोक्त अध्यात्मशास्त्र सिखानेवाले ऐसे ‘ऑनलाइन साधना सत्संग’ मिलना संकटकाल में संजीवनी मिलने जैसा था । इसलिए इन सभी से इन सत्संगों को बहुत अच्छा प्रतिसाद मिला, इसलिए यह उपक्रम जारी रखा है । अब विभिन्न स्थानों से इन सत्संगों की मांग है, इसलिए ‘ऑनलाइन’ के साथ प्रत्यक्ष सत्संग भी आरंभ हो गए हैं । सनातन संस्था द्वारा सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ने बताया हुआ ज्ञानयोग, कर्मयोग एवं भक्तियोग का सुंदर संगम ‘गुरुकृपायोग’ साधनामार्ग प्रत्येक व्यक्ति को उसकी प्रकृति के अनुसार उसका कार्यान्वयन करने में सहज, सरल एवं आनंददायक है; इसका अनेक लोगों ने अनुभव किया है । सत्संग में बताए अनुसार काल के अनुसार उचित साधना करने से प्रारब्धाधीन संकटों का सामना करने के लिए आवश्यक आत्मबल मिलता है, यही इन सत्संगों के माध्यम से अनेक लोगों ने अनुभव किया है । अभीतक ऑनलाइन एवं प्रत्यक्ष सत्संग के माध्यम से ९ भाषाओं में २५० से अधिक साप्ताहिक सत्संग चल रहे हैं तथा कुल ९ सहस्र ३०० से अधिक जिज्ञासु इन सभी सत्संगों में सम्मिलित हो रहे हैं । ४०० से अधिक जिज्ञासुओं ने ‘जिज्ञासु से साधक’ तक की यात्रा पूर्ण कर नियमित व्यष्टि साधना के साथ समष्टि साधना आरंभ कर दी है । इसमें महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि इनमें से अनेक लोग आरंभ में सत्संग लेनेवाले साधकों से प्रत्यक्ष कभी मिले भी नहीं थे, साथ ही अभी भी अधिकतर नए साधक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी से भी नहीं मिले हैं; परंतु शास्त्रोक्त साधना करने से प्राप्त अनुभूतियों के कारण ये सभी लोग स्वप्रेरणा से साधना कर रहे हैं । (शेष पृष्ठ ४ पर)
३. साधना सत्संग में जुडने के उपरांत कुछ जिज्ञासुओं द्वारा किए गए साधना के प्रयास तथा उससे उन्हें स्वयं में दिखे परिवर्तन !
३ अ. श्रीमती वासंती पारिपेल्ली (आयु ७० वर्ष), छत्रपति संभाजीनगर, महाराष्ट्र
भगवान की कृपा से जनवरी २०२१ से मैं ‘ऑनलाइन’ सत्संग से जुडी । ऑनलाइन सत्संग में जुडने के कारण सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी ‘गुरुदेव’ के रूप में प्राप्त हुए तथा उससे मेरे जीवन में आमूल परिवर्तन आया । इसके लिए सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में अनंत कोटि कृतज्ञता !
गुरुकृपा से सत्संग में जुडने पर मुझे ज्ञात हुआ कि ‘मुझे मनुष्य जन्म क्यों मिला है ?’ उसके कारण परात्पर गुरुदेवजी की कृपा से आगे दिए अनुसार साधना सत्संग में बताए गए सूत्र प्रत्यक्ष आचरण में लाने के प्रयास हो रहे हैं ।
१. प्रतिदिन नामजप होता है । भगवान के आतंरिक सान्निध्य में रहने के लिए प्रार्थना, कृतज्ञता एवं मानसपूजा होती है । स्वभावदोष-निर्मूलन हेतु स्वसूचना सत्र होते हैं । चूकों के परिमार्जन हेतु गुरुदेवजी क्षमायाचना करवा लेते हैं ।
२. ‘प्रत्येक कृति भगवान ने दी हुई सेवा है’ तथा ‘सभी में भगवान हैं’, यह भाव रखने हेतु प्रयास हो रहे हैं । त्योहार-उत्सव कैसे मनाने चाहिए ? तथा उनका महत्त्व समझ में आने के कारण अब त्योहार-उत्सव भावपूर्ण एवं आनंद के साथ मनाए जाते हैं ।
३. मेरे मन में ‘मेरा प्रारब्ध न्यून होने हेतु गुरुदेवजी मेरी क्षमता अनुसार मुझे सेवा के अवसर उपलब्ध करवा रहे हैं’, यह भाव रहता है ।
४. गुरुकृपा के कारण साधना में आने से मेरे आचरण में तथा बातों में परिवर्तन आया । मेरा कर्तापन घटा । क्रोध के प्रसंगों में संयम रखना, साथ ही स्थिर एवं शांत रहने हेतु प्रयास होने लगे । अब सामनेवाले व्यक्ति की बातें सुनने के प्रयास हो रहे हैं । मेरे कारण किसी को कष्ट न पहुंचे, इस उद्देश्य से मृदु एवं सकारात्मक बातें करने के प्रयास हो रहे हैं । चूकें होने से पूर्व ही मन सतर्क हो रहा है ।
५. ‘गुरुदेवजी सदैव मेरे साथ हैं’, ऐसा लगता है । इसलिए अब मुझे अकेलापन प्रतीत नहीं होता ।
६. साधना में आने के कारण ‘धर्माचरण क्या है ?’, यह समझ में आने लगा ।
७. जप करते समय गुरुदेव की कृपा से अनेक बार दैवीय अनुभूतियों का आनंद लेना संभव हुआ । साधना में आने से पूर्व मैंने ऐसा आनंद अनुभव नहीं किया ।
३ आ. श्रीमती हेमांगी पाटील, कोथरूड, पुणे
पिछले एक वर्ष से मैं ‘ऑनलाइन’ सत्संग में जुडी हूं । सत्संग में बताए अनुसार ‘स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया’ कर रही हूं । इससे मुझमें अनेक सकारात्मक परिवर्तन आए हैं । पहले मैं सासू मां तथा ननद की बातें मन में रखकर पति से शिकायत करती थी; परंतु ‘प्रत्येक व्यक्ति की बातों का दृष्टिकोण भिन्न होता है’, इसे अब ध्यान में लेकर अपनी साधना की ओर ध्यान देती हूं । किसी बात को मन में रखना घट गया है तथा उससे मन सकारात्मक रहने में सहायता मिली । गुरुदेवजी (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी) की कृपा से मैं यह कर पाई, इसलिए मैं उनके चरणों में कृतज्ञ हूं ।
३ इ. श्रीमती नयना कुळकर्णी, पुणे सनातन के सत्संग में सम्मिलित होने से मुझे बहुत लाभ हुए हैं ।
१. गुरुदेवजी ने सत्संग के माध्यम से गुणसंवर्धन करना तथा दोष न्यून (कम) करना सिखाया ।
२. मुझसे कभी अनुचित आचरण होने, मन में प्रतिक्रिया आने या किसी के बारे में विचार आने पर, गुरुदेवजी मुझे उसका भान करवाते हैं । यह परिवर्तन केवल सत्संग के कारण हो पाया ।
३. शिकायत करने की अपेक्षा निरंतर कृतज्ञभाव में कैसे रहना चाहिए ?, भावजागृति के प्रयास कैसे करने चाहिए तथा शरणागतभाव से नामजप कैसे करना चाहिए ?, यह सब सत्संग में सीखकर आत्मसात कर पाई ।
४. पहले घर में कोई कुछ बोले, तो मुझे क्रोध आता था । ‘घर के लोग मुझे समझने का प्रयास नहीं करते’, ऐसा लगता था । सत्संग में किसी प्रसंग की ओर साक्षीभाव से कैसे देखना चाहिए, यह समझ में आया । अब किसी भी प्रसंग में मन स्थिर रहता है तथा आत्मचिंतन होता है । अब क्रोध नहीं आता । गुरुदेवजी को मुझे इससे क्या सिखाना है ?, यह विचार आकर मन की स्थिति में परिवर्तन आता है ।
‘ऑनलाइन साधना सत्संगों’ की विशेषताएं !
१. ये सत्संग ऑनलाइन होने के कारण जिस क्षेत्र में सनातन संस्था का कार्य नहीं है; परंतु इंटरनेट उपलब्ध है, ऐसे क्षेत्रों से भी जिज्ञासु सत्संग में जुड सकते हैं ।
२. विदेश से भी कुछ जिज्ञासु सत्संग में जुड रहे हैं । उनका समय भारतीय समयानुसार नहीं होता । भारत के समयानुसार सत्संगों का नियोजन करने पर विदेश के जिज्ञासुओं को प्रातः शीघ्र या रात में जुडना पडता है; परंतु अब उन्हें साधना में रुचि उत्पन्न होने से किसी भी समय जुडने के लिए वे तैयारी रहते हैं ।
३. इन साधना सत्संगों में साधना सिखाने के साथ ही सूक्ष्म दृष्टि विकसित होने हेतु सूक्ष्म के प्रयोग लिए जाते हैं ।
४. सभी त्योहारों के विषय में आध्यात्मिक जानकारी मिलकर त्योहार भावपूर्ण पद्धति से मनाए जाएं तथा त्योहारों का आध्यात्मिक लाभ लेना संभव हो; इसके लिए सत्संग में त्योहार, उत्सव एवं धर्माचरण की भी जानकारी दी जाती है ।
५. सत्संगों में जिज्ञासुओं को चरण-प्रति-चरण गुरुकृपायोगानुसार साधना सिखाई जाती है । कुल ४ श्रेणियों में गुरुकृपायोगानुसार साधना का संपूर्ण प्रशिक्षण पूर्ण हो जाता है । दूसरी श्रेणी से साधना का प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया जाता है । इस माध्यम से एक प्रकार से गुरुकृपायोग का शास्त्रोक्त आध्यात्मिक पाठ्यक्रम ही बन गया है ।
साधना-सत्संग उपक्रमों के माध्यम से साधकों के कारण जुडे प्रत्येक जिज्ञासु से लेकर सभी लोग श्री गुरु की संकल्पशक्ति अनुभव कर रहे हैं । साधना-सत्संग की सेवा का अर्थ केवल कृतज्ञता, कृतज्ञता एवं कृतज्ञता ही है ! ‘गुरुदेवजी, इसके अतिरिक्त हमारे पास कोई शब्द नहीं हैं । समाज के अधिकाधिक जीवों को आपके इस दिव्य कार्य तथा आध्यात्मिक प्रेम का लाभ मिलने के लिए अधिकाधिक जीवों को स्वयं साधना कर जीवन को आनंदमय बनाने की प्रेरणा मिले तथा हम सब से साधना सत्संग की यह सेवा आपको अपेक्षित ऐसी करवा लीजिए’, यही आपके चरणों में शरणागतभाव से प्रार्थना है !’