हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए तन, मन, धन, बुद्धि और कौशल का योगदान करना, यही काल के अनुसार गुरुदक्षिणा !

आज प्रत्येक व्यक्ति धर्माचरण करने लगा, उपासना करने लगा, तो ही वह धर्मनिष्ठ होगा । ऐसे धर्मनिष्ठ व्यक्तियों के समूह से धर्मनिष्ठ समाज की निर्मिति हो सकती है । धर्मनिष्ठ होने के लिए धर्म के अनुसार बताई उपासना अर्थात साधना करना अनिवार्य है ।

‘सुखी जीवन एवं उत्तम साधना हेतु स्वभावदोष-निर्मूलन एवं गुणसंवर्धन’ प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण !

जीवन के किसी भी कठिन प्रसंग में मानसिक संतुलन खोए बिना, प्रसंग का धैर्यपूर्वक सामना कर पाने तथा सदैव आदर्श कृति होने हेतु व्यक्ति का मनोबल उत्तम एवं व्यक्तित्व आदर्श होना आवश्यक है । स्वभावदोष व्यक्ति का मन दुर्बल करते हैं, जबकि गुण आदर्श व्यक्तित्व विकसित करने में सहायक होते हैं ।

स्वभावदोष कैसे दूर करें ?

स्वभावदोषों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक दुष्परिणामों को दूर कर, सफल तथा सुखी जीवन जीने हेतु, स्वभावदोषों को दूर कर चित्त पर गुणों का संस्कार निर्माण करने की प्रक्रिया को ‘स्वभावदोष (षड्रिपु)-निर्मूलन प्रक्रिया’ कहते हैं ।

सनातन की ग्रन्थमाला : स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन

स्वभावदोषों पर उपचारी सूचना, स्वसूचना बनाते समय ध्यान रखने योग्य सूत्र, स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया अशिक्षित एवं अल्पशिक्षित व्यक्ति भी कर पाएं, इस हेतु उपयुक्त सूचना आदि के विषय में इस ग्रंथ में पढें ।

श्री दत्तगुरु के रूप में स्थित सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी को निर्गुण की अनुभूति करानेवाली पाद्यपूजा !

नामजप के माध्यम से श्री दत्तगुरु को पुकारने के उपरांत सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ने साधकों को श्री दत्तगुरु के रूप में दर्शन देकर कृतकृत्य किया । साधकों ने गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में प्राप्त गुरुदर्शन और उनके पाद्यपूजन को अपने मनमंदिर पर अंकित कर लिया !

‘श्रीराम शालिग्राम’ पर प्रार्थना कर रहे हनुमानजी का रेखाचित्र दिखाई देना

शालिग्राम के शंकुरूप भाग को नीचा कर शालिग्राम को खडा कर देखने पर मुझे हनुमानजी के दर्शन हुए । शालिग्राम पर स्थित हनुमानजी का रेखाचित्र देखने पर यह मेरे ध्यान में आया । मुझे ‘वानर दिखाई देना’ शालिग्राम पर हनुमानजी के होने का सूचक था ।

रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम में प्रतिष्ठापित ‘श्रीराम शालिग्राम’ की महिमा !

प्रभु श्रीराम भगवान शिव की अखंड उपासना करते हैं । प्रभु श्रीराम ने अनेक तीर्थस्थलों पर शिवलिंगों की स्थापना की है । उसके कारण शिवलिंग की भांति ही दिखाई देनेवाले इस शालिग्राम को ‘श्रीराम शालिग्राम’ कहा गया है ।

‘कर्तापन’ इस अहं के पहलु के संदर्भ में एस्.एस्.आर्.एफ्. के संत पू. देयान ग्लेश्चिच को सूक्ष्म से प्राप्त हुआ ज्ञान !

‘व्यक्ती में सर्व गुण ईश्वर से आते हैं तथा व्यक्ती के माध्यम से सर्व उचित कृती भगवंत ही करता है । ईश्वर से प्राप्त अथवा उसके द्वारा की जानेवाली प्रत्येक कृती के लिए व्यक्ती अपनी स्वयं की स्तुती हो, ऐसी अपेक्षा क्यों करता है ?’

पू. (कै.) श्रीमती सूरजकांता मेनराय ने देहत्याग करने के पश्चात उनका शिवात्मा वैंकुठ में जाना तथा उनमें स्थित सीखने की वृत्ती के कारण उन्हें पृथक लोगों में सूक्ष्म से प्रवास करने की सिद्धी प्राप्त होना !

आषाढ कृष्ण चतुर्दशी (२७.७.२०२२) के दिन सनातन की ४५ वी संत पू. (कै.) श्रीमती सूरजकांता मेनराय की जयंती है । उस निमित्त ६४ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की कु. मधुरा भोसले को ध्यानमें आएं उनके सूत्र यहां देखेंगे ।

समष्टि कार्य की लगन रखनेवाले हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळजी (आयु ५५ वर्ष) सद्गुरु पद पर विराजमान !

गुरुकृपायोगानुसार साधना कर पू. नीलेश सिंगबाळजी ने सद्गुरु पद प्राप्त किया । इस समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी और सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी की पत्नी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने उनका सम्मान किया ।