हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए तन, मन, धन, बुद्धि और कौशल का योगदान करना, यही काल के अनुसार गुरुदक्षिणा !
आज प्रत्येक व्यक्ति धर्माचरण करने लगा, उपासना करने लगा, तो ही वह धर्मनिष्ठ होगा । ऐसे धर्मनिष्ठ व्यक्तियों के समूह से धर्मनिष्ठ समाज की निर्मिति हो सकती है । धर्मनिष्ठ होने के लिए धर्म के अनुसार बताई उपासना अर्थात साधना करना अनिवार्य है ।