आषाढ कृष्ण चतुर्दशी (२७.७.२०२२) के दिन सनातन की ४५ वी संत पू. (कै.) श्रीमती सूरजकांता मेनराय की जयंती है । उस निमित्त ६४ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की कु. मधुरा भोसले को ध्यानमें आएं उनके सूत्र यहां देखेंगे ।
१. सनातन की संत पू. (कै.) श्रीमती सूरजकांता मेनराय का अहं अत्यल्प होने के कारण जब वे पृथ्वी पर रहती थी, तब ईश्वर के विभिन्न भक्तोंद्वारा निरंतर सीखती रहती थी
पू. (कै.) श्रीमती सूरजकांता मेनराय ने माघ शुक्ल सप्तमी (रथसप्तमी के दिन) अर्थात वर्ष १.२.२०२० के दिन देहत्याग किया । तत्पश्चात उनका शिवात्मा वैंकुठ में गया । वे मूलतः भक्तीमार्गी होने के कारण उनके हृदय में शिव, विष्णु तथा देवी के प्रति निस्सीम भक्ती है । साथ ही उनका अहं अत्यल्प होने के कारण वे पृथ्वी पर थी, उस समय ईश्वर के विभिन्न भक्तों द्वारा निरंतर सीखती रहती थी । उनकी अन्यों से सीखने की यह वृत्ती निरंतर कार्यरत होने के कारण वैकुंठलोक में जाने के पश्चात भी वे निरंतर विष्णुभक्तों द्वारा सीखती रहती हैं ।
२. पू. मेनरायकाकू में स्थित अन्यों द्वारा निरंतर सीखने की वृत्ती के कारण भगवान विष्णु का उनपर प्रसन्न रहना तथा उसने पू. काकू के शिवात्मा को अन्य लोक में जाकर वहां सीखने की अनुमती देना
उनके अन्यों द्वारा निरंतर सीखने की वृत्ती के कारण भगवान विष्णु उनपर प्रसन्न हुए तथा उन्होंने पू. काकू की आत्मा को अन्य लोक में जाकर वहां के साधक, संत, भक्त, ऋषिमुनी तथा देवताओं द्वारा सीखने की अनुमती दी । अतः पू. मेनरायकाकू का जीवात्मा निली आभावाली सुवर्ण ज्योती के रूप में विभिन्न लोक अर्थात सगुणलोक तथा विविध ऋषियों का लोक अर्थात महा, जन, तप एवं सत्य इन लोकों में जाकर प्रकाशभाषा में अन्यों द्वारा सीखती हैं ।
३. अन्य संत तथा पू. मेनरायकाकू में आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाला भेद तथा पू. मेनरायकाकू के मन में रहनेवाला अपार कृतज्ञताभाव
सर्वसाधारण रूप से किसी संतों के देहत्याग के पश्चात उनका शिवात्मा एक ही लोक में वास करता है तथा वहां रहकर ही ईश्वरप्राप्ती की दिशा से आगे की साधना करता है; किंतु पू. मेनरायकाकू इस संदर्भ में अपवाद हैं । पृथक लोगों में सूक्ष्म में प्रवास करने की क्षमता केवल सप्तर्षी तथा कुछ चुने हुए दैवी शक्तियों के पास रहती है । परात्पर गुरुदेव की कृपा के कारण पू. मेनरायकाकू में अन्यों द्वारा सीखने की वृत्ती प्रबल होने के कारण उन्हें विभिन्न लोकों में सूक्ष्म में प्रवास करने की दैवी सिद्धी प्राप्त हुई है । उसके लिए वे निरंतर विष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवले तथा उनके मूल रूप अर्थात साक्षात श्रीविष्णु के चरणों में शतशः नमन कर कृतज्ञता व्यक्त करती हैं । इससे उनके अंतःकरण में होनेवाला अपार कृतज्ञताभाव दिखाई देता है ।
प्रार्थना एवं कृतज्ञता
श्री गुरु कृपा के कारण पू. मेनरायकाकू का आध्यात्मिक विशेषता सीखने प्राप्त हुई, उसके लिए मैं श्री गुरूदेव के चरणों में कृतज्ञ हूं । ‘ उनके अनुसार ही निरंतर अन्यों द्वारा सीखने की वृत्ती हमारे अंदर निर्माण हो’, ऐसी श्रीगुरुदेवजी के कोमल चरणों में आर्त प्रार्थना है ।’
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा । (३.६.२०२२)