साधकों के आधारस्तंभ तथा धर्मकार्य की तीव्र लगन रखनेवाले सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ का आनंददायी सद्गुरु सम्मान समारोह !

उत्तर भारत में प्रतिकूल परिस्थिति होते हुए भी अत्यंत लगन से धर्मप्रसार का कार्य करनेवाले, हिन्दुत्वनिष्ठों को प्रेमभाव से अपनानेवाले, विनम्र वृत्ति के हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळ के सदगुरुपद पर विराजमान होने की आनंदवार्ता २९.६.२०२२ एक भावसमारोह में घोषित की गई ।

सनातन की साधिका स्व. (श्रीमती) प्रमिला रामदास केसरकरजी ने प्राप्त किया सनातन का १२१ वां संतपद एवं स्व. (श्रीमती) शालिनी प्रकाश मराठेजी ने १२२ वां संतपद !

‘मूल ठाणे के दंपति अधिवक्ता रामदास केसरकर एवं श्रीमती प्रमिला केसरकर २७ वर्ष पूर्व सनातन संस्था के संपर्क में आए और उन्होंने साधना आरंभ की । वर्ष २००८ में वे दोनों रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में साधना के लिए आए ।

असाध्य बीमारी में भी अंतिम श्वास तक लगन से साधना करनेवाली सनातन की दिवंगत साधिका स्व. (श्रीमती) प्रमिला केसरकरजी एवं स्व. (श्रीमती) शालिनी मराठेजी ने प्राप्त किया संतपद !

मृत्यु से पूर्व कठिन शारीरिक स्थिति में भी ईश्वरभक्ति के आधार पर स्थिर रहना, भगवान का अस्तित्व अनुभव करते हुए मिलने आनेवाले साधकों को भी आनंद देना, उनकी विशेषता थी ।

विकार दूर करने के लिए आवश्यक देवताओं के तत्त्वानुसार दिए गए कुछ विकारों पर नामजप

आगामी आपत्काल में आधुनिक वैद्य अथवा उनकी दवाएं उपलब्ध नहीं होंगी । उस समय यह ज्ञात करना कठिन होगा कि किस विकार के लिए क्या उपाय कर सकते हैं । अतः साधक यह लेख संग्रह करके रखें तथा उसी के अनुसार नामजप करें । इससे विकार अल्प होने में लाभ होगा ।

‘कोटिश: कृतज्ञता’ ऐसा क्यों कहा जाता है ?

साधारण मानव को परिवार का पालन करते समय भी परेशानी होती है । परमेश्वर तो सुनियोजित रूप से पूरे ब्रह्मांड का व्यापक कार्य संभाल रहे हैं । उनकी अपार क्षमता की हम कल्पना भी नहीं कर सकते ! ऐसे इस महान परमेश्वर के चरणों में कोटिशः कृतज्ञता !

वाई (जनपद सातारा) की पू. (श्रीमती) मालती नवनीतदास शहा (आयु ८३ वर्ष) के संतसम्मान समारोह का भाववृत्तांत !

मूल पुणे की तथा वर्तमान में वाई स्थित श्रीमती मालती नवनीतदास शहा (आयु ८३ वर्ष) सनातन की १२० वीं व्यष्टि संतपद पर विराजमान हुईं, सदगुरु स्वाती खाड्ये ने ४ अगस्त २०२२ को सभी को यह शुभ समाचार दिया । उपस्थित सभी ने इस समारोह के भावानंद को अनुभव किया ।

साधकों को अंतर्मुख कर उनकी व्यष्टि एवं समष्टि साधना को जोडकर निरंतर भावावस्था में रहनेवाले सनातन के ७५ वें समष्टि संत पू. रमानंद गौडा !

पू. रमानंद अण्णा साधकों के मन पर गुरुदेवजी की महानता अंकित करते हैं । ‘साधक मनुष्य जन्म को सार्थक करें’, इसलिए वे साधकों को निरंतर अंतर्मुख कर उनकी व्यष्टि एवं समष्टि साधना का नियोजन करके देते हैं । वे साधकों को निरंतर आनंदी एवं उत्साही रखते हैं ।

सदैव कृतज्ञता भाव में रहनेवालीं और सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के प्रति अपार भाव रखनेवालीं जयपुर की पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमका !

पू. खेमका दादी का सब पर अत्यधिक प्रेम है तथा वह उनके आचरण से दिखाई देता है । वे साधक अथवा अपने परिजनों से ही प्रेम नहीं करतीं, अपितु वे सबसे प्रेम करती हैं ।

प्रेमभाव एवं स्थिरता से युक्त श्रीमती मालती नवनीतदास शहा हुईं संतपद पर विराजमान !

इस अवसर पर सद्गुरु स्वाती खाडयेजी ने पू. (श्रीमती) मालती शहाजी को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र, साथ ही शॉल एवं श्रीफल प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया ।

बीमारी दूर होने हेतु आवश्यक देवताओं के तत्त्वों के अनुसार कुछ बीमारियों के लिए नामजप

आगे आनेवाले आपातकाल में आधुनिक वैद्यों और उनकी औषधियां उपलब्ध नहीं होंगी, उस समय ‘किस बीमारी के लिए कौन सा उपाय करना है’, यह समझ में आना कठिन होगा । अतः यह समझ में आए; इसके लिए साधक यह लेख संग्रहित रखें और उसमें दिए अनुसार नामजप करें ।