१. ‘व्यक्ती में सर्व गुण ईश्वर से आते हैं तथा व्यक्ती के माध्यम से सर्व उचित कृती भगवंत ही करता है । ईश्वर से प्राप्त अथवा उसके द्वारा की जानेवाली प्रत्येक कृती के लिए व्यक्ती अपनी स्वयं की स्तुती हो, ऐसी अपेक्षा क्यों करता है ?’
२. कुछ अच्छा होने के पश्चात हमें कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए तथा स्वयं में अधिक परिवर्तन होने के लिए निरंतर प्रयत्नरत होना चाहिए । अन्यथा जो अच्छा घटता है, उसके प्रति स्तुती की अपेक्षा करना कर्तापन का अहंकार दर्शाता है ।
३. ‘सबकुछ ईश्वर ने ही किया है’, इसका अनुभव पाने के लिए प्रत्येक कृती शरणागतभाव से करनी चाहिए ।
४. कई बार परिस्थिती अपनी आपे से बाहर जाती है अथवा कुछ समय हमें कठीन प्रसंगों का सामना करना पडता है । ऐसे समय व्यक्ती को स्वयं में शरणागती भाव वृद्धिंगत करने में सहायता प्राप्त होती है । जब परिस्थिती सर्वसाधारण रहती है, तब उस परिस्थिती का सामना करते समय व्यक्ती में कर्तापन का भाव रहता है; किंतु यदि वही परिस्थिती कठीन रहेगी, तो उस परिस्थिती का सामना करने के लिए ईश्वर की सहायता प्राप्त करने के लिए व्यक्ती शरणागत भाव में रहता है ।’
– श्री हनुमान ((पू.) श्री. देयान ग्लेश्चिच (युरोप) के माध्यम से ) (३.११.२०२१)