रथोत्सव पूर्ण होने के उपरांत सप्तर्षियों की प्रीतिमय वाणी से उजागर हुई परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अवतारी कार्य की महिमा !
श्रीमन्नारायण के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का (गुरुदेवजी का) रथ जिस क्षण आश्रम से बाहर निकला, उस क्षण पृथ्वी के सर्व जागृत मंदिर, तीर्थक्षेत्र, ५१ शक्तिपीठ एवं १२ ज्योतिर्लिंग के चैतन्य को नवजागृति मिली ।