सनातन संस्था के तीन गुरु, अर्थात सच्चिदानंद परब्रह्म परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवले, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ! सनातन के साधकों को मिली ईश्वरीय संपत्ति है । सनातन के इन तीन गुरुओं की महिमा सनातन के संत, साधक, धर्मप्रेमी, ईश्वरनिष्ठ कलाकार एवं धर्मनिष्ठ अधिवक्ताओं के भी ध्यान में आई है । फिर भी उनकी महिमा ऋषिलोक के ऋषियों की ओजस्वी वाणी में सुनते समय अथवा पढते समय साधकों की श्रद्धा अधिक दृढ होती है । सनातन के ३ गुरुओं के सामर्थ्य की अनुभूति साधकों ने आज तक कदम-कदम पर ली है । इसका यथार्थ शब्दांकन महर्षि ने लाखों वर्षाें पूर्व ही नाडीपट्टिका के माध्यम से किया है । सप्तर्षियों की नाडीपट्टिका में सनातन के तीन गुरुओं के विषय में समय-समय पर किए गौरवोद्गार निम्नानुसार हैं ।
सनातन के तीन गुरु पृथ्वी पर भगवान के अवतार हैं !‘सनातन के तीन गुरु भगवान के पृथ्वी पर अवतार हैं’, ऐसा वैकुंठ की मोहर लगे कागदपत्र (रजिस्टर्ड डॉक्युमेंट्स) अर्थात सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका ! ये कागदपत्र लिखनेवाले स्वयं ब्रह्मदेव हैं, वह लिखने के लिए बतानेवाले स्वयं शिवशंकर और इन कागदपत्रों पर साक्षात् श्रीमन्नारायण ने ही मोहर लगाई है ।’ – सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका वाचन क्र. १९७ (७.३.२०२२) |
१. सप्तर्षियों की सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के विषय में समय-समय पर गौरवोद्गार !
१ अ. ‘तिरुपति’ के व्यंकटेश समान परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का भी गोवा की एक पहाडी पर विराजमान होना : ‘तिरुपति में श्रीनिवास का (श्री बालाजी का अथवा श्री व्यंकटेश का) अवतार ३ सहस्र से भी अधिक वर्ष पूर्व हुआ था । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साक्षात् श्रीनिवास का रूप हैं । गोवा के सनातन का ‘रामनाथी’ आश्रम वर्तमान कलियुग का ‘तिरुपति’ है । साधकों को अलग से तिरुपति जाने की आवश्यकता नहीं । जिस प्रकार श्री व्यंकटेश ‘तिरुपति’ की पहाडी पर खडे हैं, उसी प्रकार श्रीविष्णु के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ‘रामनाथी’, गोवा में पहाडी पर विराजमान हैं ।’ (सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका वाचन क्रमांक १३८ (१७.२.२०२०))
१ आ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी स्वयं परब्रह्मस्वरूप होने से उनके प्रत्येक अवतार में सप्तर्षि उनके साथ होना : ‘शंखचक्रधारी श्रीमन्नारायण के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के श्रीचरणों में सप्तर्षियों का त्रिवार वंदन ! जिस प्रकार श्रीकृष्ण के साथ पांडव थे, श्रीराम के साथ वानर थे, उसी प्रकार अब गुरुदेवजी के (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के) साथ सनातन के साधक हैं । श्रीमत्परमहंस चंद्रशेखरानंद, श्री अनंतानंद साईश, प.पू. भक्तराज महाराज एवं प.पू. रामानंद महाराज, इन चार गुरुओं के उपरांत आए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी स्वयं परब्रह्मस्वरूप हैं । प्रत्येक अवतार में नाडीपट्टिका के माध्यम से सप्तर्षि आपके साथ थे । श्रीकृष्ण के साथ सुदामा थे, ऐसे ही हम सप्तर्षि गुरुदेवजी के साथ आए हैं ।’ (सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका वाचन क्र. १४५ (१७.५.२०२०))
१ इ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी पृथ्वी के आध्यात्मिक सिंहासन पर विराजमान होना : ‘श्रीविष्णु ने त्रेतायुग में श्रीराम के रूप में क्षत्रिय कुल में जन्म लिया और द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के रूप में यादव कुल में जन्म लिया । आज के कलियुग में श्रीविष्णु ने ‘सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी’ के रूप में जन्म लिया है । वर्तमान में गुरुदेव (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) संपूर्ण पृथ्वी के आध्यात्मिक सिंहासन पर विराजमान हैं । साक्षात् भगवान पृथ्वी पर आए, तो वे कैसे दिखाई देंगे ? तो ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी’ समान ही दिखाई देंगे ।
१ इ १. प्रत्येक १ सहस्र वर्ष में भगवान श्रीविष्णु का पृथ्वी पर अवतार धारण करना : प्रत्येक १ सहस्र वर्ष में भगवान श्रीविष्णु पृथ्वी पर अवतार धारण करते हैं । तब पृथ्वी पर लोगों को उनके विषय में ध्यान में आएगा ही, ऐसा नहीं है । गत १ सहस्र वर्ष के पश्चात भगवान ने ‘गुरुदेव डॉ. आठवलेजी’ (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) के रूप में जन्म लिया है । गुरुदेवजी का जन्म ‘अयोनि संभव’ एवं प्रकाश रूप में हुआ है । वर्तमान में वैकुंठ के विष्णु संपूर्ण पृथ्वी की ओर गुरुदेवजी के दोनों नेत्रों के माध्यम से देख रहे हैं ।’
(सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका वाचन क्र. १४६ (१.६.२०२०))
१ ई. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का जन्म केवल धर्मसंस्थापना के लिए होना : ‘श्रीमन्नारायण के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का जन्म केवल धर्मसंस्थापना के लिए हुआ है । धर्मसंस्थापना का विरोध करनेवाली पाताल की बलवान अनिष्ट शक्तियां गुरुदेवजी को अनेक प्रकार से कष्ट दे रही हैं । अब तक इन बलवान अनिष्ट शक्तियों की गुरुदेवजी को कष्ट देने के लिए बनाई गई सभी युक्तियां विफल हो गईं हैं और आगे भी उनका नियोजन विफल होगा । एक दिवस अनिष्ट शक्तियां हार जाएंगी और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी धर्मसंस्थापना अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करेंगे ।’ (सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका वाचन क्र. १९३ (२३.११.२०२१))
२. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के विषय में सप्तर्षियों के गौरवोद्गार !
२ अ. ‘पृथ्वी पर अनेक आश्रम हैं; परंतु सनातन का आश्रम छोडकर अन्य कहीं भी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी समान दैवीय स्त्रियां नहीं !’ (सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका वाचन क्र. १९० (२१.१०.२०२१))
२ आ. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी, इन दोनों के सर्व ओर एक तेजोवलय होना : ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी, इन दोनों के चारों ओर सदैव एक प्रकाशमय आध्यात्मिक प्रभामंडल होता है । यह प्रभामंडल करोडों सूर्याें के प्रकाशसमान तेजस्वी है । यह प्रभामंडल सूक्ष्म होने से सामान्य लोगों को समझ में आना कठिन है । आगे अनेक सात्त्विक लोग इन दोनों माताजी को देखकर उनकी शरण आएंगे ।
२ इ. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी दैवीय शक्ति एवं दैवी सौंदर्य से युक्त दैवी स्त्रियां हैं ! : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति भाव, भक्ति, निष्ठा, सत्यनिष्ठा एवं कर्तव्यदक्षता, ये गुण है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी दैवी शक्ति एवं दैवी सौंदर्य से युक्त दैवी स्त्रियां हैं ।
इसलिए श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी, ये दोनों परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारी हुई हैं ।’ (सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका वाचन क्र. १९३ (२३.११.२०२१))
२ ई. सनातन के तीन गुरुओं का जन्म केवल हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए ही होना : ‘वर्तमान में अनिष्ट शक्तियों ने संपूर्ण देश को अपने नियंत्रण में ले लिया है । पूर्वकाल के हिन्दू राजा कैसे थे और वर्तमान के राजा (राजनेता) कैसे हैं ? ईश्वरीय राज्य आने के लिए हमें बहुत प्रयत्न करना होगा । सनातन के तीन गुरुओं का जन्म अनिष्ट शक्तियों से सूक्ष्म युद्ध करने एवं हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के लिए ही हुआ है । आगे हिन्दू राष्ट्र आने पर लोगों को लगेगा, ‘यह सर्व राजनेताओं के कारण हुआ’; परंतु ‘सनातन के तीन गुरुओं के कारण हिन्दू राष्ट्र आया’, यह मानवजाति को समझने में थोडी देर लगेगी ।
– श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६६ प्रतिशत), चेन्नई.
सप्तर्षि के चरणों में कृतज्ञता‘हे सप्तर्षिंयो, हम सनातन के साधक आपके श्रीचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं । आपके कारण इस कलियुग में हमें भगवान के अवतार सनातन के तीन गुरुओं के अवतारी कार्य की पहचान हुई । ‘सनातन के तीन गुरु हम साधकों के लिए क्या कर रहे हैं ?’, यह हमें ऋषिवाणी द्वारा सुनने मिला’, इसके लिए हम सभी साधक सप्तर्षियों के श्रीचरणों में त्रिवार वंदन करते हैं !’ – श्री. विनायक शानभाग, चेन्नई, तमिलनाडु (८.५.२०२२) |
पृथ्वी पर अन्य लोगों का जन्म केवल उनके प्रारब्ध भोगने एवं अपने परिवारवालों के साथ लेन-देन समाप्त करने के लिए हुआ है; केवल सनातन के तीन गुरुओं का जन्म ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना के लिए ही हुआ है ।
२ उ. सनातन के तीन गुरुओं पर असंख्य अनिष्ट शक्तियां अगणित आक्रमण करते हुए भी उन्हें कष्ट न दे पाना; क्योंकि सनातन के तीनों गुरुओं के शरीर वज्र समान होना : ‘बलवान अनिष्ट शक्तियों ने सनातन के तीनों गुरुओं पर सूक्ष्म से इतनी भारी संख्या में अनिष्ट शक्तियां छोडी हैं कि उनकी कोई गिनती ही नहीं कर सकता । ऐसा होते हुए भी वे तीनों गुरुओं के शरीर नष्ट नहीं कर सकती हैं । प्रतिदिन इतनी भारी संख्या में होनेवाले सूक्ष्म के आक्रमणों का तीनों गुरुओं के शरीर पर केवल खरोंच समान परिणाम दिखाई देता है । इससे ‘सनातन के तीनों गुरुओं के शरीर वज्र समान हैं’, यह ध्यान में आता है ।’ (सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका वाचन क्र. १९५ [२०.१२.२०२१])
२ ऊ. साधकों की रक्षा के लिए सूक्ष्म से मायावी शक्तियों से लडनेवाले सनातन के तीन गुरु ! : ‘मायावी एवं बलवान पाताल की अनिष्ट शक्तियों के अनेक प्रयत्न करने पर सनातन के उन तीन गुरुओं के केवल स्थूल शरीर को थोडा-बहुत कष्ट दे सकते हैं । इसलिए साधकों को अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों के कारण तीन गुरुओं के शरीर पर होनेवाला परिणाम दिखाई देता है । यदि वह दिखाई न देता, तो सनातन के सहस्रों साधकों को यह ध्यान में भी नहीं आता कि ‘तीनों गुरु साधकों के लिए अनिष्ट शक्तियों से कैसे लड रहे हैं ?’, हम सप्तर्षि सनातन के तीनों गुरुओं के शरीर की रक्षा करते हैं ।
२ ए. ‘सनातन के तीन गुरु भगवान के अवतार हैं’, ऐसी वैकुंठ की मोहर लगा हुआ महत्त्वपूर्ण कागदपत्र अर्थात सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका !
महर्षि : आज सवेरे भ्रमणभाष पर मां (पू. (श्रीमती) शैलजा परांजपेजी) आपसे (श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी से) बात करते समय सप्तर्षियों के विषय में बोल रही थी न ?
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी : हां । आज मां से सप्तर्षियों के विषय में चर्चा हुई ।
महर्षि : गुरुदेव, उत्तरापुत्री (श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी) एवं कार्तिकपुत्री (श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी) जो कुछ भी बोलती हैं, वह सब हम सप्तर्षि सुना करते हैं । ‘सनातन के तीन गुरु, भगवान के पृथ्वी पर अवतार हैं’, ऐसा वैकुंठ मोहर (सिक्का) लगा दस्तावेज (रजिस्टर्ड डॉक्युमेंट्स) अर्थात सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका ! यह दस्तावेज लिखनेवाले स्वयं ब्रह्मदेव हैं, उसे लिखने के लिए कहनेवाले स्वयं शिवशंकर और इस दस्तावेज पर साक्षात् श्रीमन्नारायण ने ही मोहर लगाई है । ऐसा कोई नहीं कह सकता कि ‘सनातन के तीन गुरु ‘अवतार’ नहीं; क्योंकि उनके कागदपत्र हम सप्तर्षियों के पास हैं ।’
२ ऐ. सनातन के तीन गुरुओं के लिए गरुड पताका, सिंह पताका व वृषभ पताका : ‘सनातन संस्था के तीन गुरुओं के लिए सदैव सूक्ष्म से ‘गरुड पताका’, ‘सिंह पताका’ एवं ‘वृषभ पताका’ होगी । जब तीन गुरुओं का विजयोत्सव मनाया जाएगा, तब सच्चिदानंद परब्रह्म परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की ‘गरुड पताका’, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की ‘सिंह पताका’ एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की ‘वृषभ पताका’ होगी । ‘गरुड पताका’ श्रीविष्णु का प्रतीक है, ‘सिंह पताका’ आदिशक्ति का और ‘वृषभ पताका’ शिवजी का प्रतीक है ।’ (सप्तर्षि जीवनाडीपट्टी वाचन क्र. १९७ [७.३.२०२२])