‘१८.५.२०२२ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के बाएं हाथ की बांह की बाईं ओर की त्वचा में सुनहरे और चंदेरी रंगों के दैवीय कण दिखाई दिए । उसका अध्यात्मशास्त्र निम्न प्रकार से है –
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में काल के अनुसार श्रीविष्णु का अवतारी तत्त्व प्रकट होने के कारण उनकी स्थूल देह में विभिन्न प्रकार के दैवी परिवर्तन आना
परात्पर गुरुदेवजी के जन्मोत्सव को उनमें विद्यमान अवतारी तत्त्व संपूर्ण रूप से प्रकट होकर कार्यरत होता है । जब उनमें विद्यमान अवतारी तत्त्व प्रकट होता है, तब उनकी देह में श्रीविष्णु तत्त्व कार्यरत होने के कारण उनकी देह में दैवी परिवर्तन आते हैं ।
२. पृथ्वी पर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ओर से शुद्ध चैतन्य और सक्रिय चैतन्य का प्रक्षेपण होना
ज्ञानशक्ति के बल पर पृथ्वी पर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में अवतारी तत्त्व कार्यरत होने के कारण उनकी देह से शुद्ध चैतन्य और सक्रिय चैतन्य प्रक्षेपित हो रहा है । शुद्ध चैतन्य के प्रक्षेपण के कारण पृथ्वी के वायुमंडल की शुद्धि होती है और सक्रिय चैतन्य के कारण पृथ्वी पर स्थित जीवों को धर्माचरण और साधना करने के लिए आध्यात्मिक बल मिलता है ।
३. परात्पर गुरु डॉक्टरजी की देह में शुद्ध चैतन्य से रूपहले रंग के कण और सक्रिय चैतन्य से सुनहरे रंग के दैवी कण उत्पन्न होकर उनका वायुमंडल में प्रक्षेपण होना
परात्पर गुरु डॉक्टरजी की देह में शुद्ध चैतन्य से रूपहले रंग के कण और सक्रिय चैतन्य से सुनहरे रंग के दैवी कण उत्पन्न होकर उनका वायुमंडल में प्रक्षेपण हो रहा है । परात्पर गुरुदेवजी की देह से प्रक्षेपित दैवी कणों से ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी मनुष्य देह में स्थित श्रीविष्णु के ज्ञानावतार हैं और उनकी देह उनकी कार्य की भांति ही दैवी है’, यह सूत्र सुस्पष्ट होता है ।
कृतज्ञता : श्री गुरुदेवजी की कृपा के कारण ही उनकी देह में आनेवाले दैवी परिवर्तन के विषय में सूक्ष्म से ज्ञान मिलकर उसका आध्यात्मिक कार्यकारणभाव खुल जाता है ।’, इसके लिए मैं श्री गुरुदेवजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करती हूं ।’
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१९.५.२०२२)