परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ८० वें जन्मोत्सव निमित्त नृत्य पथक, ध्वजपथक द्वारा श्रीविष्णु तत्त्व का आवाहन !
संतों द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को अवतार संबोधित करने का कारण !
‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कभी भी स्वयं को अवतार नहीं कहा है और न ही सनातन संस्था ही कभी ऐसा कहती है । ‘नाडीभविष्य’ नामक प्राचीन एवं प्रगल्भ ज्योतिषशास्त्रानुसार सप्तर्षियों ने प्रत्येक व्यक्ति का भविष्य लिखकर रखा है । सप्तर्षियों ने तमिलनाडु की जीवनाडीपट्टिका का वाचन करनेवाले पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से यह बताया है कि जीवनाडीपट्टिका में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीविष्णु के अवतार होने का उल्लेख है । सप्तर्षियों की आज्ञा एवं नाडीपट्टिका में बताए अनुसार जन्मोत्सव के दिन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने श्रीविष्णु के रूप में वस्त्रालंकार धारण किए हैं ।
रामनाथी (गोवा) – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का जन्मोत्सव साधकों के लिए आनंद एवं भक्तिभाव का सुनहरा पर्व ही होता है ! ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी, अर्थात २२ मई २०२२ के मंगल दिन पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का ८० वां जन्मोत्सव मनाया गया । नाडीपट्टी के माध्यम से सप्तर्षियों ने सनातन के साधकों को आज्ञा दी कि ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में उनका रथोत्सव मनाया जाए ।’ सप्तर्षियों की आज्ञा से होनेवाले इस जन्मोत्सव में साधक गुरुदेवजी का अवतारी तत्त्व अत्यधिक मात्रा में अनुभव कर पाए ।
रथ में श्रीविष्णु रूप में विराजमान हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं उनके सामने उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने जब रथ द्वारा मार्गक्रमण किया, तब साधकों को ऐसा प्रतीत हुआ मानो ‘रामराज्य समान ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की सर्व आध्यात्मिक बाधाएं दूर हो रही हैं’, इस भान से वे सभी भाव-विभोर हो गए । भक्तिमय वातावरण में मनाया गया यह गुरुदेवजी का ८० वां जन्मोत्सव, अर्थात साक्षात वैकुंठ भूलोक पर अवतरित होने की अनुभूति साधकों को हुई । गुरुदेवजी की प्रत्यक्ष उपस्थिति, भाव-विभोर करनेवाला भक्तिमय वातावरण एवं उनके श्रीचरणों में सेवा अर्पण करने का मिला अवसर, इन सभी के कारण साधकों का आंतरिक भाव उनके मुखमंडल पर झलक रहा था ।
श्रीविष्णु के वस्त्रालंकार धारण करने के विषय में परात्पर गुरु डॉक्टरजी का विचार !कहते हैं, ‘वृद्धावस्था अर्थात दूसरा बचपन’, इसकी अनुभूति मैंने ८० वें जन्मदिन पर ली । बच्चों को ‘राम’ एवं ‘कृष्ण’ की भांति सजाते हैं, वैसे ८० वें जन्मदिन के निमित्त सप्तर्षियों की आज्ञा से साधकों ने मुझे श्रीविष्णु के वेश में सजाया था ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (२२.५.२०२२) |
‘आनंददायी रथोत्सव’ … कुछ ऐसे हुआ संपन्न !
दोपहर श्रीविष्णु रूप में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळजी का रथोत्सव के आरंभ स्थल पर मंगलमय आगमन हुआ । आरंभ में तीनों गुरुओं ने पालकी में विराजमान ‘श्रीराम शालीग्राम’ के दर्शन किए । तदुपरांत साधकों द्वारा फूलों से भावपूर्ण सजाए गए रथ पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी वेदमंत्रोच्चारण के घोष में विराजमान हुए । तदुपरांत श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी के आसन के सामने दाईं ओर श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं बाईं ओर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी विराजमान हुईं ।
तदुपरांत नृत्य करनेवाली साधिकाओं का गुट, ‘श्रीराम शालीग्राम’ युक्त पालकी, नृत्यसेवा अर्पण करनेवाली साधिकाओं का दूसरा गुट, श्रीविष्णु के रूप में गुरुदेवजी का मंगलरथ, भगवा पताका हाथ में लिए साधक-साधिका, नृत्यसेवा प्रस्तुत करनेवाली साधिकाओं का तीसरा गुट एवं भगवा पताका हाथ में लिए साधक-साधिकाएं, ऐसा इस भावमयी रथोत्सव का क्रम था । इस प्रसंग में श्रीमन्नारायण का नामसंकीर्तन करते हुए श्रीविष्णु की महिमा का गुणगान किया गया । गुरुदेवजी के गुणसंकीर्तन करनेवाले विविध जयघोषों के साथ ही श्रीविष्णु के प्रति भावजागृति करनेवाले विविध भक्तिगीतों की धुन भी इस अवसर पर ध्वनिक्षेपक द्वारा लगाई गई ।
रथोत्सव में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की नृत्य विभाग की साधिकाएं एवं साधिकाओं ने भी ४ स्थानों पर भक्गिगीतों पर नृत्यसेवा प्रस्तुत की । रामनाथी से नागेशी इस १ किलोमीटर के परिसर में सैकडों भाविक एवं ग्रामस्थों ने श्रीविष्णुरूप के परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के भावपूर्ण दर्शन किए ।
रथोत्सव से कृतकृत्य हुए साधकजन !
रथोत्सव में सनातन के सद्गुरु एवं संतों की वंदनीय उपस्थिति थी । सनातन के ६६ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के साधक श्री. विनायक शानभाग एवं महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के समन्वयक ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की कु. तेजल पात्रीकर ने रथोत्सव का भावपूर्ण सूत्रसंचालन किया । रथयात्रा सनातन के रामनाथी आश्रम, रामनाथी ताल, पारपतीवाडा इस मार्ग से होते हुए नागेशी में जहां साधक सेवा करते हैं, उस स्थान पर पहुंची, और फिर पुन: सनातन के आश्रम में रथोत्सव भावपूर्ण संपन्न हुआ ।
गुरुदेवजी की जयजयकार करनेवाली कुछ भावपूर्ण घोषणाएं !
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