लोकतंत्र के एक महत्त्वपूर्ण स्‍तंभ न्‍यायव्‍यवस्‍था की परिवारवाद !

हमें आपने देश के लोकतंत्र में परिवारवाद केवल राजकीय क्षेत्र तक ही मर्यादित नहीं रह गई, अपितु उच्‍च न्‍यायालय एवं सर्वोच्‍च न्‍यायालय में भी एक प्रकार की परिवारवाद चालू है । उच्‍च एवं सर्वोच्‍च न्‍यायालय में कार्यरत न्‍यायाधीशों को ही नए न्‍यायाधीशों को चुनने का दिया अधिकार, जिसे कॉलेजियम पद्धति’ भी कहा जाता है, वह इस परिवारवाद की अपेक्षा अलग कुछ नहीं ।

सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !

राजकीय पक्ष की शक्‍ति कुछ स्‍थानों पर एक व्‍यक्‍ति में, तो कुछ स्‍थानों पर एक कुटुंब में केंद्रित होकर रहती है । राजनीति पर अपना नियंत्रण पुनर्प्रस्‍थापित करने के लिए यह राजकीय घराने अन्‍य किसी को भी अवसर नहीं देते ।

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घरानेशाही का समर्थन करनेवाले कुछ लोगों का कहना है कि आप इस घरानेशाही पर टीका क्‍यों करते हैं ? जिसप्रकार किसी ‘डॉक्‍टर’ को लगता है कि अपना बेटा ‘डॉक्‍टर’ ही होना चाहिए, किसी अधिवक्‍ता को लगता है कि उसका वेटा अधिवक्‍ता ही हो, किसी अभिनेता को लगता है कि उसका बेटा भी अभिनेता ही बने, उसीप्रकार यदि किसी राजकीय नेता को ऐसा लगे कि उसका बेटा भी राजकीय नेता बने, तो इसमें गलत क्‍या है ?

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सामान्‍य घर से आकर ‘बॉलीवुड’में अपने बलबूते ‘अच्‍छा अभिनेता’ के रूप में अपनी छवि बनानेवाले सुशांत सिंह राजपूत, इस युवा अभिनेता ने वर्ष २०२० में आत्‍महत्‍या की और संपूर्ण देशभर में ‘नेपोटिजम’ अर्थात परिवारवाद (अपने प्रियजनों को आगे बढावा देना), घरानेेशाही, वंशवाद के संदर्भ में चर्चा आरंभ हो गई ।

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राजनीति में बढता अपराधीकरण, यह देश के सामने भीषण समस्‍या है । वर्तमान में राजकीय पक्षों में ‘चुनकर आने की क्षमता’, यही महत्त्वपूर्ण मापदंड बन जाने से नैतिकता, जनसेवा अथवा शिक्षा की अपेक्षा अपराधियों को अधिक महत्त्व मिल गया है ।

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वर्तमान में किसी कार्यालय में यदि चपरासी की नौकरी चाहिए तो संबंधित प्रत्‍याशी (candidate, उम्‍मीदवार) की शैक्षणिक पात्रता देखी जाती है; परंतु राज्‍य का, इसके साथ ही देश का संपूर्ण कार्यभार, अर्थव्‍यवहार एवं संरक्षणव्‍यवस्‍था देखनेवाले विधायक, सांसद, मंत्री, इतना ही नहीं; परंतु प्रधानपद समान सर्वोच्‍च पद पर जाने के लिए भी किसी भी शैक्षणिक पात्रता की आवश्‍यकता नहीं होती ।

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प्रत्‍येक राजकीय पक्ष चुनाव के काल में ‘हमें चुनाव में विजयी बनाएं, हम ही राज्‍य को भ्रष्‍टाचारमुक्‍त सरकार देंगे’, ऐसा प्रचार करता है; परंतु प्रत्‍यक्ष में वे मतदारों को मद्य (दारू), पैसे आदि प्रलोभन दिखाकर अपने पक्ष में मतदान दिलवाते हैं ।

सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !

‘वर्तमान में भारत की स्‍वतंत्रता का अमृत महोत्‍सव वर्ष चल रहा है । हमें भारतीय स्‍वतंत्रता का अभिमान तो है; परंतु आज भी अनेक वृद्ध ‘इस लोकतंत्र की अपेक्षा अंग्रेजों की सत्ता ही ठीक थी’, ऐसा मत व्‍यक्‍त करते हुए दिखाई देते हैं !

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राज्‍यव्‍यवस्‍था देश का मेरूदंड होता है, तो धर्म राष्‍ट्र के प्राण ! धर्माधिष्‍ठित राज्‍यव्‍यवस्‍था के कारण राष्‍ट्र की खरे अर्थ में प्रगति होती है । इसके साथ ही राष्‍ट्र के नागरिकों की ऐहिक एवं पारमार्थिक उन्‍नति साधी जाती है ।

सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !

फरवरी एवं मार्च में पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर एवं गोवा, इन ५ राज्‍यों में चुनाव होनेवाले हैं । इन चुनावों की पार्श्‍वभूमिपर विविध राजकीय पक्षों द्वारा सदैव की भांति जनता को प्रलोभन देना, सहुलियतों की घोषणा करना, हमने ही विकासकार्य किया’, ऐसी ढींगें मारना, एकदूसरे पर आरोप-प्रत्‍यारोप करना,