इतिहास के विकृतीकरण के विषय में प्रश्न पूछने पर डॉ. भैरप्पा को ‘एन.सी.ई.आर.टी.’ की समिति में स्थान नहीं दिया गया !
नई देहली – यहां के ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद’ अर्थात ‘एन.सी.ई.आर.टी.’ में कार्य करते हुए महान लेखक डॉ. भैरप्पा ने कुछ स्मरण ताजा कराए । उन्होंने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय में पाठ्यक्रम से मुगल आक्रमणकारियों का उदात्तीकरण किया गया एवं छात्रों को वास्तविक इतिहास से वंचित रखा गया ।
डॉ. भैरप्पा द्वारा प्रस्तुत सूत्र
१. जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, तब उन्होंने ‘राष्ट्रीय एकात्मता नियम’ तैयार किए एवं उसके एक भाग के रूप में जी. पार्थसारथी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया था । पार्थसारथी इंदिरा गांधी के नीति सलाहकार (परामर्शदाता) एवं उनके विश्वासपात्र थे, साथ ही वे जवाहरलाल नेहरू परिवार के निकटवर्ती थे ।
२. पार्थसारथी ने तदुपरांत ‘राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पुनरावृत्ति समिति’ का गठन कर ५ सदस्यों की नियुक्ति की । मैं उन ५ सदस्यों में एक था । प्रथम बैठक में ही पार्थसारथी ने हमें इतिहास एवं सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तिकाएं ‘स्वच्छ’ (वास्तविक इतिहास छोड देने को) करने को कहा ।
३. मैंने पूछा कि पाठ्य पुस्तिकाओं में से क्या छोडना है ? तब पार्थसारथी ने मुझे कहा, ‘पाठ्यपुस्तिकाओं में मुगल शासक औरंगजेब द्वारा वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ ही सैकडों मंदिर उद्धवस्त करने का उल्लेख है । क्या इतिहास की पुस्तकों में इसकी आवश्यकता है ? ऐसी घटनाएं छात्रों के मन कलुषित करती हैं’ ।
४. इस उत्तर से मैं दंग रह गया तथा पार्थसारथी को पूछा, ‘यदि औरंगजेब ने वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर को उद्धवस्त नहीं किया, तो काशी विश्वनाथ मंदिर किसने उद्धवस्त किया ?’ इसका पार्थसारथी के पास कोई उत्तर न था ।
सत्य इतिहास प्रस्तुत करने पर दबाव (जोर) देनेवाले डॉ. भैरप्पा को समिति से निकाल दिया गया !
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पुनरावृत्ति समिति की बैठक की कार्यवाही का वर्णन करते हुए डॉ. भैरप्पा ने कहा, ‘मैंने पार्थसारथी को पूछा कि वाराणसी की मस्जिद को एकटक देखनेवाले नंदी को देखकर क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता है ? भविष्य में इस विषय पर यदि छात्र शिक्षक से प्रश्न पूछें, तो शिक्षक क्या उत्तर देंगे ? पार्थसारथी के पास इन प्रश्नों के उत्तर नहीं थे । पार्थसारथी मुझे उनके कक्ष में ले गए एवं कहा, ‘आप कर्नाटक से हैं तथा मैं तामिलनाडु से । हमें भाईयों की तरह रहना चाहिए । हमें लडना नहीं चाहिए’ । पार्थसारथी ने जो कहा, वह सुनकर मैं वापस आ गया । १५ दिनों के पश्चात आयोजित अगली बैठक में मैंने पुन: वही प्रश्न पूछे । पार्थसारथी ने क्रोधित होकर वहीं पर बैठक समाप्त कर दी । कुछ दिनों उपरांत एक सरकारी अधिसूचना प्रकाशित की गई, जिसमें कहा गया कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पुनरीक्षण समिति का पुनर्गठन किया गया है । उसमें से मेरा नाम नहीं था ।’
साम्यवादी इतिहासकारों की नियुक्ति कर वास्तविक इतिहास छुपाया गया !
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पुनरीक्षण समिति की ५ सदस्यीय रचना को स्थिर (बरकरार) रखा गया; परंतु मेरे स्थान पर एक साम्यवादी विचारधारा वाले इतिहासकार की नियुक्ति की गई थी । इस समिति ने इतिहास एवं सामाजिक अध्ययन की पुस्तकों में परिवर्तन कर छात्रों से वास्तविक इतिहास छुपाया । सर्व अध्याय साम्यवादी विचारधारा के अनुकूल थे । पाठ्यक्रम में बाहर के आक्रमणकारियों को ‘नायक’ के रूप में दिखाया गया था । इसके विपरीत भारत के वास्तविक धनकोष (खजाना), इतिहास एवं ज्ञान का उन पुस्तकों में कोई स्थान नहीं था ।
संपादकीय भूमिका
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