‘हमारे जठर में पाचक स्राव का रिसाव होता रहता है । इस पाचक स्राव के अन्ननलिका में आने पर, पित्त का कष्ट होता है । खट्टा, नमकीन, तीखा और तैलीय पदार्थ खाने से पित्त बढता है; परंतु ऐसा कुछ न खाते हुए भी कुछ लोगों को गले में और छाती में जलन होती है, अर्थात पित्त का कष्ट होता है । अनेक बार इसका कारण कोष्ठबद्धता भी होता है । कोष्ठबद्धता दूर होने के लिए उपचार करने पर यह कष्ट तुरंत न्यून होता है । आगे दिए गए प्राथमिक उपचार करके देखें । ‘गंधर्व हरीतकी वटी’ इस औषधि की २ से ४ गोलियां रात में सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ लें । कोष्ठबद्धता सहित भूख न लगना, भोजन न जाना, अपचन होना, पेट में वायु (गैस) होना, ऐसे लक्षण हों तो ‘लशुनादी वटी’ औषधि की १ – २ गोलियां दोनों बार के भोजन के १५ मिनट पहले चुभलाकर खाएं । इससे पाचक स्राव भली-भांति निर्माण होता है । कोष्ठबद्धता के लिए ये उपचार १५ दिन करें ।’
सोंठ डालकर उबाले हुए पानी में खमीर उठने पर उसका उपयोग न करें !
वर्षा काल में, सर्दियों के दिनों में, साथ ही वसंत ऋतु में (सर्दियों एवं गर्मियों के बीच के काल में) सोंठ का पानी पीने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है । सोंठ का पानी बनाने के लिए लोटे भर पानी में एक पाव चम्मच सोंठ का चूर्ण डालकर पानी उबालें और छान लें । प्यास लगने पर यह पानी दिनभर पीएं; परंतु कई बार एक दिन उपरांत इस पानी में खमीर उठता है अर्थात खटास आ जाती है, तब उस पानी का उपयोग न करें । हमें जितना आवश्यक है उतना ही पानी उबालकर उसी दिन उपयोग करें ।’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१३.९.२०२२)