ʻसाम्यवादʼ – एक निरर्थक शब्द !
‘सजीव प्राणियों में एक भी प्राणी दूसरे के समान नहीं होता। इतना ही नहीं उनकी विशेषताएं भी भिन्न होती हैं। तब भी ‘साम्यवाद’ शब्द का उपयोग करनेवालों की ‘बुद्धि किस स्तर की है’, यह समझ में आता है।’
‘सजीव प्राणियों में एक भी प्राणी दूसरे के समान नहीं होता। इतना ही नहीं उनकी विशेषताएं भी भिन्न होती हैं। तब भी ‘साम्यवाद’ शब्द का उपयोग करनेवालों की ‘बुद्धि किस स्तर की है’, यह समझ में आता है।’
‘प्रवचनकार और कीर्तनकार समाज को धर्म के विषय में थोडी-बहुत जानकारी देते हैं। उनके अतिरिक्त ऐसा करनेवाला समाज में और कोई नहीं है।’
ईश्वरीय राज्य की स्थापना ईश्वर स्वयं करते हैं अथवा संतों से करवा लेते हैं । ‘अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ईश्वर करें अथवा संतों से करवाएं’, इसके लिए हमारा उनका भक्त बनना आवश्यक है ।
‘छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, स्वातंत्र्यवीर सावरकर और क्रांतिकारियों की आलोचना कर गांधीजी की अहिंसा की प्रशंसा करनेवाले हिन्दुओं की स्थिति दयनीय हो गई है । इससे निकलने का एक ही मार्ग है और वह है, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना !’
कर्करोग से पीडितों को ठीक करने का आवाहन प्रसारमाध्यमों के सामने दिया । तब उन पादरियों ने मना कर दिया । इस प्रकार हिन्दुओं के धर्मांतर का प्रयत्न करनेवाले वहां के ईसाइयों का षड्यंत्र हमने उजागर कर रहे हैं । – श्री. कुरु ताई
अधिवक्ता कृष्णमूर्ति धर्मनिष्ठ अधिवक्ता हैं । उनका अखंड नामजप चलता है । यात्रा में वे प.पू. भक्तराज महाराजजी के भजन सुनते हैं । भजन सुनते-सुनते ‘यात्रा कब पूर्ण हुई’, यह समझ में ही नहीं आता ।
भजन सुनते समय उनकी आंखों में भावाश्रु आते हैं । धर्मकार्य के लिए वे अपने निजी खर्च कर विविध गांवों में जाकर हिन्दुत्वनिष्ठों की कानूनी सहायता करते हैं । उनका कार्य निरपेक्ष होता है ।
हिन्दू धर्म की निर्मिति किसने और कब की ? हिन्दू धर्म का महत्त्व क्या है तथा ‘हिन्दू’ किसे कहें ? इन प्रश्नोंके उत्तर पढिये “धर्मका मूलभूत विवेचन” इस ग्रंथ में
‘अनेक तथाकथित हिन्दू धर्मप्रेमियोंको लगने लगता है कि ‘मैं धर्म के लिए बडा कार्य करता हूं’; परंतु वास्तव में उनके द्वारा कुछ भी कार्य नहीं हुआ होता है ।पिछले कुछ वर्षाें में हिन्दू अधिवेशनों में आए कुछ हिन्दू धर्मप्रेमियों के अनुभव आगे दिए गए हैं ।
माया के भवसागर से शिष्य एवं भक्त को धीरे से बाहर निकालनेवाले, उससे आवश्यक साधना करवानेवाले तथा कठिन समय में उसे निरपेक्ष प्रेम से आधार देकर संकटमुक्त करनेवाले गुरु ही होते हैं । ऐसे परमपूजनीय गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन होता है गुरुपूर्णिमा !