विद्याधिराज सभागृह, १८ जून (संवाददाता) – मैं ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ के (पी.एफ्.आई. के) विरुद्ध अभियोग लड रहा हूं । इससे पूर्व यह अभियोग लडनेवाले अधिवक्ता ने यह अभियोग छोड दिया; क्योंकि वहांरोधात खटला लढत आहे. यापूर्वी हा खटला लढवणार्या अधिवक्त्यांनी या खटल्यातून माघार घेतली; कारण तेथे पी.एफ्.आई. के कोर्यकर्ता मैसुरू जिला न्यायालय के परिसर में हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ताओं के छायाचित्र खींचते, वीडियो बनाते थे तथा उन्हें धमकियां देते थे । मेरे संदर्भ में उन्होंने वही किया; परंतु नामस्मरण करने के कारण मुझे उनका भय नहीं लगा । मुझे मिल रही धमकियों के विषय में न्यायाधीश को ज्ञात होने पर मुझे सुरक्षा दी गई; परंतु तब भी मुझ पर आक्रमण हुआ । नामस्मरण करने के कारण अब मुझे किसी प्रकार का भय प्रतीत नहीं होता । उसके कारण हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ता यात्रा करते समय, अभियोग की सुनवाई आरंभ होनेतक तथा जब जब समय मिलेगा, तब नामस्मरण करें । यहां सनातन संस्था जो स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया सिखाती है, उसे सिखकर अपनाएं । उससे हम समाज की नकारात्मक शक्तियों से लडकर हिन्दू राष्ट्र ला सकते हैं; ऐसा प्रतिपादन कर्नाटक के हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ता कृष्णमूर्ती पी. ने किया । वैश्विक हिन्दू महोत्सव में ‘पी.एफ्.आई. भविष्यकालीन संकट’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।
१. इस समय उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों से ‘अधिवक्ता कृष्णमूर्ति की ओर देखकर क्या लगता है ?’, यह सूक्ष्म का प्रयोग करवा लिया गया । उस समय अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों ने ‘अधिवक्ता कृष्णमूर्ति की ओर देखकर प्रसन्नता प्रतीत हुई’ तथा ‘उनके मुख पर साधना का तेज प्रतीत हुआ’, ऐसा बताया । अधिवक्ता कृष्णमूर्ति के विषय में बोलते हुए नासिक के हिन्दुत्वनिष्ठ रवींद्र पाटील, यती मां चेतनानंद सरस्वती, प्रसन्न अय्यर, कुमार रेड्डी आदि ने उन्हें प्रतीत सूत्र बताए ।२. इस अवसर पर सनातन संस्था के धर्मप्रचारक पू. रामानंद गौडाजी ने कहा, ‘‘अधिवक्ता कृष्णमूर्ति धर्मनिष्ठ अधिवक्ता हैं । उनका अखंड नामजप चलता है । यात्रा में वे प.पू. भक्तराज महाराजजी के भजन सुनते हैं । भजन सुनते-सुनते ‘यात्रा कब पूर्ण हुई’, यह समझ में ही नहीं आता ।’, ऐसा वे बोलते हैं । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी एवं श्रीकृष्ण के प्रति उनके मन में बहुत भाव है तथा वे उनके विषय में कितने भी लंबे समयतक बोल सकते हैं । न्यायालयीन प्रकरणों तथा उनके लिए यात्रा करते समय वे अपने धन का व्यय करते हैं । एक बार एक अभियोग के लिए वे ३-४ घंटे यात्रा कर न्यायालय पहुंचे थे; परंतु वहां जाने पर वहां के न्यायाधीश के छुट्टी पर होने का उन्हें ज्ञात हुआ । अन्य अधिवक्ता ने जब उन्हें इस विषय में पूछा, तब उन्होंने ‘ईश्वरेच्छा !’, ऐसा उत्तर दिया । ऐसा होने के विषय में उनके मन में किसी प्रकार का विचार अथवा प्रतिक्रिया नहीं आई थी । कुछ दिन पूर्व जब उन पर आक्रमण हुआ, उस समय उन्होंने ‘परमपूज्य गुरुदेवजी ने मेरी रक्षा की है । मुझे अभी बहुत कार्य करना है’, ऐसा बताया । अब उन्होंने कर्नाटक राज्य के अधिवक्ताओं का संगठन करने का दायित्व स्वीकार किया है । |