‘अनेक तथाकथित हिन्दू धर्मप्रेमी ‘गोशालाएं तथा मंदिरों का निर्माण करना, साथ ही हिन्दुओं की बैठकें, मंदिरों में भजन, कीर्तन, प्रवचन एवं ‘लव जिहाद’ के विषय पर व्याख्यानों का आयोजन करते हैं तथा उससे उन्हें लगने लगता है कि ‘मैं धर्म के लिए बडा कार्य करता हूं’; परंतु वास्तव में उनके द्वारा कुछ भी कार्य नहीं हुआ होता है ।
पिछले कुछ वर्षाें में हिन्दू अधिवेशनों में आए कुछ हिन्दू धर्मप्रेमियों के अनुभव आगे दिए गए हैं ।
१. हिन्दू धर्मप्रेमियों का अहंकार !
अ. हिन्दू धर्म के लिए बहुत ही अल्प कार्य करनेवाले एक कीर्तनकार हिन्दू अधिवेशन में ‘हम कितना बडा कार्य करते हैं !’, यह बताते रहते हैं ।
आ. देश की एक समस्या के संदर्भ में कार्य करनेवाले एक अधिवक्ता के भाषण में ‘‘मैंने यह किया, मैंने वह किया’, ऐसे ‘मैं’पन के भाव होते हैं । वास्तव में देखा जाए, तो अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों का कार्य उनसे अनेक गुना अधिक है ।
२. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के संदर्भ में साधना का महत्त्व समझ में न आए तथा उसके कारण दिशाहीन बन चुके हिन्दुत्वनिष्ठ !
अ. एक विचारक ने अपने भाषण में मत व्यक्त किया कि ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए कार्य करनेवाले हिन्दू नेताओं को साधना पर ध्यान केंद्रित करने की अपेक्षा स्वयं का राजनीतिक प्रभाव बढाकर राजनीतिक दलों को हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के लिए बाध्य करना चाहिए ।’
आ. ‘राजनीतिक माध्यमों से हिन्दू राष्ट्र आएगा’, ‘घरवापसी’ करवाने से ही हिन्दू राष्ट्र आ सकता है’, ‘मात्र नामजप करना पर्याप्त है तथा उससे ही हिन्दू राष्ट्र आएगा’, ऐसा भी कुछ लोगों का कहना होता है ।
इ. हिन्दुत्व के कार्य के लिए अपना व्यवसाय बंद करनेवाले एक बुद्धिजीवी ‘बौद्धिक स्तर पर हिन्दू राष्ट्र होगा’, ऐसा विश्लेषण कर रहे थे । ‘इस संदर्भ में आध्यात्मिक स्तर पर कुछ नहीं होगा’, ऐसा उनका कहना था ।
ई. एक स्वेच्छानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी ‘भ्रष्टाचार के निर्मूलन के लिए समाज के लोगों का साधक बनना महत्त्वपूर्ण है’, इसे समझ लेने की अपेक्षा चुनाव लडने का विचार कर रहे हैं । उसके लिए उन्होंने राजनीतिक दल की स्थापना की है ।
उ. एक हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ता ‘एक हिन्दुत्वनिष्ठ राजनीतिक दल को जब दो तिहाई बहुमत मिलेगा, तब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी’, ऐसा मत व्यक्त करते हैं ।
ऊ. एक हिन्दुत्वनिष्ठ कहते हैं, ‘कानून में संशोधन करने से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना संभव होगा ।’
ए. कुछ धर्मप्रेमियों को लगता है, ‘अब युद्ध का काल निकट आ चुका है । ऐसे में ये सनातन के साधक साधना क्या बताते हैं ? अब साधना करने का कोई उपयोग नहीं है ।’
३. हिन्दू अधिवेशनों की अवधि में मुझसे मिलने आनेवाले अनेक लोग साधना न करनेवाले तथा अहंभावी होते हैं ।
हिन्दुओं के पतन का प्रमुख कारण है धर्मशिक्षा का अभाव ! हिन्दू धर्म के लिए आवश्यक कार्य है स्वयं साधना कर हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देना तथा उनसे साधना करवाना ! तथाकथित हिन्दू धर्मप्रेमी यह नहीं करते; इसलिए उनसे धर्मरक्षा का कोई भी कार्य नहीं होता ।
हिन्दुओं की रक्षा के लिए ‘हिन्दुओं से धर्म का अध्ययन तथा साधना करवा लेना’ अति आवश्यक है । उस दृष्टि से हिन्दू जनजागृति समिति विभिन्न स्थानों पर धर्मशिक्षावर्ग तथा सनातन संस्था सत्संग ले रही है ।
साधना करने से हमें ईश्वर के आशीर्वाद, साथ ही देवताओं की शक्ति मिलती है तथा वह कार्य अधिक प्रभावी एवं फलदायी होता है । इसका साक्षात उदाहरण हैं छत्रपति शिवाजी महाराज ! अतः जिन लोगों को लगता है कि ‘धर्म के लिए कुछ करना चाहिए’, वे अपने मन से कुछ करने की अपेक्षा धर्मशिक्षावर्गाें अथवा सत्संगों में सिखाए अनुसार साधना करें । वानरों ने रामनाम लेकर पानी में जो पत्थर फेंके, वो पत्थर पानी पर तैरने लगे तथा उससे ही रामसेतु का निर्माण हुआ । इस उदाहरण से बोध लेकर हमने साधना के रूप में नामजप करते हुए कार्य किया, तो उससे बहुत शीघ्र हिन्दू धर्म की रक्षा का तथा प्रचार का उचित कार्य संपन्न होगा ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले