सनातन के मराठी एवं हिन्दी ‘ई-बुक’ ‘अध्यात्मका प्रस्तावनात्मक विवेचन’ का लोकार्पण !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी के करकमलों से ३ जुलाई २०२३ अर्थात गुरुपूर्णिमा के दिन सनातन के मराठी एवं हिन्दी भाषा के ‘ई-बुक’ ‘अध्यात्मका प्रस्तावनात्मक विवेचन’ का लोकार्पण किया गया ।

भारत में अपराध की प्रविष्टि अल्प संख्या में होने के कारण

‘अधिकांश लोग पुलिस थाने में शिकायत लिखवाने नहीं जाते; क्योंकि उन्हें ज्ञात होता है कि वहां समय व्यर्थ होगा। कभी-कभी पुलिसकर्मियों की उद्दंडता के कारण अपमान सहना पडेगा और अंत में हाथ कुछ नहीं आएगा ।’

भ्रष्टाचार न रोक पाने का एकमात्र कारण है, सरकार की इच्छा का अभाव !

फ्लैट बेचनेवाले ५-१० लोगों का भ्रष्टाचार सामने आ जाए और उन्हें तत्काल कठोर दंड मिल जाए, तो सभी फ्लैट बेचनेवाले काले धन का व्यवहार तत्काल रोक देंगे । इसी प्रकार से सभी क्षेत्रों में और सरकारी कार्यालयों में हो रहा भ्रष्टाचार रोका जा सकता है ।

तथाकथित सर्वधर्म समभाव !

पूरे संसार की स्थिति एवं व्यवस्था उत्तम रहना, प्रत्येक प्राणीमात्र की ऐहिक उन्नति अर्थात अभ्युदय होना तथा पारलौकिक उन्नति भी होना अर्थात मोक्ष प्राप्त होना, यह तीन बातें जिससे साध्य होती है उसे ‘धर्म’ कहते हैं । – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

कहां देवालय का दोहन करनेवाले स्वतंत्रता से लेकर अभी तक के शासनकर्ता और कहां देवालय का ध्यान रखनेवाले पूर्वकाल के राजा !

‘पूर्वकाल के राजा देवालय बनाते थे तथा देवालय को भूमि एवं धन अर्पण करते थे । आजकल के शासनकर्ता सड़क बनाने के अथवा अन्य किसी बहाने देवालय ध्वस्त करते हैं तथा देवालय की भूमि तथा धन का दोहन करते हैं ।’

भारत की पराकोटि की अधोगति का कारण एवं उसका उपाय

‘भारत की पराकोटि की अधोगति होने का एकमात्र कारण है ‘रोग न हो, इसके लिए उपाय न कर, रोग होने पर ऊपरी उपाय करनेवाली स्वतंत्रता से लेकर अभी तक की सभी सरकारें ! इसका एकमात्र उपाय है हिन्दू राष्ट्र की स्थापना !’

केवल संत महात्माओं के कारण हिन्दू धर्म बचा हुआ है !

हिन्दू धर्म का जो थोड़ा-बहुत प्रसार होता है, वह केवल धर्मज्ञानी संत-महात्माओं के कारण । संत महात्माओं के कारण हुई अनुभूतियों के कारण भी कुछ हिन्दुओं की धर्म पर श्रद्धा है। – – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

सनातन का आगामी ग्रंथ

प्रस्तुत खण्ड में परात्पर गुरु डॉक्टरजी की अभ्यासवर्गाें में सिखाने की अलौकिक पद्धति, परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा अभ्यासवर्गाें में आनेवाले साधकों को चूकों का भान कराकर साधकों को साधना में आगे ले जाना इत्यादि के विषय में साधकों द्वारा कृतज्ञभाव से लिखकर दिए अनेक सूत्र समाविष्ट हैं ।

विविध कलाओं में प्रवीण विद्यार्थियों को अध्यात्म एवं कला एक-दूसरे से जोडकर साधना कैसे करनी है, यह सिखानेवाला महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय !

‘संगीत वर्ग में अथवा रेडियो पर वार्तालाप के माध्यम से अनके लोगों तक महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोधकार्य का विषय पहुंचा है । आगे विविध गुरुकुल, इन्स्टिट्यूट, एकेडमी में भी यह इसी प्रकार पहुंचेगा और यह विषय समझने पर उनमें से जो जिज्ञासु होंगे, उन्हें इस विषय का महत्त्व समझ में आएगा