साधना में प्रगति होने हेतु ‘शरणागतभाव’ का अनन्यसाधारण महत्त्व होने से ‘शरणागति’ निर्माण होने के सर्वाेच्च श्रद्धास्रोत अर्थात सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

शरणागत साधक के स्वभावदोष एवं अहं के निर्मूलन का दायित्व भगवान (गुरु) स्वीकारते हैं । ‘शरणागति’ चित्त को शुद्ध एवं विशाल बनानेवाली कृति है ।

‍विज्ञान एवं ज्योतिषशास्त्र में भेद !

आधुनिक विज्ञान विभिन्न ग्रहों की केवल पृथ्वी से दूरी और उनकी भौगोलिक स्थिति ही बताता है। इसके विपरीत ज्योतिषशास्त्र ग्रहों का मानव पर होनेवाला परिणाम, अनिष्ट परिणाम से बचने के उपाय इत्यादि सब बताता है ।

बुद्धिप्रमाणवादियों की बुद्धि की सीमा !

‘जो संत कहते हैं, वह सब झूठ है’, ऐसा बुद्धिप्रमाणवादियों द्वारा कहना वैसा ही है; जैसा किसी शिशुमंदिर के बालक का ‘डॉक्टरेट’ प्राप्त व्यक्ति को ‘आप जो कहते हैं, सब झूठ है’, ऐसा कहने के समान है !’

स्वेच्छा नहीं, ईश्वरेच्छा श्रेष्ठ है !

‘ऐसा प्रतीत होना कि पुनः जन्म ही ना हो अथवा यह कि भक्ति करने के लिए बार बार जन्म हो, ये दोनों ही स्वेच्छा है । इससे आगे का चरण है ऐसा लगना कि सब कुछ ईश्वर की इच्छा के अनुसार हो !’

वेद-उपनिषद इत्यादि अध्यात्म संबंधी ग्रंथों का महत्त्व

‘युद्ध एक तात्कालिक समाचार होता है। आगामी ५० – ६० वर्षों में ही युद्ध का इतिहास भुला दिया जाता है, उदा. प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध एवं उससे पूर्व के सभी युद्ध । इसके विपरीत अध्यात्म संबंधी वेद-उपनिषद इत्यादि ग्रंथ चिरकाल से बने हुए हैं ।’

‘दोनों हथेलियों की एकत्रित मुद्रा’ कर शरीर पर से कष्टदायक शक्ति का आवरण निकालने की पद्धति !

गुरुकृपा से ही शरीर पर से आवरण निकालने की इन पद्धतियों को ढूंढ पाए । इसके लिए हम साधक श्री गुरु के श्रीचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ।

युवावस्था में ही साधना करने का महत्त्व !

‘वृद्ध होने पर यह अनुभव होता है कि ‘वृद्धावस्था क्या होती है ?’ वह अनुभव करनेपर लगता है कि ‘वृद्धावस्था देनेवाला पुनर्जन्म नहीं चाहिए ।’ परंतु उस समय साधना कर पुनर्जन्म से बचने का समय बीत चुका होता है । ऐसा न हो; इसके लिए युवावस्था में साधना करें ।’

हिन्दुओं द्वारा प्रतिदिन मार खाने का कारण !

‘धर्म के लिए अन्य धर्मी एकजुट हो जाते हैं, जबकि संकीर्ण वृत्ति के हिन्दू केवल जाति के लिए एकजुट होते हैं और अन्य जाति के स्वधर्मियों से लडते हैं । इसलिए हिन्दू प्रतिदिन मार खाते हैं ।

‘मीनार (टॉवर) मुद्रा’ द्वारा शरीर पर आया आवरण निकालने की पद्धति

सहस्रारचक्र पर पकडी हुई ‘मीनार’ मुद्रा (‘टॉवर’ की मुद्रा), साथ ही ‘पर्वतमुद्रा’ के कारण अनिष्ट शक्तियों का कष्ट शीघ्र दूर होने में सहायता मिलना