कलियुग के प्रथम वेदऋषि पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी !

भारतीय संस्कृति’ शब्द का अर्थ यहां ‘वैदिक संस्कृति, हिन्दू धर्म अथवा सनातन धर्म’ है और यह सर्वाेत्तम शिक्षा का सुदृढ आधार है । उसी आधार पर प्रस्तुत पुस्तक की रचना की गई है ।

स्मृतिकार एवं गोत्रप्रवर्तक पराशर ॠषि का तपोस्थल एवं ‘पराशर ताल’ के श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने किए दर्शन !

हिमाचल प्रदेश को ‘देवभूमि हिमाचल’ कहा जाता है । युग-युग से हिमाचल प्रदेश देवताओं एवं ऋषि-मुनियों का निवासस्थान रहा है । यहां वसिष्ठ, पराशर, व्यास, जमदग्नि, भृगु, मनु, विश्वामित्र, अत्री आदि अनेक ऋषियों की तपोस्थली, साथ ही शिव-पार्वती से संबंधित अनेक दिव्य स्थान हैं ।

घनघोर आपातकाल में अपनी सुरक्षा हेतु अच्छी साधना करके भगवान का भक्त बनना ही आवश्यक है ! – पूज्य नीलेश सिंगबाळ, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृति समिति

कोरोना के इस महामारी के काल में सभी को यह अनुभव हो गया होगा कि ईश्वर की भक्ति ही हमारी रक्षा कर सकती है । समाज साधना कर आध्यात्मिक बल अर्जित कर सके इस उद्देश्य से ८ मास पूर्व सनातन संस्था की ओर से पूरे देश में ऑनलाइन सत्संग शृंखला का आयोजन किया गया ।

रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर प्रवचन

रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस के अवसर पर दिल्ली के साईदुला जेब, एमबी रोड स्थित लिटिल वन पब्लिक स्कूल में सनातन संस्था द्वारा ऑनलाइन प्रवचन का आयोजन किया गया ।

वराड (जिला सिंधुदुर्ग) के महान संत प.पू. परूळेकर महाराजजी का देहत्याग !

वराड, सिंधुदुर्ग के महान संत प.पू. परूळेकर महाराज (आयु ८४ वर्षे) ने यहां के ‘श्रीरामनगरी’ आश्रम में २८ जून २०२१ को सवेरे ९ बजे देहत्याग किया ।

रायगड के प्रख्यात वैद्य, सनातन के ३५ वें संत आयुर्वेद प्रवीण पू. वैद्य विनय भावेजी का देहत्याग !

मूलतः वसई जिला रायगड के प्रख्यात वैद्य तथा सनातन के ३५ वें संत आयुर्वेद प्रवीण पू. वैद्य विनय नीळकंठ भावेजी (आयु ६९ वर्ष) ने २५ जून को रात १० बजे रत्नागिरी में देहत्याग किया । वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे ।

अपेक्षा करना अहं है !

अपेक्षा करना’ अहं का लक्षण है । अपेक्षापूर्ति होने पर तात्कालिक सुख मिलता है; परंतु इससे अहं का पोषण होता है और यदि अपेक्षा के अनुरूप नहीं होता तो दुःख होता है, अर्थात दोनों ही प्रसंगों में साधना की दृष्टि से हानि ही होती है ।’

गुरुकार्य हेतु अर्पण स्वरूप में प्राप्त धन का अपव्यय करनेवालों की जानकारी सूचित करें !

अनेक शुभचिंतक समय-समय पर सनातन के राष्ट्र और धर्म कार्य हेतु धन अथवा वस्तु अर्पण करते हैं । यह अर्पण उचित स्थान पर पहुंचाना प्रत्येक साधक का कर्तव्य है; परंतु ऐसा देखने में आया कि एक स्थान पर अर्पण का अपव्यय हुआ है ।

साधको प्रत्येक क्षण साधना के लिए उपयोग कर साधना की फलोत्पत्ति बढाएं और आध्यात्मिक उन्नति का ध्येय शीघ्र प्राप्त करें !

साधक द्वारा साधना में उन्नति कर मन के संस्कार न्यून करना अपेक्षित है । सामाजिक माध्यमों पर विनोद, मनोरंजन, समाचार इत्यादि देखने के कारण साधक के मन पर नए संस्कार अंकित होते हैं ।

‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ एवं ‘श्री निर्विचाराय नमः ।’ नामजप भाव के स्तर के होना

साधक को निर्गुण स्थिति प्राप्त होने तक उसके मन में भाव होता ही है तथा मन को भाव का अभ्यास होता ही है । इसका लाभ लेकर यह नामजप भाव के स्तर पर करने से इस नामजप का फल अधिक मात्रा में मिलता है ।