परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा बताई गई ‘गुरुकृपायोगानुसार साधना’ एवं उनके कृपाशीर्वाद के कारण ‘गुरुपूर्णिमा २०२१ तक सनातन के १११ साधक संत बने, तथा १ सहस्र ३८१ साधक संतपद की ओर अग्रसर हैं । (इसका अर्थ कुल १ सहस्र ४९२ साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो चुके हैं ।)’ दैनिक ‘सनातन प्रभात’, साथ ही सनातन द्वारा प्रकाशित ग्रंथ इत्यादि में यह वाक्य प्रकाशित किया गया है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के विविध महान कार्यों में से यह केवल एक कार्य है; परंतु ईश्वर ने गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में इस कार्य की अद्वितीयता का ध्यान दिलानेवाले कुछ सूत्र सुझाए, जिन्हें श्री गुरुचरणों में समर्पित कर रहा हूं ।
१. कलियुग की दृष्टि से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संतों एवं साधकों को तैयार करने का महत्त्व !
१ अ. कलियुग के अन्य महान गुरु, उनका शिष्य परिवार और उनके अन्य अनुयायियों के कार्य !
१. कलियुग में सैकडों की संख्या में शिष्यपरिवारवाले कुछ महान गुरु हुए । उनके शिष्यपरिवार में से अनेक शिष्य संत (७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के) थे; परंतु इसके संदर्भ में वस्तुनिष्ठ आंकडे उपलब्ध नहीं है । आदि शंकराचार्यजी की परंपरा में भी अनेक शिष्य हुए ।
२. आज भी इन महान गुरुओं की परंपरा में सैकडों अनुयायी हैं, जो कुछ मात्रा में धर्मकार्य कर रहे हैं । आज भी उन गुरुओं के आश्रमों का अस्तित्व है; परंतु उनके अनुयायियों में से ‘कितने लोग संत अथवा शिष्य स्तर के (५५ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के) हैं’, यह नहीं कहा जा सकता ।
१ आ. परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने सैकडों शिष्य अथवा उससे भी अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक तैयार किए ।
१ आ १. कलियुग में सच्चे संतों का मिलना दुर्लभ होते हुए भी परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा १११ संत तैयार करना : उक्त महान गुरुओं की तुलना में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का साधकवर्ग न्यून है । कलियुग में सच्चे संतों को ढूंढना कठिन होते हुए भी ऐसे प्रतिकूल काल में भी परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा बताई साधना कर केवल २५ से ३० वर्ष की अवधि में ही १११ साधकों का संतपद प्राप्त करना तो परात्पर गुरु डॉक्टरजी का अद्वितीय कार्य है । आज के समय में ऐसा उदाहरण ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा ।
१ आ २. परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा से सहस्रों साधकों का साधनारत होना : सनातन में परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा से ५५ से ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के अर्थात शिष्य स्तर के कुछ सहस्र साधक हैं । शिष्य स्तर के ऐसे अनेक साधक, ६१ प्रतिशत से अधिक स्तर के १ सहस्र ३८१ साधक एवं १११ संत साधनारत हैं । समाज की सात्त्विकता बढाने की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण है ।
२. अवतारों का कार्य एवं परात्पर गुरु डॉक्टरजी का कार्य
२ अ. सहस्रों जीवों को मुक्त करनेवाले पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण ! : द्वापरयुग में पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से युद्ध के उपरांत पांडवों सहित अनेक रथी-महारथी भी जीवनमुक्त हुए । पांडवों, भीष्म, द्रोणाचार्य आदि अलग-अलग देवताआें के अवतार ही उस समय कार्यरत थे । उसके उपरांत आज तक इतनी बडी संख्या में साधक जीवों को मोक्षप्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करानेवाला अन्य कोई हुआ हो, ऐसा सुनने में नहीं आया है । जो परमभाग्य महाभारत के रथी-महारथियों एवं गोप-गोपियों को प्राप्त था, वही परमभाग्य सनातन के साधकों को प्राप्त है । सनातन के केवल ३० वर्षों के कार्य में ही इतने साधकों को मोक्षप्राप्ति के पथ पर अग्रसर करना, तो बुद्धिअगम्य दैवी कार्य ही है !
२ आ. साधकों का उद्धार करनेवाले परात्पर गुरु डॉक्टरजी : श्रीकृष्णजी के अवतार का मुख्य प्रयोजन ‘सज्जनों की रक्षा, दुर्जनों का विनाश एवं धर्मसंस्थापना’ था । आज के महर्षिविदित श्रीविष्णु के अवतार ‘गुरुरूप’ परात्पर गुरु डॉक्टरजी के रूप में ही हैं । वे प्रमुखता से साधकों के उद्धार हेतु अर्थात साधकों को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त कराने हेतु हैं ।
३. ऋषि-मुनियों के कार्य एवं परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कार्य में निहित अंतर !
सत्य, त्रेता एवं द्वापर युगों में अनेक महान महर्षि, ऋषि-मुनि इत्यादि हुए । उन सभी ने आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए मोक्षप्राप्ति हेतु इच्छुक जीवों का मार्गदर्शन किया; परंतु उस काल में संबंधित जीवों को कठोर साधना करनी पडती थी । महर्षियों की विशेषता यह थी कि आवश्यकता पडने पर उन्होंने देवताओं और अवतारों का भी मार्गदर्शन किया है; परंतु एकाध अन्य अपवाद को छोड दिया जाए, तो धर्मसंस्थापना के कार्य में प्रत्यक्षरूप से उनका सहभाग नहीं था ।
परात्पर गुरु डॉक्टरजी साधकों का मोक्षप्राप्ति के संदर्भ में मार्गदर्शन कर रहे हैं, साथ ही समष्टि साधना के रूप में हिन्दू राष्ट्र का (ईश्वरीय राज्य का) महत्त्व भी विशद कर रहे हैं । साधकों की आध्यात्मिक उन्नति तीव्रगति से होने में इसका लाभ मिल रहा है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ‘साधकों की आध्यात्मिक उन्नति एवं हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’, इन दोनों कार्यों में से ‘साधकों की आध्यात्मिक उन्नति’ के कार्य को ही अधिक प्रधानता देते हैं, यह हम सभी का अनुभव है । उसके कारण सप्तर्षि, महर्षि भृगु इत्यादि को सनातन का कार्य अपना लगता है और वे सनातन का मार्गदर्शन करते हैं ।
४. जन्म-मृत्यु के चक्र से साधकों को मुक्ति मिलने के पीछे परात्पर गुरु डॉक्टरजी ही हैं !
आज के इस घोर कलियुग में सनातन के साधकों ने सत्य, त्रेता अथवा द्वापर युगों जितने सहस्रों वर्षों की साधना, कठोर तप एवं अनुष्ठान आदि नहीं किया है; परंतु तब भी उनकी आध्यात्मिक उन्नति तीव्रगति से हो रही है ।
टिप्पणी १ : केवल ‘गुरुकृपायोगानुसार साधना’ करने से तुरंत उन्नति होगी, ऐसा नहीं है; परंतु उसे करते समय परात्पर गुरु डॉक्टरजी की हम पर अधिकाधिक कृपा कैसे होगी, इसके लिए भी प्रयास हुए, तो तीव्रगति से उन्नति हो सकती है ।
उक्त सारणी से यह स्पष्ट होता है कि ‘साधकों के जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के पीछे परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा का ही महत्त्वपूर्ण योगदान है ।’ इसलिए आज से ही अगले वर्ष की गुरुपूर्णिमा की दृष्टि से तैयारी आरंभ कर स्वयं पर परात्पर गुरु डॉक्टरजी की अधिकाधिक कृपा होने हेतु प्रयास किए, तो जन्म-मृत्यु के चक्र से हमारी भी मुक्ति होगी, साथ ही आगे-आगे के स्तरों तक पहुंचने में समय भी नहीं लगेगा ।
कुल मिलाकर इस समस्त विवेचन से ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी का कार्य कितने उच्च स्तर पर चल रहा है’, इसका थोडा आकलन तो होता ही है । उनकी महानता को समझना मेरी कल्पना से परे है । आज परात्पर गुरु डॉक्टरजी हैं; इसलिए हम मोक्षप्राप्ति के सर्वोत्तम पथ पर सहजता से अग्रसर हैं । हम पर यह उनकी निहित अनंत कृपा ही है । उनकी इस कृपा के लिए हमने हमारी प्रत्येक सांस के साथ उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त की, तब भी वह अल्प ही है !
बस रहे मन में कृतज्ञता । कृतज्ञताऽ । कृतज्ञताऽऽ ॥’ – श्री. सागर निंबाळकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१.७.२०२०)
परात्पर गुरु डॉक्टरजी के अवतारत्व के विषय में विविध
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