परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने पूर्व में पू. राणेजी के संदर्भ में व्यक्त किए गौरवोद्गार !
‘सर्वस्व का त्याग, अखंड सेवा, सब के प्रति प्रेम, किसी के भी विषय में कभी शिकायत न करना इत्यादि अनेक गुणविशेषताओंवाले पू. राणेजी ने केवल साधकों के ही नहीं, अपितु अनेक संतों के सामने भी ‘आदर्श संत कैसे हों ?’ इसका उदाहरण रखा है ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
ठाणे (महाराष्ट्र) – मूलतः सिंधुदुर्ग जिले में स्थित ओझरम गांव के निवासी तथा वर्तमान में ठाणे में वास्तव्य करनेवाले सनातन के ४७ वें संत पू. रघुनाथ वामन राणेजी (पू. राणेजी) (आयु ८२ वर्ष) ने ११ जुलाई २०२१ को उत्तररात्रि २ बजे ठाणे के रुग्णालय में देहत्याग किया । उनके पश्चात पत्नी, २ सुपुत्र, १ सुपुत्री, एक बहू, जमाई तथा पोते-पोती, ऐसा परिवार है । १२ जुलाई को उनके पार्थिव शरीर पर बाळकुम, ठाणे मेें अंतिम संस्कार किया गया ।
पू. राणेजी ने वर्ष १९९९ मेें, अर्थात आयु के ६० वें वर्ष में सनातन के मार्गदर्शनानुसार साधना आरंभ की । केवल १६ वर्ष में तीव्र लगन से साधना कर वे संतपद पर विराजमान हुए । १५.३.२०१५ को उन्हें ‘सनातन के ४७ वें संतरत्न’ के रूप में घोषित किया गया । उन्होंने वर्ष २०११ से २०१५ की कालावधि में रत्नागिरी जिले के खेड तहसील में स्थित आयनी-मेटे के तपोधाम में सेवा की थी ।
‘पू.राणेजी को ‘उत्तम किसान’ का पुरस्कार प्राप्त हुआ । उन्होंने खेती के साथ ‘आरोग्य रक्षक’ एवं ‘होम गार्ड’ का भी कार्य किया ।