कृतज्ञभाव

अ. ‘साधना में आने के कारण हम इसी जन्म में जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होनेवाले हैं, इसके प्रति कृतज्ञता ।

आ. प्रत्येक साधक में गुण होते हैं । उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर उन गुणों को सीखना ।

इ. हमारे दोष बतानेवालों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना ।

इ. भगवान से कृतज्ञता व्यक्त करना; क्योंकि उन्होंने हमें ‘साधना करो’, ऐसा बताया और उसके लिए आवश्यक व्यवस्था भी उन्होंने ही की, उदा. भोजन, वस्त्र, रहने के लिए सभी सुविधाएं, कदम-कदम पर मार्गदर्शन इत्यादि ।’

– कु. भाविनी कपाडिया, रामनाथी, गोवा.

एका साधिका द्वारा श्रीकृष्णजी के चरणों में ‘कृतज्ञता’ व्यक्त कर की गई प्रार्थना !

१. हे श्रीकृष्णजी, जन्म लेने से पूर्व और जन्म लेने के उपरांत जीवन के प्रति क्षण आप मेरे साथ थे, हैं और रहेंगे; इसलिए मैं कृतज्ञ हूं !

२. मनुष्यजन्म प्रदान कर आपने इस जीवन को सार्थक बनाया और परात्पर गुरु डॉक्टरजी भी साक्षात आप ही हैं जो गुरु के रूप में हमें प्राप्त हुए हैं; इसलिए मैं आपके चरणों में कृतज्ञ हूं ! साथ ही सनातन समान ‘न भूतो न भविष्यति’ ऐसे संस्था में मुझे लाया; इसलिए हे श्रीकृष्ण, आपके चरणों में कृतज्ञ हूं !

– एक साधिका, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.