‘एक बार हम परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा की गई गुरुसेवा की चर्चा कर रहे थे । तब श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने निम्नांकित मार्गदर्शन किया ।
१. ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को प्राप्त संत भक्तराज महाराजजी के सान्निध्य की तुलना में साधकों को परात्पर गुरुदेवजी का सान्निध्य अधिक मिलने से वे सौभाग्यशाली हैं !’
‘संत भक्तराज महाराजजी के देहत्याग उपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने गुरुतत्त्व को पहचानकर (गुरुतत्त्व से सान्निध्य रखकर) व्याप क कार्य किया । प्रत्यक्ष रूप से उन्हें उनके गुरुदेवजी का सान्निध्य बहुत अल्पावधि के लिए ही प्राप्त हुआ । उस तुलना में हम सभी को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का बहुत सान्निध्य मिला और न जाने कितनी बातें सीखने को मिल रही हैं । इसलिए सनातन के हम सभी साधक बहुत सौभाग्यशाली हैं ।
२. परात्पर गुरुदेव डॉ. आठवलेजी द्वारा उठाए गए अथक परिश्रम के कारण ही ‘सनातन’ के बीज ने वटवृक्ष का रूप धारण कर लिया है
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने असीम परिश्रम उठाकर अपने शरीर की चिंता किए बिना साधकों के लिए सबकुछ खडा किया । उन्होंने सनातन संस्था की स्थापना, सनातन के आश्रमों का निर्माण कर सभी साधकों को तैयार किया । उनके द्वारा उठाए गए परिश्रम के कारण ही आज ‘सनातन’ नामक बीज ने वटवृक्ष का रूप धारण कर लिया है । आज हम इस वृक्ष के फलों का आनंद उठा रहे हैं । अंतिम श्वास तक गुरुदेवजी के चरणों में कृतज्ञता के साथ रहना, हम सभी साधक इतना ही कर सकते हैं ।’
३. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा ‘कृतज्ञता’ शब्दों से परे होने से वह भाव से भी उच्च है’, ऐसा बताना
एक बार श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने हमें कृतज्ञता के संदर्भ में बहुत सुंदर दृष्टिकोण दिया । उन्होंने कहा, ‘शब्दों का अस्तित्व मिटना ही कृतज्ञता है !’ हम भाव को शब्दों में रख सकते हैं और उसे व्यक्त भी कर सकते हैं; परंतु शब्दों से परे होने से कृतज्ञभाव से भी उच्च है । शब्दों से परे कृतज्ञता का विश्व हमें ईश्वर तक पहुंचाता है । शब्दों से परे विश्व निराकार होता है । ईश्वर भी निराकार हैं; इसलिए साधना में कृतज्ञता का बडा महत्त्व है ।
‘कृतज्ञता क्या है ?’ यह सिखानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं ‘सनातन के सभी साधक प्रत्यक्ष रूप से कृतज्ञता में कैसे रहें,’ यह सिखानेवाली श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के चरणों में हम कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं । ‘हम सभी साधकों को शब्दों से परे उस कृतज्ञभाव में निरंतर रहना संभव हो’, यही गुरुदेवजी के चरणों में प्रार्थना है !’
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१५.६.२०१८)