परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी और श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी देवी ही हैं । देवी से मिलने देवी (श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी) गई थी । देवी ने इस भेंट का आनंद वर्षा के रूप में व्यक्त किया ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ द्वारा शेषनाग की फूंक से उत्पन्न ‘मणिकर्ण तप्तकुण्ड’ (जनपद कुलु) स्थान का किया हुआ अवलोकन !

देवी पार्वती के कर्णाभूषण में स्थित मणि जहां गिरी, वह स्थान है मणिकर्ण स्थित ‘तप्तकुंड’ ! यहां की यह विशेषता है कि मणिकर्म में घर-घर में भूमि से ही गरम पानी निकलता है; इसलिए यहां किसी के भी घर में स्नान हेतु पानी गरम करने का कोई साधन नहीं है ।

सप्तर्षि द्वारा वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा के गुरुपूजन हेतु निर्मित चित्र की विशेषताएं

उपरोक्त चित्र के ऊपरी भाग, मध्यभाग एवं निचले भाग को स्पर्श कर क्या अनुभव होता है ?, इसकी अनुभूति लें ।

सप्तर्षियों के बताए अनुसार वर्ष २०२० और २०२१ की गुरुपूर्णिमा में पूजन किए गए चित्रों के संदर्भ में सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी को हुई अनुभूति !

वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा में सप्तर्षियों के बताए अनुसार चित्र बनाकर उसका पूजन रामनाथी आश्रम में किया गया । उस चित्र की ओर देखकर मुझे हुई अनुभूति इस लेख में दी है ।

सनातन की गुरुपरंपरा !

कुलार्णवतन्त्र, उल्लास १४, श्लोक ३७ के अनुसार मादा कछुआ केवल मन में चिंतन कर भूमि के नीचे रखें अंडों को उष्मा देती है, बच्चों को बडा करती है और उनका पोषण करती है, उसी प्रकार गुरु केवल संकल्प द्वारा शिष्य की शक्ति जागृत करते हैं तथा उसमें शक्ति का संचार करते हैं ।

‘आपातकाल’ भी भगवान की एक लीला होने के कारण परात्पर गुरु डॉक्टरजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के चरणों में शरणागत होकर आपातकाल का सामना करें !

वर्तमान आपातकाल में साधक अनेक स्तरों पर संघर्ष कर रहे हैं । कोई पारिवारिक, कोई सामाजिक, कोई आर्थिक, कोई शारीरिक, कोई मानसिक, तो कोई बौद्धिक संघर्ष कर रहा है !

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति हमें अंतिम श्‍वास तक कृतज्ञ रहना होगा !’ – श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

संत भक्तराज महाराजजी के देहत्याग उपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने गुरुतत्त्व को पहचानकर (गुरुतत्त्व से सान्निध्य रखकर) व्याप क कार्य किया । प्रत्यक्ष रूप से उन्हें उनके गुरुदेवजी का सान्निध्य बहुत अल्पावधि के लिए ही प्राप्त हुआ ।