दत्तात्रेय की त्रिमुखी मूर्ति के हाथ में रहा कमंडल (त्याग और चैतन्य का प्रतीक)

ईश्वर के निर्गुण तरंगों को समाहित करनेवाले, एवं अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से रक्षण होने के लिए संपूर्ण त्रिलोक को एक ही समय एक पल में मंडल निकालने की क्षमता रखनेवाला जल जिस कुंड में सामाहित हैं, वह कुंड अर्थात दत्तात्रेय के हाथ में विद्यमान कमंडलू ।

सनातन की संत श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

प्रत्येक कर्म को नाम से जोडें, तो वह कर्मयोग बन जाता है । नामजप करनेवाले मन को भाव के दृश्य में रमा दिया जाए, तो वह भक्तियोग और मन एवं बुद्धि नामजप के साथ चलने लगे, तो वह ज्ञानयोग होता है ।

ईश्वरीय गुण का अर्थ सूक्ष्म के आभूषण !

जीव द्वारा ईश्वर निर्मित धर्म का आचरण और यथार्थ पालन करना, अर्थात जीव द्वारा उसके प्रगति हेतु उपयुक्त साधना कर इस मनुष्यजन्म का सार्थक करना, यही उसके जीवन का बडा अलंकार हो सकता है ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के अमृतवचन

प्रारब्ध कितना भी कठिन हो, भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रख, उचित क्रियमाण का उपयोग कर कर्म करनेसे उस पर मात की जा सकती है ।

कोलकाता स्थित (बंगाल) श्री कालीघाट का जागृत श्री कालीमाता का मंदिर

१८ वीं शताब्दी में निर्मित श्री कालीघाट शक्ति उपासना का केंद्र है । वहां हुगली नदी के तट पर श्री कालीमाता का प्रसिद्ध मंदिर है । वह ५१ शक्तिपीठों में से एक है । यहां सती के दाएं चरण की ४ उंगलियां गिरी थीं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी और श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी देवी ही हैं । देवी से मिलने देवी (श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी) गई थी । देवी ने इस भेंट का आनंद वर्षा के रूप में व्यक्त किया ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ द्वारा शेषनाग की फूंक से उत्पन्न ‘मणिकर्ण तप्तकुण्ड’ (जनपद कुलु) स्थान का किया हुआ अवलोकन !

देवी पार्वती के कर्णाभूषण में स्थित मणि जहां गिरी, वह स्थान है मणिकर्ण स्थित ‘तप्तकुंड’ ! यहां की यह विशेषता है कि मणिकर्म में घर-घर में भूमि से ही गरम पानी निकलता है; इसलिए यहां किसी के भी घर में स्नान हेतु पानी गरम करने का कोई साधन नहीं है ।

सप्तर्षि द्वारा वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा के गुरुपूजन हेतु निर्मित चित्र की विशेषताएं

उपरोक्त चित्र के ऊपरी भाग, मध्यभाग एवं निचले भाग को स्पर्श कर क्या अनुभव होता है ?, इसकी अनुभूति लें ।

सप्तर्षियों के बताए अनुसार वर्ष २०२० और २०२१ की गुरुपूर्णिमा में पूजन किए गए चित्रों के संदर्भ में सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी को हुई अनुभूति !

वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा में सप्तर्षियों के बताए अनुसार चित्र बनाकर उसका पूजन रामनाथी आश्रम में किया गया । उस चित्र की ओर देखकर मुझे हुई अनुभूति इस लेख में दी है ।

सनातन की गुरुपरंपरा !

कुलार्णवतन्त्र, उल्लास १४, श्लोक ३७ के अनुसार मादा कछुआ केवल मन में चिंतन कर भूमि के नीचे रखें अंडों को उष्मा देती है, बच्चों को बडा करती है और उनका पोषण करती है, उसी प्रकार गुरु केवल संकल्प द्वारा शिष्य की शक्ति जागृत करते हैं तथा उसमें शक्ति का संचार करते हैं ।