जैसे-जैसे व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर बढता जाता है, वैसे-वैसे उसके आध्यात्मिक विचार, मार्गदर्शन, आध्यात्मिक कार्य सहित उसकी देह पर भी देवत्व के संकेत दिखाई देने लगते हैं । सितंबर २०१८ में सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के माथे पर ‘ॐ’कार की भांति स्पष्ट आकार अंकित हुआ दिखाई दिया । १०.६.२०२१ को रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में श्री त्रिपुरसुंदरी याग किया गया । उस समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के भ्रूमध्य पर दीप समान आकार दिखाई दिया । २६.१०.२०१५ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की अन्य एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के भ्रूमध्य पर भी त्रिशूल की भांति स्पष्ट आकार दिखाई दिया । आज हम सनातन की गुरुपरंपरा के भ्रूमध्य पर दिखाई दिए इन शुभसंकेतों का विश्लेषण समझ लेते हैं ।
१. तीनों गुरुओं के भ्रूमध्य पर शुभचिन्ह अंकित होने का अध्यात्मशास्त्र
आध्यात्मिक गुरुओं का कार्य जब ज्ञानशक्ति के बल पर चल रहा होता है, तब उनके सहस्रारचक्र की ओर ईश्वरीय ज्ञान का प्रवाह आता है और वह उनके आज्ञाचक्र के द्वारा वायुमंडल में प्रक्षेपित होता है । उसके कारण जब ज्ञानशक्ति का प्रवाह आज्ञाचक्र से समष्टि की ओर जाता रहता है, तब इस दैवी प्रक्रिया की प्रतीति देने के लिए ईश्वरेच्छा से आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत पुरुषों के माथे पर विभिन्न प्रकार के दैवी चिन्ह अंकित होते हैं । इससे विश्व को आध्यात्मिक गुरुओं की महिमा समझ लेना सरल बनता है । इसी प्रकार से सनातन के तीनों गुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के भ्रूमध्य पर अंकित दैवी चिन्हों से हमें उनके दैवी कार्य का परिचय होता है ।
२. शक्ति का प्रकार, उसकी सूक्ष्मता, उसके अधिपति देवता और उससे संबंधित कुंडलिनीचक्र
३. तीनों गुरुओं के माथे पर अंकित शुभचिन्हों का भावार्र्थ
३ अ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के माथे के मध्य पर ‘ॐ’ का अंकित होना : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ओर से निर्गुण-सगुण स्तर की ज्ञानशक्ति और धर्मशक्ति का प्रक्षेपण होने के कारण उनके माथे के मध्य पर निर्गुणवाचक और धर्मसूचक ‘ॐ’ का शुभचिन्ह अंकित हुआ है । उसके कारण स्थूल से साधकों की ओर से समाज में ‘ज्ञानशक्ति अभियान’ चलाया गया । इस अभियान के अंतर्गत समाज में बडे स्तर पर सनातन के ग्रंथों का वितरण होकर समाज में धर्म और अध्यात्म के ज्ञान का प्रसार हुआ । इस अभियान के कारण अनेक सात्त्विक जीवों ने धर्माचरण और साधना आरंभ की है । उसके कारण कुल मिलाकर समाज की सात्त्विकता बढने में सहायता मिली ।
३ आ. आश्रम में संपन्न श्री त्रिपुरसुंदरी याग के समय श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदाजी के माथे पर दीप की भांति आकार दिखाई देना : त्रिपुरसुंदरी देवी में शक्ति और ज्ञान का सुंदर संगम हुआ है । उसी प्रकार से वह धर्मसंस्थापना का कार्य करने के लिए भी अत्यंत पूरक है, साथ ही वह धर्मराज्य चलाने के लिए मार्गदर्शक है । सनातन के रामनाथी आश्रम में जब श्रीत्रिपुरसुंदरी देवी का याग हुआ, तब देवी की ओर से तेजतत्त्व के स्तर पर ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति का प्रक्षेपण हुआ । उसके प्रतीक के रूप में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी के माथे पर दीप का आकार अंकित हुआ । इस आकार से तेजोमय क्रियाशक्ति का प्रक्षेपण होकर धर्म और अध्यात्म का प्रसारकार्य करनेवाले समष्टि जीवों को श्रीत्रिपुरसुंदरी देवी की ओर से प्रक्षेपित धर्मतेज प्राप्त हुआ । उसके कारण उनके समष्टि कार्य को गति मिली ।
४. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के माथे पर त्रिशूल का आकार दिखाई देना : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी में श्री दुर्गादेवी की मारक क्रियाशक्ति कार्यरत होकर वह भारत के तीर्थस्थानों, देवस्थानों और प्रसार में कार्यरत साधकों पर होनेवाले समष्टि स्तर के आक्रमणों को तोड डालने के लिए प्रक्षेपित हुई । उसके कारण उनके माथे पर श्री दुर्गादेवी के हाथ में स्थित त्रिशूल का शुभचिन्ह अंकित हुआ । इस शुभचिन्ह से प्रक्षेपित श्री दुर्गादेवी की मारक शक्ति के कारण अधर्मी शक्तियों से सहस्रों साधकों की रक्षा हुई ।
कृतज्ञता
‘श्रीगुरुदेवजी की कृपा से सनातन के तीनों गुरुओं के माथे पर अंकित दैवीय चिन्हों का भावार्थ समझ में आया और उसका अध्यात्मशास्त्र भी समझ में आया’, इसके लिए मैं तीनों गुरुओं के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हूं ।’
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१३.६.२०२२)
विशेषज्ञ, अध्येता और वैज्ञानिक दृष्टि
‘संतों की देह में आनेवाले बुद्धिअगम्य परिवर्तनों के विषय में शोधकार्य कर उनका कार्यकारणभाव ढूंढ निकालने हेतु साधक प्रयास कर रहे हैं । उसके लिए
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के भ्रूमध्य पर ‘ॐ’ दिखाई देने का क्या कारण है ?
२. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के भ्रूमध्य पर दीप की भांति आकार दिखाई देने का क्या कारण है?
३. (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के भ्रूमध्य पर त्रिशूल की भांति आकार दिखाई देने का क्या कारण है ?
इस संदर्भ में विशेषज्ञों, अध्येता, इस विषय की शिक्षा ले रहे छात्रों और वैज्ञानिक दृष्टि से शोधकार्य करनेवालों से हमें सहायता मिली, तो हम उनके प्रति कृतज्ञ रहेंगे ।’
– व्यवस्थापक, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
संपर्क : श्री. आशीष सावंत,
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पाठकों के लिए निवेदन !‘छपाई की तकनीकी समस्याओं के कारण यहां प्रकाशित छायाचित्र उनके मूल स्वरूप में ही छपेंगे, ऐसा नहीं है । उपाय स्वरूप प्रत्येक पाठक ये परिवर्तन समझ पाएं और उन्हें विषय स्पष्ट हो, इसके लिए इन परिवर्तनों को संगणक की सहायता से अधिक स्पष्ट किया गया है, इसका कृपया संज्ञान लें । मूल छायाचित्रों को सुस्पष्ट ढंग से देखने के लिए पाठक ‘सनातन प्रभात’ के जालस्थल की इस लिंक पर जाएं । https://sanatanprabhat.org/hindi/52859.html |