सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी द्वारा श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करने पर उनमें विद्यमान समष्टि भक्तिभाव के कारण श्रीराम के चित्र में विद्यमान समष्टि के कल्याण हेतु देवतातत्त्व कार्यरत होना

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी स्वयं के स्वास्थ्य-लाभ हेतु एक संत के बताए अनुसार प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करते हैं। ‘श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करने से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी पर क्या परिणाम होता है ?’, इसका अध्ययन करने हेतु एक परीक्षण किया गया।

निर्माण कार्य करते समय उसे ‘साधना’ के रूप में करने से उस निर्माण कार्य से बडे स्तर पर सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं !

निर्माण कार्य जैसी कृति (वास्तु का निर्माण) सेवाभाव से की, तो उस निर्माण कार्य में बहुत सात्त्विकता उत्पन्न होती है !

भाजपा के पदाधिकारी विद्यार्थियों के साथ गोवा के आध्यात्मिक संशोधन केंद्र का भ्रमण करेंगे !

हिमाचल प्रदेश में सिमला के भाजपा के पदाधिकारी श्री. रवीकुमार मेहता ने उच्च न्यायालय के राकेश शर्मा नामक अपने न्यायाधीश मित्र के साथ महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के प्रदर्शनी का भमण किया । उन्होेंने प्रदर्शनी देख कर बताया कि काेई अज्ञात शक्ति उन्हेंं प्रदर्शनी स्थल पर खिंच लाई ।

महाकुंभनगरी में ‘महर्षि आध्यात्मिक विश्वविद्यालय’ की प्रदर्शनी शुरू !

श्रद्धालुओं को त्रिवेणी संगम, महाकुंभ मेला, गंगाजल आदि के बारे में आध्यात्मिक और वैज्ञानिक जानकारी मिलेगी !

कुम्भ पर्व में साधु-संत जो ‘राजयोगी (शाही) स्नान’ करते हैं, उस पानी पर उसके आध्यात्मिक दृष्टि से क्या परिणाम होते हैं ?, इस संदर्भ में शोध कार्य !

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण से किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से किए जा रहे अभूतपूर्व आध्यात्मिक शोध कार्य में सम्मिलित हों !

वर्ष २०१४ से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से आधुनिक वैज्ञानिक परिभाषा में अध्यात्म का महत्त्व विशद करने हेतु वैज्ञानिक स्तर पर शोधकार्य किया जा रहा है ।

मंत्रोच्चारण, अग्निहोत्र, यज्ञ एवं साधना के द्वारा ही पर्यावरण का वास्तविक संतुलन बनाया रखा जा सकता है ! – शॉन क्लार्क

प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार कालचक्र के अनुसार विश्व ऊपर-नीचे होता रहता है । रज-तमोगुण की प्रबलता बढने के कारण उसका नकारात्मक प्रभाव पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश इन पंचमहाभूतों पर पडता है । उसके फलस्वरूप पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाएं बढती हैं ।

देवतातत्त्व आकृष्ट करनेवाली सनातन-निर्मित सात्त्विक रंगोलियां तथा सात्त्विक चित्रों में देवताओं के यंत्र की भांति सकारात्मक ऊर्जा (चैतन्य) होना

रंगोली ६४ कलाओं में से एक कला है । यह कला आज घर-घर पहुंच गई है । त्योहारों-समारोहों में, देवालयों में तथा घर-घर में रंगोली बनाई जाती है । रंगोली के दो उद्देश्य हैं – सौंदर्य का साक्षात्कार तथा मांगलिक सिद्धि ।

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय (फोटोवाला) जीवनदर्शन’ ग्रंथ में प्रचुर मात्रा में चैतन्य होना

इन ग्रंथों को पढते समय साधक भावविभोर हो जाते हैं तथा भावविश्व में रम जाते हैं । अनेक लोगों ने इन ग्रंथों में प्रकाशित छायाचित्रों एवं लेखों से प्रचुर मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होने की अनुभूति की है ।

भावसत्संग सुनने से व्यक्ति की सूक्ष्म ऊर्जापर (‘ऑरा’ पर) सकारात्मक परिणाम होते हैं !

भावसत्संगों के कारण अनेक साधकों को साधना में सहायता मिली है । ‘भावसत्संग लेना अथवा उसे सुनना, साधकों में व्याप्त सूक्ष्म ऊर्जा पर (‘ऑरा’ पर) इसके क्या परिणाम होते हैं ?, वैज्ञानिक दृष्टि से इसका अध्ययन करने हेतु एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ उपकरण का उपयोग किया गया ।