संपादकीय : मंदिर की अग्रपूजा में भ्रष्टाचार !
‘मंदिरों का सरकारीकरण, व्यवस्थापन के लिए न होकर ‘भ्रष्टाचार के लिए और एक आय के साधन’ से अलग कुछ नहीं, उन मंदिरों की यही दुःस्थिति है ।
‘मंदिरों का सरकारीकरण, व्यवस्थापन के लिए न होकर ‘भ्रष्टाचार के लिए और एक आय के साधन’ से अलग कुछ नहीं, उन मंदिरों की यही दुःस्थिति है ।
इसी प्रकार, उन्होंने त्रिशूर के श्रीराममंदिर में भी जाकर पूजा-अर्चा की ।
इस खुदाई में हमें मंदिर के स्तंभों के नीचे ईटों की एक रचना दिखी । मुझे मस्जिद की दीवार में मंदिर के स्तंभ दिखाई दिए । स्तंभ के निचले भाग में ११ वीं एवं १२ वीं शताब्दी के मंदिर में दिखनेवाले संपूर्ण कलश दिखाई दिए ।
अयोध्या के राममंदिर का ढांचा (डिजाइन) वास्तु शिल्पकार श्री. चंद्रकांत सोमपुरा (आयु ८० वर्ष) ने बनाया ! श्री. चंद्रकांत सोमपुरा ने ३० वर्षाें से भी अधिक काल तक राममंदिर कैसा होना चाहिए, इसपर मन:पूर्वक चिंतन और परिश्रम किए हैं ।
हम ४ शंकराचार्यों के मध्य श्रीराममंदिर के विषय पर मतभेद होने का गलत भ्रम फैलाया गया है । हममें कोई मतभेद नहीं है । हमारा इतना ही कहना था कि प्रभु श्रीराम की प्रतिष्ठा शास्त्र के अनुसार हो ।
भाजपा सांसद रामचरण बोहरा ने कहा कि, इस स्थान पर पुनः एक बार संस्कृत मंत्रों की ध्वनि गूंजेगी ।
उन दिनों में श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन प्रतिदिन तीव्र बनता जा रहा था तथा उसका नेतृत्व विश्व हिन्दू परिषद ने (विहिप ने) किया था । रा.स्व. संघ इस आंदोलन का समर्थन करे, यह विहिप की अपेक्षा थी तथा संघ ने वैसा किया भी । जिस परिसर में विहिप का कार्य अल्प था अथवा नहीं था, वहां संघ ने दायित्व लिया ।
रामजन्मभूमि मुक्ति हेतु कुल ७६ लडाईयां हुईं, यह इतिहास है । ईसापूर्व १५० में सर्वप्रथम ग्रीक राजा मिनंडर (मिलिंद) ने आक्रमण कर अयोध्या स्थित श्रीरामपुत्र कुश द्वारा निर्मित मंदिर ध्वस्त किया । आगे जाकर शुंगकाल में मिनंडर की पराजय होने पर रामजन्मभूमि मुक्त हुई; किंतु अयोध्या को उसका गतवैभव कुछ मात्रा में पुनः प्राप्त हुआ ईसापूर्व १०० के आसपास !
वे यहां हिन्दू मजदूरों के सम्मेलन में बोल रहे थे । पिछले वर्ष दिसंबर में भी ईश्वरप्पा ने ‘देश में मंदिरों के स्थान पर बनाई एक भी मस्जिद छोडेगे नहीं’ ऐसा विधान किया था ।
देश के मंदिर अभी असुरक्षित है । इस स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए भारत को अब शीघ्र ही हिन्दू राष्ट्र बनाना आवश्यक है !