अयोध्या का राममंदिर और इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जानेवाला सोमपुरा घराने का अद्वितीय कार्य !

अयोध्या के राममंदिर का ढांचा (डिजाइन) वास्तु शिल्पकार श्री. चंद्रकांत सोमपुरा (आयु ८० वर्ष) ने बनाया ! श्री. चंद्रकांत सोमपुरा ने ३० वर्षाें से भी अधिक काल तक राममंदिर कैसा होना चाहिए, इसपर मन:पूर्वक चिंतन और परिश्रम किए हैं । वर्ष १९९२ में बाबरी ढांचा ध्वस्त हुआ और उसके पश्चात रामजन्मभूमि का सूत्र २७ वर्ष न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा में था; परंतु उस कालखंड में भी विश्व हिन्दू परिषद के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष (स्व.) अशोक सिंघल के साथ श्री. चंद्रकांत सोमपुरा अयोध्या गए तथा उन्होंने प्रस्तावित मंदिर के नाप सुरक्षा तंत्रों के ध्यान में भी न आए, इस प्रकार केवल पैरों के आधार पर लिए और उससे प्रस्तावित मंदिर का ढांचा बनाया ।

अयोध्या के राममंदिर की प्रतिकृति के साथ वास्तु शिल्पकार श्री. चंद्रकांत सोमपुरा

नूतन राममंदिर के विषय में श्री. चंद्रकांत सोमपुरा का अभिमत

श्री. चंद्रकांत सोमपुरा द्वारा बनाई गई राममंदिर की प्रतिकृति

पूरे संसार को जिस मंदिर के निर्माण की उत्सुकता थी, जिस मंदिर के निर्माण के लिए स्वतंत्र भारत में भी हिन्दुस्थान के हिन्दुओं को ३ दशक संघर्ष करना पडा, ऐसे मंदिर की वास्तु का शिल्प बनाने का सौभाग्य हमारे परिवार को प्राप्त हुआ, इसका मुझे अभिमान है ।

१. मंदिर निर्माण की शैली और सोमपुरा घराने का संबंध

मंदिर निर्माण में कुल ३ शैलियां हैं – नागर शैली, द्रविड शैली और वेसर शैली । इनमें से नागर शैली का प्रयोग प्रमुख रूप से उत्तर भारत में किया जाता है । ओडिशा के भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर, कोणार्क के सूर्य मंदिर आदि के लिए भी इसी हिन्दू निर्माणशैली का उपयोग किया गया है । कुछ समय पहले का इस शैली का उदाहरण है, सोमनाथ मंदिर । सोमपुरा ही इसके शिल्पकार थे । भारत की स्वतंत्रता के पश्चात वर्ष १९५०-५१ के समय में निर्माण का संपूर्ण उत्तरदायित्व ‘मंदिर स्थापत्यकार’ के रूप में श्री. चंद्रकांत सोमपुरा के दादा पद्मश्री प्रभाशंकर सोमपुरा ने ही संभाला था । प्रभाशंकर सोमपुरा ने मंदिर निर्माण शास्त्र पर १४ ग्रंथ भी लिखे हैं । ये ग्रंथ आज इस विषय का अध्ययन करनेवाले विद्यार्थियों को मार्गदर्शक सिद्ध हो रहे हैं ।

२. चंद्रकांत सोमपुरा के रामजन्मभूमि संबंधी वचन सत्य में आना

नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब श्री. चंद्रकांत सोमपुरा से पूछा करते, ‘राममंदिर कब बनाओगे ?’ इस पर श्री. सोमपुरा हंसते हुए कहते, ‘‘आप प्रधानमंत्री बनो, इससे राममंदिर का मार्ग खुल जाएगा । मार्ग खुल जाने पर आपके हाथों भूमिपूजन होगा, तब मैं निश्चित आऊंगा और मंदिर निर्माण कर स्वयं भी देखूंगा ।’’ प्रत्यक्ष में भी ऐसा ही हुआ ।

३. राममंदिर का प्रारूप (डिजाइन) चंद्रकांत सोमपुरा के पास आने के पीछे की घटनाएं

श्री. चंद्रकांत सोमपुरा ने कोलकाता का बिर्ला मंदिर बनाया है । विहिंप के अशोक सिंघल ने कोलकाता का बिर्ला मंदिर देखने पर बिर्लाजी से पूछा था, ‘मंदिर का वास्तु शिल्पकार कौन है ?’ साथ ही यह भी पूछा था कि प्रस्तावित राममंदिर के लिए ‘श्री. सोमपुरा कितना सहयोग दे पाएंगे ?’ तदुपरांत इन दोनों की भेंट हुई । उस समय श्री. सोमपुरा ने आनंदपूर्वक रामजन्मभूमि पर प्रस्तावित निर्माण कार्य के लिए सहमति दर्शाई थी ।

४. राममंदिर और उसकी बनावट कैसी है ?

श्री. चंद्रकांत सोमपुरा ने अशोक सिंघल के साथ लिए उन नापों के आधार पर ही मंदिर, मंदिर परिसर का प्रारूप बनाया गया और नक्काशी आरंभ कर दी । सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के उपरांत मंदिर का नया ढांचा (डिजाइन) बनाकर उसके लिए प्रक्रिया के अनुसार अनुमति ली गई ।

आश्चर्य की बात तो यह है कि आज इतने वर्ष उपरांत भी उन्हीं नापों को सामने रखते हुए मंदिर निर्माण आरंभ कर वह पूर्ण भी हुआ है । पिछले ३० वर्षाें में नक्काशी किया हुआ एक भी स्तंभ व्यर्थ नहीं गया । भूमि में २०० फुट नीचे गाडे गए १ सहस्र २०० खंबों पर यह मंदिर खडा रहेगा । इसका प्रत्येक खंबा (पिलर) १ मीटर व्यास का है । भूमिपूजन के कुछ सप्ताह उपरांत लगभग २०० खंबे भूमि में गाडकर, उसपर प्रचंड दबाव देकर उनकी सहनक्षमता जांची गई । राममंदिर के संपूर्ण निर्माण में कहीं भी स्टील का उपयोग नहीं किया गया है । एक-दूसरे पर बिठाए और ‘मेल-फिमेल’ पद्धति से परस्परों से जुडे पाषाणों से ही मंदिर का निर्माण किया गया ।

यह मंदिर नागर शैली में बनाया गया है । मंदिर ३ मंजिला है तथा उसकी ऊंचाई १६१ फुट है । इसमें ५ गुंबजाकार मंडप, १ शिखर है और यह सब वास्तुशास्त्र के अनुसार बनाया गया है । राममंदिर को सौंपी भूमि ७० एकड है और उसमें से २.७७ एकड पर मंदिर बनाया गया है । मंदिर का गर्भगृह अष्टकोनी है । मंदिर में एक प्रार्थना कक्ष, एक रामकथा कुंज (व्याख्यान कक्ष), वैदिक पाठशाला, संत निवास, संग्रहालय आदि अनेक सुविधाएं हैं । भूकंप, आंधी अथवा तत्सम प्राकृतिक आपदाओं से मंदिर को कोई हानि न पहुंचे, इसकी पूरी सावधानी मंदिर के निर्माण के समय ही बरती गई है ।

५. राममंदिर संपूर्ण निर्माणकार्य ‘लार्सन एंड टूब्रो’ प्रतिष्ठान द्वारा होने के पीछे की घटनाएं

१९९० के कालखंड में अशोक सिंघल की भेंट ‘लार्सन एंड टूब्रो’ के वरिष्ठ अधिकारियों से हुई थी । सिंघल ने तत्कालीन अधिकारियों से पूछा था कि ‘क्या वे राममंदिर के निर्माण में सहयोग करेंगे ?’ इसपर प्रतिष्ठान ने हां भरी थी । ३० वर्ष उपरांत मंदिर निर्माण के संदर्भ में पुनः एक बार ‘रामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास’ के महासचिव श्री. चंपत राय ने ‘लार्सन एंड टूब्रो’ के वरिष्ठों से भेंट की और तब के आश्वासन के संदर्भ में पुनः पूछा । प्रतिष्ठान ने सकारात्मक उत्तर देते हुए ऐसा भी स्पष्ट किया कि ‘हम यह सर्व कार्य निःशुल्क और सेवाभाव से करेंगे ।’ राममंदिर की परियोजना के लिए प्रतिष्ठान ने कंपनी के सीनियर डिजाइनर आर.एम. वीरप्पन को नियुक्त किया है ।

इस प्रकार राममंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ है तथा श्री. चंद्रकांत सोमपुरा के घराने की ओर से इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाए, ऐसा अद्वितीय कार्य पूर्णत्व को प्राप्त हुआ है ।

(साभार : विविध जालस्थल)

श्री. चंद्रकांत सोमपुरा के घराने संबंधी…

पिछले ५०० वर्ष सोमपुरा घराना (परिवार) मंदिरों का निर्माण कर रहा है । सोमपुरा परिवार ने आज तक देश-विदेश में २०० से अधिक मंदिरों का निर्माण किया है । सोमपुरा परिवार की श्रद्धा है कि मंदिर निर्माण की कला सोमपुरा परिवार को सीधे भगवान विश्वकर्मा ने सिखाई है ! मंदिर निर्मिति के व्यवसाय में श्री. चंद्रकांत सोमपुरा की यह १५ वीं पीढी है ! अयोध्या के संकल्पित राममंदिर के निर्माण में आज प्रत्यक्ष ध्यान देनेवाले श्री. चंद्रकांत सोमपुरा के सुपुत्र श्री. निखिल और श्री. आशीष १६ वीं, तथा श्री. निखिल के सुपुत्र १७ वीं पीढी के प्रतिनिधि हैं । श्री. चंद्रकांत सोमपुरा ने स्वयं को कोरोना महामारी के कालखंड में अयोध्या में भूमिपूजन में जाने से रोका । ऐसा होते हुए भी श्री. आशीष और श्री. निखिल सीधे कर्णावती से (गुजरात) भूमिपूजन समारोह के लिए अयोध्या में उपस्थित रहे थे ।

अयोध्या में निर्माण-कार्य प्रारंभ होने पर ‘लार्सन एंड टूब्रो’ का भविष्य चमक उठा ।

‘लार्सन एंड टूब्रो’ प्रतिष्ठान को बांग्लादेश, नेपाल, सउदी अरब में नए काम मिले । तमिलनाडु में ५० मेगावैट ‘फोटोवोल्टाईक प्लॉट’ का काम भी ‘लार्सन एंड टूब्रो’ को मिला है । यह नया आर्थिक वातावरण राममंदिर के निर्माणकार्य का शुभचिह्न तो नहीं !