महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री को पंढरपुर में श्री विट्ठल के मंदिर में आषाढी एकादशी के दिन अग्रपूजा का सम्मान प्राप्त है । एक ओर मुख्यमंत्री विट्ठल की अग्रपूजा करते हैं, तो दूसरी ओर मंदिर प्रशासन श्री विट्ठल के प्रसाद वितरण में भ्रष्टाचार करता है । कैसी है यह दुर्दशा ! प्रशासन में भ्रष्टाचार करके भी अतृप्त रहनेवाले इन भ्रष्ट लोगों की अग्रपूजा किसने की ? उन्हें इससे क्या लेना देना ? इन लोगों की वृत्ति होती है, ‘येन केन प्रकारेण’ पैसोें से अपनी जेब भर गई, तो हो गया । विधिमंडल के शीतकालीन सत्र में श्री विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति के वर्ष २०२१-२२ के लेखा परीक्षण का वृत्तांत प्रस्तुत किया गया । उसमें मंदिर में प्रसादस्वरूप दिए जानेवाले लड्डुओं के पैकट पर मूंगफली का तेल लिखना पर उनमें बिनौले का तेल उपयोग करना, लड्डुओं में सूखे मेवे लिखकर प्रत्यक्ष में उसका उपयोग न होना, इस प्रकार प्रसाद में भी भ्रष्टाचार कर श्रद्धालुओं की श्रद्धा को भी व्यवसाय बनाया तथा मंदिर समिति ने ऐसे लोगों के विरुद्ध पुलिस में परिवाद भी नहीं लिखाई ।इसका दूसरा अर्थ यह है कि मंदिर समिति ने इन भ्रष्टाचारियों को सीधे बचाया । जिन्हें मंदिर संभालने के लिए दिए, वह प्रशासन ही मंदिर को लूट रहा है, किंतु हिन्दुओं को उससे कोई लेना-देना नहीं है, यह बडा दुर्भाग्य है । क्या ऐसे में विट्ठल की कृपा होगी ? कभी तो इस पर हिन्दुओं को विचार करना होगा ।
जनप्रतिनिधि आवाज क्यों नहीं उठाते ?
कहते हैं, ‘श्री विट्ठल महाराष्ट्र के आराध्य देवता हैं’; किंतु उनके मंदिर के भ्रष्टाचारी प्रकरण के विषय में किसी ने भी आवाज नहीं उठाई । विगत अनेक वर्षाें से मंदिर समिति के लेखापरीक्षण (ऑडिटरपोर्ट) में मंदिर के अव्यवस्थित खाते का उल्लेख किया जा रहा है; किंतु इतने वर्षाें में विधिमंडल में एक भी जनप्रतिनिधि उसके विरोध में खडा नहीं हुआ, इसका कारण यह है कि मंदिरों की अपेक्षा इन लोगों के लिए राजनीतिक नीति का महत्त्व अधिक है । वर्ष १९८५ से मंदिर के प्राचीन अलंकारों का अर्थात छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से, वास्तव में महाराज के पहले से विट्ठल के चरणों पर अर्पित आभूषणों का मूल्यांकन नहीं किया गया है । मंदिर समिति ने मंदिर का गरुड खंभा, मंदिर के गर्भगृह के चांदी के द्वार तथा चांदी के चौखटों का भी मूल्यांकन नहीं किया है । इतना ही नहीं, अपितु श्री विट्ठल-रुक्मिणी के चरणों पर पूरे वर्ष में अर्पित अलंकारों को थैली में रखकर उसे गांठ लगाकर बैग में रखा जा रहा है । उन बैगों को सील भी नहीं किया जाता । कुछ मास पहले श्री विट्ठल के चरणों पर अर्पित अलंकारों में से कुछ अलंकारों को नकली घोषित कर उन्हें हटा दिया गया था; किंतु असली अलंकार हडप कर वहां नकली अलंकार नहीं रखे गए, ऐसा कैसे कह सकते हैं ? ‘विशेष जांच दल’ द्वारा जांच करने की मांग करने में समय क्यों लगाया जाए ? सरकार को ही इस प्रकरण की गहन जांच कर श्री विट्ठल के मंदिर में घोटाला करनेवालों पर कार्यवाही करनी चाहिए ।
सरकारीकरण से क्या साध्य ?
सरकारीकरण हुए मंदिरों का वार्षिक वृत्तांत वर्षाें तक प्रस्तुत नहीं किया जाता तथा इस विषय में धर्मादाय आयुक्त, जिसके अधिकार में मंदिर हैं, शासन का वह विधि तथा न्याय विभाग, स्थानीय जनप्रतिनिधि अथवा उस विभाग के मंत्री, कोई भी इस पर आवाज नहीं उठाता, तब प्रश्न आता है कि मंदिर के सरकारीकरण का अर्थ क्या है ? मंदिर का व्यवस्थापन सुधरा, ऐसा कहें, तो सभी लोगों की वर्तमान स्थिति देखें, इन सभी को मंदिर के सुव्यवस्थापन से कुछ भी लेना-देना नहीं । श्री विट्ठल के प्रति श्रद्धा हो, तो मंदिर में भ्रष्टाचार रोकने में इन लोगों को आगे आना चाहिए । मंदिर का अंधेर खाता केवल अलंकार अथवा लड्डुओं के प्रसाद तक ही मर्यादित नहीं, अपितु विट्ठल के दर्शन के लिए पैसे लेकर भक्तों को जाने देना, मंदिर की निधि का दुरुपयोग करना, कर्मचारियों को दी गई अग्रिम राशि वापस न लेना, मंदिर में षोडशोपचार पूजा विधिवत न करना आदि अनुचित प्रकरण भी विट्ठल मंदिर में हो रहे हैं ।
इसलिए ‘मंदिरों का सरकारीकरण, व्यवस्थापन के लिए न होकर ‘भ्रष्टाचार के लिए तथा एक आय के साधन’ से अलग कुछ नहीं, उन मंदिरों की यह दुःस्थिति है । केवल पंढरपुर का विट्ठल मंदिर ही नहीं, अपितु मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर, तुळजापुर का भवानीदेवी का मंदिर अथवा कोल्हापुर का श्री महालक्ष्मी मंदिर, इन सभी स्वयंभू तथा जागृत देवस्थानों पर भ्रष्टाचार के आरोप होने से गत अनेक वर्षों से इसकी जांच हो रही है । ‘जांच चल रही है’ इसकी आड में भ्रष्टाचार तो हो ही रहा है । महाराष्ट्र में सरकार के ४५ विविध महामंडल हैं । उनमें से ३-४ महामंडल छोडकर अन्य सभी घाटे में हैं । जिन नेताओं को विधायक का टिकट नहीं मिला है अथवा चुनाव में पराजित हो गए हैं, उन्हें विधायक नियुक्त करना तथा राजनीतिक हित साध्य करना ही इन महामंडलों की स्थिति हो गई है । इसके लिए निधि घोषित करना तथा उसमें से कुछ हडप लेना ही महामंडलों की स्थिति है । हिन्दुओं के मंदिरों की स्थिति भी इससे अलग नहीं है । हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए मंदिर श्रद्धा का केंद्र हो, तो भी ये लालची राजनेताओं तथा प्रशासनिक अधिकारियों के लिए असीमित पैसा कमाने के केंद्र से अधिक कुछ नहीं हैं । इसके लिए अन्य कोई नहीं अपितु केवल निद्रित हिन्दू ही उत्तरदायी हैं । इसलिए हिन्दुओं के मंदिरों के भी लाभ-हानि का लेखाजोखा आरंभ हो, इससे पहले ही मंदिरों की रक्षा के लिए हिन्दू जागृत हों; वह सुदिन होगा!