शौच की समस्याओं पर प्राथमिक उपचार

‘शौच के लिए अधिक समय बैठना, साथ ही बल (जोर) देना, ये लक्षण हों, तो चौथाई चम्मच ‘सनातन यष्टीमधु (मुलेठी) चूर्ण’, चौथाई चम्मच ‘सनातन आमलकी (आंमला) चूर्ण’ एवं १ चुटकीभर सैंधव (सेंधा) नमक एकत्र कर आधी कटोरी पानी में दोनों समय के भोजन से पहले लें ।

उष्णता के विकारों पर सनातन की आयुर्वेदीय औषधियां

‘उष्णता के विकारों पर (उदा. शरीर पर घमोरियां होना, फुंसी होना, लघुशंका के समय जलन होना) दिन में ३ बार आधी चाय की चम्मच सनातन अडूसा चूर्ण एवं आधी चाय की चम्मच सनातन उशीर (खस) चूर्ण एकत्र कर आधी कटोरी पानी में मिलाकर पीएं । ऐसा लगभग १ से २ सप्ताह करें ।’

माहेश नवमी का त्योहार एवं आध्यात्मिक महत्व

माहेश नवमी को माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति के दिन के रूप में माना जाता है । इस दिन माहेश्वरी समाज के लोग शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं । मां पार्वती एवं शिव के लिए व्रत रखते हैं ।

सनातन संस्था द्वारा प्रवचन का आयोजन

यहां के बरई गांव व नक्खी घाट में सनातन संस्था द्वारा प्रवचन लिया गया ।

सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी के जन्मोत्सव निमित्त बिहार एवं उत्तर प्रदेश में मंदिरों में मनौती

सैदपुर के बूढे महादेव मंदिर में मनौती मांगते समय १०० से भी अधिक श्रद्धालु उपस्थित थे ।

देहली में भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुरामजी की जयंती निमित्त सुंदरकांड पाठ का आयोजन

हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी ने उपस्थित पुरोहित तथा ब्राह्मण समाज को मंदिर धर्मशिक्षा के केंद्र बनने हेतु प्रयास करने का आवाहन किया ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा विशद ‘अष्टांग साधना’, उसका क्रम एवं पंचमहाभूतों से संबंध

अष्टांग साधना में स्वभावदोष-निर्मूलन (एवं गुणसंवर्धन), अहं-निर्मूलन, नामजप, भावजागृति, सत्संग, सत्सेवा, त्याग एवं प्रीति यह ८ चरण हैं | यह साधना का क्रम सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने विशद किया है, वह विशेषतापूर्ण है

साधको, ‘प्रतिमा बनाए रखना’ इस अहं के पहलू के कारण स्वयं की चूकें छुपाकर भगवान के चरणों से दूर जाने की अपेक्षा प्रामाणिकता से चूकें स्वीकार कर ईश्वरप्राप्ति की दिशा में अग्रसर हों !

ईश्वर का हमारे प्रत्येक कृत्य की ओर ध्यान रहता है । ‘जो पापी स्वयं का पाप सारे विश्व को चीखकर बताता है, वही महात्मा बनने की योग्यता का होता है’, यह दृष्टिकोण रखकर साधकों द्वारा प्रयास होना अपेक्षित है ।

‘अनिष्ट शक्तियों के कष्टों से रक्षा हो’, इसलिए अस्पताल के रोगी, उसके सगे-संबंधी, डॉक्टर, परिचारिका आदि सभी अधिकाधिक नामजप करें !

नामजपका लाभ उपचार के लिए आए रोगियों को भी अपनेआप होगा । अस्पताल में अन्य रोगियों को भी नामजप का स्मरण करवाएं । नामस्मरण से मनोबल बढता है, मनःशांति मिलती है और जीवन आनंदी बनने में सहायता मिलती है ।

साधको, सनातन के कार्य में योगदान देंगे ऐसे जिज्ञासु एवं शुभचिंतक साधना का आनंद अनुभव कर पाएं, इसलिए उन्हें साधना की अगली दिशा दें !

साधको, ‘सनातन से जुडे पाठक, शुभचिंतक एवं जिज्ञासुओं को साधना की उचित दिशा देकर समष्टि साधना करो और समाज ऋण से मुक्त हों !’