‘अस्पताल में रोगियों की विविध कारणों से मृत्यु होती है, उदा. दुर्घटनाग्रस्त, लंबे समय से बीमार रोगी, अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए, इसके साथ ही छोटे बच्चे इत्यादि । मृत्यु के उपरांत प्रत्येक को तुरंत ही गति मिलती है, ऐसा नहीं है । उनमें से अतृप्त लिंगदेह अथवा बुरी लिंगदेह उस अस्पताल के डॉक्टरों, परिचारिकाओं, स्वच्छता करनेवाले कर्मचारियों, उपचारों के लिए आए रोगियों एवं उनके सगे-संबंधियों को कष्ट दे सकती हैं । अस्पताल में विविध व्याधियों से त्रस्त रोगियों के कारण सभी लोग वहां के वातावरण की अस्वस्थता एवं तनाव अनुभव करते हैं ।
‘अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होने हेतु ‘भगवान का नामस्मरण करना’, सर्वाधिक प्रभावी उपाय है’, ऐसा सनातन धर्म में एवं अनेक संतों ने बताया है । इसलिए डॉक्टर, परिचारिका, स्वच्छता करनेवाले कर्मचारी एवं रोगियों के सगे-संबंधी अस्पताल में अधिकाधिक नामजप करें । उसका लाभ उपचार के लिए आए रोगियों को भी अपनेआप होगा । अस्पताल में अन्य रोगियों को भी नामजप का स्मरण करवाएं । नामस्मरण से मनोबल बढता है, मनःशांति मिलती है और जीवन आनंदी बनने में सहायता मिलती है ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले (१०.२.२०२३)
बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं । |