सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी के अनमोल वचन तथा मार्गदर्शन

सुख पाने की अपेक्षा के कारण अन्यों से इच्छा अथवा अपेक्षा करना, यदि हमारे जीवन में दुख तथा अज्ञान निर्माण करता है, तो वह ‘आसक्ति’ है ।

साधको, सनातन के कार्य में योगदान देंगे ऐसे जिज्ञासु एवं शुभचिंतक साधना का आनंद अनुभव कर पाएं, इसलिए उन्हें साधना की अगली दिशा दें !

साधको, ‘सनातन से जुडे पाठक, शुभचिंतक एवं जिज्ञासुओं को साधना की उचित दिशा देकर समष्टि साधना करो और समाज ऋण से मुक्त हों !’

पितृपक्ष की अवधि में ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप की अपेक्षा ‘ॐ ॐ श्री गुरुदेव दत्त ॐ ॐ ।’ नामजप का साधकों पर बहुत अधिक सकारात्मक परिणाम होना

‘समाज के लगभग प्रत्येक व्यक्ति को ही अनिष्ट शक्ति जनित कष्ट होता है । अनिष्ट शक्तियों के कारण व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक कष्ट होते हैं, साथ ही जीवन में अन्य समस्याएं भी आती हैं ।

सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी के अमृतवचन !

‘जब (खेत में) नदी का पानी आता है, तब उसे पाट बनाकर दिशा देनी पडती है; अन्यथा वह समस्त (खेत) नष्ट कर देता है । उसीप्रकार मन में आ रहे विचारों को दिशा देनी पडती है ।

अध्यात्म

अध्यात्म विषयक बोधप्रद ज्ञानामृत’ लेखमाला से भक्त, संत तथा ईश्वर, अध्यात्म एवं अध्यात्मशास्त्र तथा चार पुरुषार्थ ऐसे विविध विषयों पर प्रश्नोत्तर के माध्यम से पू. अनंत आठवलेजी ने सरल भाषा में उजागर किया हुआ ज्ञान यहां दे रहे हैं ।

अपेक्षा करना अहं है !

अपेक्षा करना’ अहं का लक्षण है । अपेक्षापूर्ति होने पर तात्कालिक सुख मिलता है; परंतु इससे अहं का पोषण होता है और यदि अपेक्षा के अनुरूप नहीं होता तो दुःख होता है, अर्थात दोनों ही प्रसंगों में साधना की दृष्टि से हानि ही होती है ।’

कोरोना विषाणु के विरुद्ध स्वयं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने हेतु चिकित्सकीय उपचारों के साथ आध्यात्मिक बल प्राप्त होने हेतु ‘श्री दुर्गादेवी, दत्त देवता एवं भगवान शिव’, इन देवताओं का एकत्रित नामजप ध्वनिविस्तारक द्वारा सर्वत्र लगाने का नियोजन करें !

यह सिद्ध हो चुका है कि ‘नामजप न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूरक है, साथ ही विविध विकारों के निर्मूलन के लिए भी लाभदायक है । वर्तमान कोरोना महामारी के काल में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होने के लिए योगासन, प्राणायाम, आयुर्वेदीय उपचार इत्यादि प्रयास समाज के लोग कर रहे हैं ।

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी की देह तथा उनके उपयोग में अंतर्भूत वस्‍तुआें पर गुलाबी आभा आना

‘परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी की त्‍वचा, नख एवं केश जिस प्रकार पीले हो रहे हैं, उसके साथ ही उनकी आंखों का अंदरूनी भाग, हाथ-पैर के अंदरूनी भाग, तथा जीभ और होंठ भी गुलाबी हो रहे हैं । यह परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी में व्‍याप्‍त ईश्‍वर की सर्वव्‍यापक प्रीति के रंग का आविष्‍कार है ।

साधना में ध्येय साध्य करते समय पुनः-पुनः विफलता मिले, तो क्या करें ?

ध्येय मेें से जो कुछ थोडा-बहुत भी साध्य हुआ हो, उस संदर्भ में संतोष रखें तथा गुरु एवं ईश्‍वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें ।