माहेश नवमी का त्योहार एवं आध्यात्मिक महत्व

तिथि : ज्येष्ठ शुक्ल नवमी (२९ मई २०२३)

माहेश नवमी का महत्त्व

माहेश नवमी को माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति के दिन के रूप में माना जाता है । कहा जाता है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रीय वंश के थे । एक बार जब वे शिकार पर निकले तो ऋषि-मुनियों ने उन्हें श्राप दे दिया था । तब उन्होंने भगवान शिव का पूजन किया । ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को शिवजी ने उन्हें श्राप से मुक्त किया और उन्होंने हिंसा का मार्ग छोडकर अहिंसा का मार्ग अपनाया । तब से माहेश के नाम से माहेश्वरी समाज बना । त​ब से हर वर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी का दिन माहेश नवमी के रूप में मनाया जाने लगा । इस दिन माहेश्वरी समाज के लोग शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं । मां पार्वती एवं शिव के लिए व्रत रखते हैं ।

माहेश नवमी की व्रत कथा : राजा खडगलसेन की कोई संतान नहीं थी । संतानप्राप्ति की इच्छा से उन्होंने घोर तपस्या की । इसके बाद उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । उन्होंने अपने पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा । जन्म के समय ऋषियों ने राजा को बताया था कि वे २० वर्ष की उम्र तक सुजान को उत्तर दिशा की ओर यात्रा न करने दें । एक दिन ७२ सैनिकों के साथ राजकुमार जब शिकार खेलने गए, तो वे गलती से उत्तर दिशा की ओर चले गए । उत्तर दिशा में ऋषि तपस्या कर रहे थे । राजकुमार के पहुंचने से वहां ऋषि की तपस्या भंग हो गई, जिससे ​ऋषि क्रोधित हो गए । उन्होंने राजकुमार और उनके सैनिकों को पत्थर बनने का श्राप दे दिया । श्राप के उपरांत राजकुमार और उनके सैनिक पत्थर के बन गए । जब राजकुमार की पत्नी चंद्रावती के पास श्राप से पति के पत्थर बनने का समाचार पहुंचा, तो वे सैनिकों की पत्नियों के साथ जंगल में गईं और ऋषि से क्षमा मांगी और उनसे पति को श्रापमुक्त करने का उपाय पूछा । तब ऋषि ने कहा कि ‘‘यदि तुम अपने पति को श्राप मुक्त करना चाहती हो तो माहेश यानी भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करो ।’’ राजकुमार की पत्नी और सभी सैनिकों की पत्नी ने ऐसा ही किया । इसके उपरांत ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन राजकुमार श्राप से मुक्त हो गए । इसके उपरांत राजकुमार ने ​अहिंसा का मार्ग अपना लिया । इसके उपरांत सुजान कंवर ने वैश्य धर्म अपना लिया और माहेश के नाम से माहेश्वरी समाज बनाया । इस तरह माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई और प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को माहेश और मां गौरी की पूजा की जाने लगी ।

माहेश नवमी का उत्सव

माहेश नवमी मुख्य रूप से हिन्दुओं का त्यौहार है और देश के कई हिस्सों में, विशेष रूप से राजस्थान में मनाया जाता है । देश के सभी हिस्सों में भक्त इस दिन भगवान माहेश और देवी पार्वती की पूजा करते हैं । मंदिर फूलों से सजाए जाते हैं और पूरे स्थान को पवित्र किया जाता है तथा शांति बनाई जाती है । इस दिन नए विवाहित जोडों से विशेष रूप से खुशी और सद्भावना के साथ अपने जीवन में नया चरण आरंभ करने के लिए भगवान और देवी पार्वती की पूजा करने के लिए कहा जाता है ।

माहेश जयंती के अनुष्ठान

माहेश जंयती पर रातभर विभिन्न यज्ञों और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है । भगवान शिव की विशेष झांकी निकाली जाती है । भगवान शिव की बडी तस्वीरें उनके अनुयायियों के द्वारा विभिन्न घरों में ले जाई जाती हैं । भगवान माहेश से प्रार्थना की जाती है । उनकी गुणगान किया जाता है । भगवान का अभिषेक किया जाता है । जब सडकों से चित्र वापस आते हैं, तब भजन संध्या मंदिर परिसर में होती है । लोग इस उत्सव को भगवान शिव और मां पार्वती के प्रति अत्यधिक समर्पण, प्रेम और विश्वास के साथ मनाते हैं । (संदर्भ – साभार सामाजिक जालस्थल (Website))