सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा वर्ष २००२ से अध्यात्मप्रसार करने की अपेक्षा हिन्दू राष्ट्र के लिए कार्य करने के लिए प्रधानता देने का कारण !
साधकों को व्यष्टि साधना करते समय ‘मेरी आध्यात्मिक उन्नति हो रही है या नहीं ?’, इस विचार में संलिप्त होने की अपेक्षा यह विचार करना चाहिए कि ‘क्या मैं समष्टि साधना के लिए अधिकाधिक प्रयास कर रहा हूं न ?’