सनातन के ४७ वें संत पू. रघुनाथ राणेजी (आयु ८२ वर्ष) का ठाणे में देहत्याग !

मूलतः सिंधुदुर्ग जिले में स्थित ओझरम गांव के निवासी तथा वर्तमान में ठाणे में वास्तव्य करनेवाले सनातन के ४७ वें संत पू. रघुनाथ वामन राणेजी (पू. राणेजी) (आयु ८२ वर्ष) ने ११ जुलाई २०२१ को उत्तररात्रि २ बजे ठाणे के रुग्णालय में देहत्याग किया ।

गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में अधिकाधिक सेवा कर हम गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं ! – पू. नीलेश सिंगबाळजी, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृति समिति

‘गुरुपूर्णिमा शिष्यों एवं साधकों के जीवन का सबसे बडा उत्सव है । इस उपलक्ष्य में हम तन, मन एवं धन का त्याग और गुरुसेवा कर गुरुदेवजी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं ।

गुरुपूर्णिमा के अवसर पर हिन्दू-राष्ट्र स्थापना हेतु सक्रिय होने का निश्‍चय करें ! – सद्गुरु डॉ. पिंगळे

शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति के साथ धर्मसंस्थापना करना, यह गुरु परंपरा का कार्य रहा है । वर्तमान समय में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना, यह धर्मसंस्थापना का ही कार्य है ।

इंदौर के भक्तवात्सल्य आश्रम में प.पू. भक्तराज महाराजजी का जन्मोत्सव भावपूर्ण वातावरण में संपन्न !

इंदौर (मध्य प्रदेश) के भक्तवात्सल्य आश्रम में ७ जुलाई को सनातन संस्था के श्रद्धाकेंद्र प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) का जन्मोत्सव भावपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ ।

विनम्रता एवं दास्यभाव के मूर्तिमंत प्रतीक हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी !

‘एक बार हम गोवा से पुणे की यात्रा कर रहे थे । उस समय सद्गुरु पिंगळेजी मेरे बगल में बैठे थे । सद्गुरु पिंगळेजी के प्रभाव से ‘स्टेयरिंग’ पर हाथ होने के समय मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ‘मैंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरण पकडे हुए हैं ।’

सनातन के ४६ वें संत पू. भगवंत मेनरायजी की सेवा में रहते समय साधकों को सीखने मिले सूत्र एवं प्राप्त अनुभूतियां !

वर्ष २०१९ में पू. मेनरायजी जब रामनाथी आश्रम में थे, तब मुझे ‘उनके वस्त्र धोने और इस्तरी करने’ की सेवा मिली थी । तब पू. (श्रीमती) मेनरायजी एवं पू. मेनरायजी दोनों ही बीमार थे । उन्हें अधिकांश समय विश्राम ही करना पडता था ।

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति हमें अंतिम श्‍वास तक कृतज्ञ रहना होगा !’ – श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

संत भक्तराज महाराजजी के देहत्याग उपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने गुरुतत्त्व को पहचानकर (गुरुतत्त्व से सान्निध्य रखकर) व्याप क कार्य किया । प्रत्यक्ष रूप से उन्हें उनके गुरुदेवजी का सान्निध्य बहुत अल्पावधि के लिए ही प्राप्त हुआ ।

योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी द्वारा सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अलौकिक कार्य की प्रशंसा !

सनातन प्रभात’ एकमात्र ऐसा दैनिक है, जिसके माध्यम से हिन्दू धर्म एवं हिन्दू धर्मियों की अर्थहीन आलोचना का आप (डॉ. जयंत आठवलेजी) एवं आपके सेवाभावी साधक निर्भयता से मुंहतोड उत्तर देते हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का बुद्धिअगम्य एवं अलौकिक दैवी कार्य !

कलियुग में सैकडों की संख्या में शिष्यपरिवारवाले कुछ महान गुरु हुए । उनके शिष्यपरिवार में से अनेक शिष्य संत (७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के) थे; परंतु इसके संदर्भ में वस्तुनिष्ठ आंकडे उपलब्ध नहीं है ।