विशिष्ट कष्ट के लिए विशिष्ट देवता का नामजप

योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा की विधि की वस्‍तुएं नदी में विसर्जित कर वस्‍तुआें को नमस्‍कार करते १ परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी एवं अन्‍य साधक (२००१)

सनातन के साधकों को अनिष्ट शक्तियों के कारण आध्यात्मिक कष्ट होने लगे, तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हमें समय-समय पर बताया कि ‘सनातन के साधक ईश्वरीय राज्य (हिन्दू राष्ट्र) की स्थापना हेतु कार्यरत हैं; उसके कारण ही साधकों को अधिकांश कष्ट भुगतने पड रहे हैं ।’ उस समय साधकों के कष्ट दूर होने हेतु कौनसा विशिष्ट नामजप करने से लाभ होगा, यह परात्पर गुरुदेवजी स्वयं ढूंढते थे । वर्तमान में आध्यात्मिक उन्नति किए सनातन के कुछ साधक, संत और सद्गुरु भी विशिष्ट कष्टों के लिए विशिष्ट नामजप ढूंढकर साधकों की सहायता कर रहे हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने मुझे प्रेरणा देकर मेरे द्वारा कोरोना महामारी के काल में आत्मबल बढानेवाला ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः-श्री दुर्गादेव्यै नमः-श्री दुर्गादेव्यै नमः-श्री गुरुदेव दत्त-श्री दुर्गादेव्यै नमः-श्री दुर्गादेव्यै नमः-श्री दुर्गादेव्यै नमः-ॐ नमः शिवाय’ यह नामजप ढूंढा । सैकडों साधकों को इस नामजप के परिणामकारक होने की अनुभूतियां हुई हैं ।

इसके अतिरिक्त इस आपातकालीन परिस्थिति में भी अन्य शारीरिक बीमारियों और समस्याओं के लिए ढूंढे गए नामजप साधकों के लिए वरदान सिद्ध हो रहे हैं । आपातकाल में होनेवाली औषधियों की संभावित अनुपलब्धता को ध्यान में लेकर कुछ वर्ष पूर्व ही परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ‘विकार-निर्मूलन हेतु नामजप’, ‘नामजप-उपचारसे दूर होनेवाले विकार’ एवं ‘विकारानुसार नामजप उपचार, ये ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । इस संदर्भ में अभी भी शोधकार्य चल रहा है ।

आज बाह्य परिस्थिति को देखा जाए, तो बीमारियों के लिए औषधियां हैं, लोगों के हाथ में पैसा है; परंतु ये औषधियों रोगियों तक पहुंच ही नहीं पातीं । कोरोना काल में ऑक्सीजन के अभाव में अनेक रोगियों को प्राण गंवाने पडे । एक ओर ‘रेमडेसिविर’ इंजेक्शन का अभाव, तो दूसरी ओर उसकी काला बाजारी चल रही थी । ऐसे में ‘छोटी-बडी अनेक बीमारियों पर ढूंढे गए नामजप तो संजीवनी ही है’, यह साधकों का भाव है ।

संतों द्वारा बताए गए उपचार

पहले परात्पर गुरु डॉक्टरजी संतों से मिलते थे, तब वे संतों से साधकों को हो रहे कष्टों और काल की प्रतिकूलता के विषय में बताकर साधकों के लिए नामजपादि उपचार करने का अनुरोध करते । तब उनके प्रति प्रेम के चलते अनेक संतों ने साधकों के कष्ट दूर होने हेतु विभिन्न उपचार किए । विगत कुछ वर्षाें से अनेक संत और अध्यात्म के अधिकारी व्यक्ति रामनाथी आश्रम में आते हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी उन संतों द्वारा बताए सभी उपचार, विधि और अनुष्ठान अत्यंत गंभीरता से और भावपूर्ण पद्धति से करते हैं । श्री शतचंडी याग, संकटों के निवारण हेतु विशिष्ट पद्धति से सांस की लय को पकडकर देवता का जप करना, श्री सप्तशती पाठ करना भी उनमें से कुछ विशेषतापूर्ण अनुष्ठान हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने श्रद्धापूर्वक ऐसे सहस्रों उपचार किए हैं । संतों की आज्ञा से किए गए अनुष्ठानों और धार्मिक विधियों के कारण साधकों को उन्हें हो रहे कष्टों का निवारण होने की अनुभूतियां हुई हैं ।

पू. संदीप आळशीजी

विगत कुछ वर्षों से परात्पर गुरु डॉक्टरजी की प्राणशक्ति अत्यंत न्यून है अर्थात बडी कठिनाई से जीवित रहने जितनी ही है और वे अनेक बीमारियों से ग्रसित हैं । वे स्वयं ब्रह्मलीन अवस्था में हैं । उनकी इच्छा से वे कभी भी संतोष के साथ देहत्याग कर सकते हैं; परंतु ऐसा होते हुए भी वे केवल अखिल मानवजाति की आपातकाल से रक्षा हो, वह सात्त्विक बने, सर्वत्र ईश्वरीय राज्य आए और सकल सृष्टि का कल्याण हो; इसके लिए प्रतिदिन वे अक्षरशः देह में विद्यमान प्राण को एकजुट कर कार्यरत रहते हैं !  ऐसे धर्मसंस्थापक, जगदोद्धारक, सृष्टि के पालनहार और युगप्रवर्तक परमकृपालु गुरुदेवजी के चरणों में शिरसाष्टांग नमन !

– (पू.) श्री. संदीप गजानन आळशी 

बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।