२१.७.२०२० को पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी की बेटी श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत घोषित हुआ । इस संदर्भ में डॉ. नंदकिशोर वेदजी का लेखन आगे दे रहे हैं ।
डॉ. नंदकिशोर वेदजी ने अपनी बेटी श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर के आध्यात्मिक जीवन के विशद किए चरण एवं गुरुदेवजी के प्रति व्यक्त की कृतज्ञता !
१. क्षिप्रा के आध्यात्मिक जीवन के चरण
१ अ. वर्ष २००० – क्षिप्रा की साधना का गुरुकृपा से आरंभ ! : ‘वर्ष २००० में सरयू विहार, अयोध्या में सनातन संस्था के साधक सत्संग के लिए आए थे, तब क्षिप्रा ने अपने कक्ष का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया । तदुपरांत गुरुकृपा से ‘वह बंद दरवाजा कब खुला, क्षिप्रा सत्संग कब लेने लगी और अयोध्या के सनातन के कार्य का दायित्व भी लेने लगी’, वह पता ही न चला ।
१ आ. वर्ष २००५ – क्षिप्रा का साधना में पूर्णकालीन होने का निर्णय ! : वर्ष २००५ में सरयू विहार, अयोध्या में क्षिप्रा ने मुझसे कहा, ‘‘पिताजी, मैं सनातन संस्था के मार्गदर्शन में पूर्णकालीन सेवा करूंगी ।’’ मेरी क्षिप्रा जितनी दृढ श्रद्धा न होने से मैंने उसे ‘एम.एससी. (मास्टर ऑफ साइन्स)’ तक की शिक्षा पूर्ण होने पर पूर्णकालीन साधना के लिए जाने की अनुमति दी और उसने यह बात मान ली ।
१ इ. दिसंबर २००७ – पूर्णकालीन साधना का आरंभ करनेवाली क्षिप्रा बन गई परिजनों की ‘आध्यात्मिक माता’ ! : गुरुकृपा से क्षिप्रा पूर्णकालीन साधिका हो गई । स्वयंका साहस, दृढता, निडरता, परात्पर गुरु डॉक्टरजी पर अटूट श्रद्धा और उनकी कृपा के बल पर उसने जीवन का अत्यधिक कठिन काल पार किया । वह हमारी ‘आध्यात्मिक माता’ है । हम साधना अंतर्गत जहां लडखडाते हैं, अटक जाते हैं, वह हमें संभालती है और मार्गदर्शन करती है ।
१ ई. ऑनलाइन भावसत्संग लेने की सेवा देकर परात्पर गुरुदेवजी ने किया क्षिप्रा का उद्धार (२१ जुलाई २०२० को क्षिप्रा का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत होना) : इस आपातकाल में संपतकाल बनानेवाले, सभी को भाव-भक्ति से अभिसिंचित करनेवाले भावसत्संग हमें प्रदान कर गुरुदेवजी ने सर्व भक्तों का कल्याण तो किया ही है । क्षिप्रा का उन्होंने उद्धार ही किया है ।
‘हम सभी पर गुरुदेवजी की कृपादृष्टि बनी रहे’, यही श्रीगुरुचरणों में प्रार्थना । कृतज्ञता गुरुदेव, आपके श्रीचरणों में कोटीशः कृतज्ञता !’
– डॉ. नंदकिशोर वेद, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२१.७.२०२०)