साधकजीवों को भक्तिरस में सराबोर करनेवाले श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का दिव्य आनंददायी ‘रथोत्सव’ !

रथोत्सव में सम्मिलित साधकों के मुख पर भाव एवं आनंद, उन्होंने धारण की हुई सात्त्विक एवं पारंपरिक वेशभूषा, हाथ में लिया भगवा ध्वज, ध्यान आकर्षित करनेवाले फलक, श्रीराम शालीग्राम की पालकी एवं सभी के मुख में श्रीमन्नारायण का जयघोष, ऐसे भक्तिमय वातावरण में इस रथोत्सव का प्रारंभ हुआ । 

शोभायात्रा में साधक ध्वज फहराते । श्रीमन्नारायण की महिमा गाते ।।

क्या वर्णन करें उन क्षणों का ! जीवन कृतार्थ होने का भान करानेवाले श्रीमन्नारायण के दर्शन के वो क्षण ! एक ओर श्रीमन्नारायण भक्तों से मिलने हेतु आतुर होकर प्रतीक्षारत थे, तो दूसरी ओर श्रीमन्नारायण से मिलने के लिए उनके भक्त हाथ जोडकर खडे थे । यह जीव और शिव की भेंट थी !

‘प्रसंग प्रत्यक्ष हो रहा है’, इसकी अनुभूति देने हेतु सजीव हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रथोत्सव के चैतन्यमय छायाचित्र !

जो साक्षात ईश्वर से संबंधित होता है, वह माया से संलग्न न होकर शाश्वत होता है । वह चिरंतन टिकनेवाला और आत्मानंद देनेवाला होता है । इसलिए सात्त्विक घटकों में सजीवता दिखाई देती है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का महर्षि के प्रति शिष्यभाव एवं महर्षि का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति ‘श्रीमन्नारायण के अवतार’ में आदरभाव !

रथोत्सव के दिन सवेरे सप्तर्षियों का संदेश आया, ‘श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी ने हम सभी की प्रार्थना सुन ली है । प्रकृति अनुकूल हो गई है । मेघ पूर्ण रूप से गए नहीं थे; गुरुदेवजी ने उन्हें साधकों की दृष्टि से दूर ले जाकर रखा था । रथोत्सव समाप्त होने पर ये मेघ पुन: बरसेंगे ।

श्रीमन्नारायण की भक्ति सिखानेवाला, चित्तवृत्ति जागृत करनेवाला दिव्य रथोत्सव !

श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रथोत्सव में विविध पथकों की साधक-साधिकाओं ने श्रीविष्णु का गुणसंकीर्तन कर श्रीविष्णु तत्त्व का आवाहन किया । अत्यंत अलौकिक ऐसे इस रथोत्सव में भाव, भक्ति एवं चैतन्य के वर्षाव की अनुभूति साधकों को हुई ।

पधारो नाथ पूजा को । हृदयमंदिर सजाया है ।।

जिन्होंने संपूर्ण विश्व की रचना की है, जिनके स्मरण मात्र से मनुष्य जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है, ऐसे भक्तवत्सल श्रीविष्णु को मैं बार-बार नमस्कार करता हूं ।

सप्तर्षियों की जीवनाडीपट्टिका में सनातन के तीन गुरुओं के विषय में गौरवोद्गार !

सनातन संस्था के तीन गुरु, अर्थात सच्चिदानंद परब्रह्म परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवले, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ! सनातन के साधकों को मिली ईश्वरीय संपत्ति है ।

श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के निमित्त उनका ‘रथोत्सव’ मनाने के संदर्भ में जीवनाडीपट्टिका के माध्यम से सप्तर्षियों द्वारा प्राप्त मार्गदर्शन !

गर्भगृह में रखी मूल मूर्ति के दर्शन करने भक्त मंदिर में जाते हैं । किसी कारण सभी भक्तों को मंदिर जाकर दर्शन करना संभव नहीं होता । इसीलिए देवताओं का रथोत्सव मनाने की प्रथा है । भगवान रथ में विराजमान होने से और रथ का गांव में मार्गक्रमण होने से भगवान के सबको दर्शन होते हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के निमित्त श्रीविष्णु के रूप में हुआ उनका रथोत्सव : ईश्वर की अद्भुत लीला !

‘ईश्वर जब कोई कार्य निर्धारित करते हैं, तो प्रकृति, पंचमहाभूत, देवी-देवता एवं ऋषि-मुनि किस प्रकार उसे साकार रूप देते हैं ?’, यह दैवी नियोजन हम साधकों ने रथोत्सव के माध्यम से अनुभव किया ।

श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अवतारी कार्य का महत्त्व

‘भक्तों की रक्षा एवं दुर्जनों के विनाश’ के लिए भगवान अवतार धारण करते हैं । यह अवतार का मूल कार्य है; परंतु अवतारी लील का एक और अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है अवतार द्वारा पृथ्वी पर जन्म लेने के पश्चात वे युगों-युगों से भक्तों को भवसागर से मुक्त होने का मार्ग दिखाते हैं ।