श्रीकृष्ण के आंतरिक सान्निध्य में रहनेवालीं रत्नागिरी की श्रीमती विजया पानवळकर सनातन के १२६ वें संतपद पर हुईं विराजमान !

साधना में निरंतरता, दृृढता तथा श्रीकृष्ण के निरंतर आंतरिक सान्निध्य में रहनेवालीं यहां की सनातन की साधिका श्रीमती विजया वसंत पानवळकर (आयु ८४ वर्ष) सनातन के १२६ वें संतपद पर विराजमान हुईं ।

प्रीति, परिपूर्ण सेवा करना आदि विभिन्न गुणों से युक्त कर्णावती (गुजरात) के श्री. श्रीपाद हर्षे संतपद पर विराजमान !

ईश्वर के निरंतर आंतरिक सान्निध्य में रहनेवाले वडोदरा के सनातन के साधक श्री. श्रीपाद हर्षे (आयु ८९ वर्ष) सनातन के १२७ वें संतपद पर विराजमान हुए ।

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने स्वयं मेरे व्यवसाय का भार लेकर मुझे साधना करने हेतु समय दिया’, ऐसा भाव रखनेवाले सनातन संस्था के ७३ वें (समष्टि) संत पू. प्रदीप खेमकाजी 

सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्‍यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) ने ११.१०.२०२१ को कतरास (झारखंड) के सफल उद्योगपति एवं सनातन संस्था के ७३ वें संत (समष्टि) पू. प्रदीप खेमकाजी तथा उनके परिवार के साथ भेंटवार्ता की । इस भेंटवार्ता से उनकी साधनायात्रा के कुछ अंश यहां प्रस्तुत हैं… ।

साधना कर संतपद प्राप्त करनेवाले कतरास, झारखंड के सफल उद्योगपति एवं सनातन संस्था के ७३ वें (समष्टि) संत पू. प्रदीप खेमकाजी (आयु ६४ वर्ष) !

पू. प्रदीप खेमकाजी एक उद्योगपति हैं । उन्होंने साधना में संतपद प्राप्त किया है तथा उन्होंने अपने व्यवसाय में भी बहुत अच्छी प्रगति की है । उन्होंने ये दोनों बातें कैसे साध्य की, इस संबंध में उन्हीं के शब्दों में सुनेंगे ।

प्रीति, परिपूर्ण सेवा करना आदि विविध गुणों का समुच्चय कर्णावती (गुजरात) के श्री. श्रीपाद हर्षे (वय ८९ वर्ष) संतपदी विराजमान !

ईश्वर के सतत अनुसंधान में रहनेवाले बडोदरा के सनातन के साधक श्री. श्रीपाद हर्षे (वय ८९ वर्ष) सनातन के १२७ वें संतपद पर विराजमान हुए ।

पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी की सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के प्रति दृढ श्रद्धा एवं उनका भक्तिभाव

जयपुर की ८३ वीं संत पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी का ८१ वां जन्मदिन ५ सितंबर को था । इस निमित्त उनकी भक्ति से संबंधित कुछ प्रसंग यहां प्रस्तुत हैं !

पांच कोश और चार देहोंका संबंध

अध्यात्मशास्त्रमें अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय, ये पांच कोश बताये हैं । स्थूलदेह, सूक्ष्मदेह, कारणदेह औेर महाकारणदेह, ये चार देह बताये हैं ।