‘सादगी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की एक विशेषता है । उसके साथ उनके खुले स्वभाव एवं सुंदर आचरण का संयोग हुआ है । इसके कारण उनके सान्निध्य में सभी को आनंद मिलता है । सप्तर्षियों की आज्ञा से दैवीय भ्रमण करते समय अनेक समाजघटकों से हमारा संपर्क होता है । सभी प्रकार की स्थितियों में अपने सहज एवं सुंदर आचरण से सभी पर आनंद की वर्षा करनेवालीं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी हमारे लिए एक चलता-बोलता विश्वविद्यालय ही हैं ! वे अपने संपर्क में आनेवाले सभी लोगों से स्वयं निकटता बनाकर सभी पर प्रेम की वर्षा करती हैं । ऐसे कुछ चयनित प्रसंग यहां दे रहा हूं –
भोजनालय की रसोईया महिला के साथ बैठकर रोटी बनाकर देखना
दिसंबर २०२० में हम दैवीय भ्रमण के अंतर्गत राजस्थान के तीर्थस्थल ‘पुष्कर’ गए थे । वहां हम एक स्थान पर भोजन करने के लिए रुके । उस भोजनालय में काम करनेवाली महिला रसोईया चूल्हे पर रोटियां बना रही थी । यह देखकर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी उस महिला के पास बैठीं तथा ‘वह रोटियां कैसे बना रही है ?’, यह जिज्ञासा से देखने लगीं । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी उस महिला से ‘क्या मैं भी एक रोटी बनाकर देखूं ?’, ऐसा पूछकर रोटी बनाने में जुट गईं ! यह देखकर वह महिला अचंभित रह गई । ‘वह भोजनालय चलानेवाले मानो एक घर के ही हैं’, इस प्रकार से वे दोनों बातें करने लगीं ।
यदि मैं उनके स्थान पर होता, तो मैं रोटी बनाने की प्रक्रिया केवल देखता; परंतु एक छोटे से भोजनालय के रसोईए के पास बैठकर रोटियां बनाने की तैयारी नहीं दर्शाता ! गुरुओं में अहं न होने से उनमें सीखने की लगन तथा सभी के प्रति प्रेमभाव होता है !
साधकों को आनंद देने के लिए अखंड कार्यरत रहना
एक बार हम बहुत लंबी यात्रा कर बेंगळूरु पहुंचे । उस दिन हमारे साथ सेवा करनेवाले दो साधकों का जन्मदिवस था; इसलिए श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने हमें उन साधकों लिए मिठाई लाने के लिए कहा तथा वे स्वयं उन साधकों के भोजन की थाली के आसपास रंगोली बनाने लगीं । उस समय हमने उनसे प्रार्थना की, ‘‘आप यह सब न करें । आप अभी-अभी यात्रा कर थक गई हैं ।’ उस पर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने कहा, ‘‘भ्रमण तो सामान्य बात है; परंतु जन्मदिन तो वर्ष में एक ही बार आता है । क्या हमें उन साधकों को उसका आनंद नहीं देना चाहिए ?’’ ऐसा बोलकर उन्होंने उन साधकों की आरती भी उतारी ।
उनके स्थान पर यदि हम होते, तो हम उन्हें केवल शुभकामनाएं देते; परंतु ‘वे श्रीचित्शक्ति क्यों हैं ?’, यह उन्होंने अपनी कृति से हमें सिखाया । उनकी ऐसी कृतियों में भी बहुत सहजता होती है ।
अपरिचित गांव में जाकर वहां के प्रत्येक व्यक्ति को अपना बनाना
‘आरणी’ नामक गांव चेन्नई से २.३० घंटे की दूरी पर है । इस गांव के घर-घर में रेशमी धागों को रंगाने से लेकर संपूर्ण साडी तैयार करने तक की प्रक्रिया की जाती है । हमने इस प्रक्रिया का ध्वनिचित्रीकरण कर इस कार्य के जानकार लोगों से भेंटवार्ता की । इसके लिए श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी बहुत पैदल चलीं । अंत में वापस लौटते समय उस गांव के प्रत्येक घर के लोग वहां एकत्रित हुए तथा उन्होंने बहुत अपनेपन से हमें विदाई दी ।
सामान्य व्यक्ति को एक दिन में इतनी सहजता से इतना प्रेम नहीं मिलता । उसमें भी अपरिचित व्यक्तियों से अपनापन मिलने के लिए अपना अहं, प्रतिमा तथा देहभान भूल जाना पडता है, साथ ही ‘हम अन्यों से भिन्न नहीं है’, इसका भी भान रखना पडता है ।
स्वयं में सभी के प्रति उच्च स्तर का प्रेमभाव होना चाहिए । ऐसा केवल ‘जिन्होंने अध्यात्म में सचमुच प्रगति की है’, ऐसे सद्गुरु ही कर सकते हैं ।’
– श्री. स्नेहल मनोहर राऊत, (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत)