१ से १५ मार्च को प्रकाशित भाग में पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी का सनातन संस्था के साथ संपर्क होने के उपरांत उनके द्वारा की गई साधना, सेवा, गुरुदेवजी के प्रति उनकी नितांत श्रद्धा तथा उन्हें प्राप्त अनुभूतियां देखीं । अब इस भाग आगे के सूत्र देखेंगे । (भाग ३)
१३. स्वभावदोष एवं अहं-निर्मूलन प्रयास !
१३ अ. नियमितरूप से सारणी लेखन करना : ‘साधकों को समय-समय पर जो करने के लिए कहा गया, हमने (मैं तथा मेरे पति पू. प्रदीप खेमकाजी (सनातन के ७३ वें (समष्टि) संत) उसे करने का प्रयास किया । वर्ष २००३ से हमने स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन हेतु सारणी लेखन (टिप्पणी) आरंभ किया । हर एक घंटे में ध्यान में आईं चूकें तथा दैनंदिनी लिखना, स्वसूचनाएं लेना आदि सभी प्रयास किए । गुरुकृपा से आज तक हमारा सारणी लेखन नियमितरूप से जारी है ।
१३ आ. सारणी लेखन का पोते पर हुआ संस्कार : अब हमारा पोता श्रीहरि (वर्ष २०२३ में आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत तथा आयु ७ वर्ष) हमसे पूछता है, ‘आज मुझसे कौन सी चूकें हुईं ?’ तथा वह भी हमारे साथ बैठकर दिनभर में उसके द्वारा हुई चूकों का स्मरण कर हमारी भांति लिखने का प्रयास करता है ।
(टिप्पणी : स्वयं में समाहित स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन हेतु प्रतिदिन स्वयं से हुई चूकों को बही में लिखकर, उसके आगे चूकें किन स्वभावदोषों के कारण हुईं; उसे लिखना तथा उसके आगे उचित दृष्टिकोण से युक्त सूचना लिखकर उन्हें दिन में १०-१२ बार मन में दोहराना)
१४. स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन से हुए लाभ !
१४ अ. एक प्रसंग में अकस्मात ही घर के ध्यानमंदिर के सामने स्थित सभागार की फर्श अपनेआप ही एक के पश्चात एक उखडने पर भयभीत न होकर स्थिर रहना संभव होना तथा उस समय ‘स्वभावदोष एवं अहं निमूर्लन का महत्त्व समझ में आना : सनातन संस्था के मार्गदर्शन में साधना आरंभ करने के उपरांत गुरुदेवजी की कृपा से मुझे बहुत कुछ सीखने के लिए मिला; परंतु उसमें भी मुझे एक सूत्र बहुत विशिष्ट लगा । वह है ‘स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन के प्रयास !’ सभी के लिए ही यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण सूत्र है । ‘२९.१.२०१९ को धनबाद में ‘सनातन प्रभात’ के पाठकों के लिए मार्गदर्शन का आयोजन किया गया था । वहां जाने के लिए जब पति पू. प्रदीप खेमकाजी, सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी एवं श्री. शंभू गवारे (वर्ष २०२३ में आध्यात्मिक स्तर ६५ प्रतिशत) घर से निकल रहे थे, उस समय अचानक ही घर के ध्यानमंदिर के सामने स्थित सभागार की फर्श एक-एक कर अपनेआप उखडने लगी तथा उससे घर की स्थिति बहुत ही भयावह हो गई । उस समय मेरी आंखों के सामने आपातकाल का दृश्य आ गया ।’
ईश्वर की कृपा से हम सभी स्थिर रह पाए । उस समय गुरुदेवजी की सिखाई हुई ‘स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया कितनी महत्त्वपूर्ण है’, इसका मुझे भान हुआ । यदि हमारे स्वभावदोष न्यून नहीं हुए तथा हमारे मन में स्थिरता नहीं आई; तो हम आपातकाल का सामना कैसे कर पाएंगे ?, ‘यदि किसी प्रसंग में हम तुरंत घबरा जाएं, उचित निर्णय नहीं ले पाए अथवा चिंतित होने लगे, एक-दूसरे पर क्रोधित होने लगे; तो हमारी स्थिति विकट हो जाएगी’, इसका भगवान ने मुझे भान करवाया ।
१४ आ. साधना आरंभ करने पर अहं का पहलू ‘भावनाशीलता’ अपनेआप घटना : मुझमें ‘किसी भी सामान्य बात पर दुःखी होना अथवा कोई बात मन को लगाना’, यह अहं का पहलू बडी मात्रा में था । कोई कुछ कहे, तो तुरंत ही मेरी आंखों में आंसू आ जाते थे । साधना करते समय गुरुकृपा से अहं का यह पहलू अपनेआप ही घटता गया ।
१४ इ. साधकों पर नामजपादि उपचार करते समय साधकों को कष्ट पहुंचानेवाली अनिष्ट शक्तियों का कष्ट बढने पर भय प्रतीत होना, धीरे-धीरे वह भय नष्ट होना तथा भय नष्ट होने पर अन्य सेवा दी जाना : वर्ष २०११ में मेरा आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत होने के उपरांत मुझे साधकों पर नामजप आदि उपचार करने के लिए कहा गया था । उसके लिए मैं सप्ताह में एक बार धनबाद जाती थी । साधकों पर उपचार करते समय साधकों को होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के कष्ट बढते थे, जिसका मुझे बहुत भय लगता था; परंतु ‘एक संत ने मुझे यह सेवा करने के लिए कहा है तथा मुझे यह सेवा करनी ही है’, इस विचार से मैं साधकों पर उपचार करने के लिए जाती थी । एक साधक ने मुझसे कहा, ‘‘जब इस प्रसंग के प्रति आपका भय नष्ट होगा, उस समय आपकी सेवा परिवर्तित कर दी जाएगी ।’’ उपचारों के समय प्रतिदिन ही साधकों के कष्ट बढ रहे थे । धीरे-धीरे इन प्रसंगों के प्रति मुझे जो भय लगता था, वह नष्ट हो गया । उसके १-२ माह उपरांत मेरी यह सेवा परिवर्तित कर दी गई ।
‘इन प्रसंगों के प्रति मेरा भय नष्ट होने के लिए ही भगवान ने यह प्रसंग निर्माण किया था, यह मैं सीख पाई ।
१५. आध्यात्मिक उन्नति के संबंध में मेरे विचार !
आध्यात्मिक उन्नति के संबंध में मेरे मन में कभी विचार नहीं आए । एक बार एक सत्संग में उत्तरदायी साधक ने सभी को साधना से संबंधित कुछ प्रश्न देकर उनके उत्तर अगले सत्संग में आते समय लिखकर लाने के लिए कहा था । उसमें पहला ही प्रश्न था, ‘६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने हेतु आप कैसे प्रयास करेंगे ?’ उसका उत्तर मैंने लिखा था, ‘मैं अपने प्रयासों से ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त नहीं कर पाऊंगी’, यह मेरे नियंत्रण में नहीं है । जब प.पू. गुरुदेवजी की कृपा होगी, तभी ऐसा हो पाएगा !’ माता-पिता का ध्यान अन्य बच्चों की तुलना में उनके बीमार अथवा दुर्बल बच्चे की ओर अधिक रहता है । उसी प्रकार ‘मुझे कुछ भी नहीं आता; इसलिए प.पू. गुरुदेवजी मुझ पर अधिक ध्यान देते हैं’, ऐसा मुझे सदैव लगता है ।
१६. साधनायात्रा में प्राप्त संतों के कृपाशीर्वाद !
१६ अ. पू. प्रदीप खेमकाजी (सनातन के ७३ वें (समष्टि) संत) : ‘पति पू. प्रदीप खेमकाजी के सान्निध्य के कारण ही प.पू. गुरुदेवजी मेरे जीवन में आए’; इसलिए मुझे मेरे पति के प्रति बहुत कृतज्ञता प्रतीत होती है ।
१६ आ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के आशीर्वादात्मक बोल ! : वर्ष २०११ में जब हम दोनों का (मेरा एवं पति का)६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित हुआ, उस समय प.पू. गुरुदेवजी ने लिखकर भेजा था, ‘मैं ईश्वर से यह प्रार्थना करता हूं कि आप दोनों की आध्यात्मिक उन्नति एक-दूसरे के साथ ही हो’ । यह उन्होंने हमें दिया हुआ हमारे जीवन का एक अविस्मरणीय आशीर्वचन है !
१६ ई. पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी : वर्ष २०१४ की गुरुपूर्णिमा से पूर्व पू. डॉ. ॐ उलगनाथनजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के साथ मुझे एक महीने यात्रा पर जाने का अपूर्व अवसर मिला था । ‘वे क्षण मेरे जीवन के ‘स्वर्णिम क्षण’ थे’, ऐसा मुझे लगता है ।
१७. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के साथ अविस्मरणीय क्षण !
एक बार हम रामनाथी आश्रम गए थे, उस समय हमें प.पू. गुरुदेवजी का सत्संग मिलनेवाला था । उस समय हमारी पारिवारिक समस्याएं बहुत बढ गई थीं । सत्संग के समय गुरुदेवजी के आने से पूर्व मैं आंखें बंद कर बैठी थी । उस समय मुझे लगा, ‘भगवान श्रीकृष्ण आए हैं, वे मेरे पास बैठे हैं तथा मैं उनकी ओर देखकर हंस रही हूं ।’ उस क्षण जब मैंने आंखें खोलकर सामने देखा, तब प.पू. गुरुदेवजी मेरे सामने बैठे थे तथा वे मेरी ओर देखकर हंस रहे थे । यह प्रसंग मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी । हमें जब कभी गुरुदेवजी का सत्संग मिला, वे क्षण मेरे लिए सदैव ही अविस्मरणीय रहे हैं । उनकी प्रीति, उनकी ममता तथा उनकी कृपा का हम सदैव ही अनुभव करते हैं । ‘प.पू. गुरुदेवजी के सत्संग के क्षण तथा उनके साथ छायाचित्र खींचना’, यह सभी क्षण बहुत ही अविस्मरणीय हैं !
१८. स्वयं का जन्मदिवस तथा विवाह की वर्षगांठ के समय पवित्र कुंभपर्व स्थल पर संतपद प्राप्त करने की घोषणा कर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा प्रदत्त जीवन के सर्वाेच्च आनंद का क्षण !
१६.२.२०१९ को हम कुंभपर्व हेतु प्रयागराज गए थे । हम कुंभ मेले में थे उस समय तिथि के अनुसार मेरा जन्मदिवस तथा उसी दिन हमारे विवाह की वर्षगांठ भी थी । जन्मदिवस से एक दिन पूर्व सद्गुरु पिंगळेजी से बातें करते समय मैंने यह बात उन्हें बताई थी । दूसरे दिन सवेरे सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी के साथ मेरी इस विषय पर बात हुई । उस समय ये २ विशिष्ट बातें बताकर उन्होेंने कहा, ‘‘आपका जन्मदिवस, साथ ही आपके विवाह की वर्षगांठ है । ऐसे समय पर आप इस कुंभपर्व के पवित्र स्थान पर हैं ।’’ मेरी राशि भी कुंभ ही है । ऐसे सभी संयोगों पर मेरा संतपद घोषित किया गया । उसके कारण गुरुदेवजी के प्रति मुझे अपार कृतज्ञता प्रतीत हुई । ऐसे शुभ दिवस पर प.पू. गुरुदेवजी मुझे मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ उपहार देनेवाले थे तथा उसके लिए ही उन्होंने यह दिन चुना होगा । ‘परम पूज्य, आपने ‘मेरा जन्मदिवस, मेरे विवाह की वर्षगांठ तथा मेरा उद्धार’, यह सबकुछ एक ही दिन पर संपन्न किया’, ऐसा मुझे लगा ।
१९. कृतज्ञता
मुझे प्रति क्षण गुरुदेवजी के चरणों के प्रति कृतज्ञता प्रतीत होती है । जैसे नदी में रेत के कण एक-दूसरे से चिपके होते हैं, वैसे ही हम उन रेत के कणों की भांति प.पू. गुरुदेवजी के विशाल चरणों के पास चिपके हुए हैं । ‘प.पू. गुरुदेवजी हमें सदैव उनके साथ ही रखें’, यही उनके चरणों में प्रार्थना है ।’ (समाप्त)
– (पू.) श्रीमती सुनीता खेमकाजी, कतरास, झारखंड