‘यूएएस (युनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण द्वारा प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी और उनके संत परिजनों के छायाचित्रों से अत्यधिक मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होना सुनिश्चित होना

१३ वीं शताब्दी में महाराष्ट्र में जन्मे संत ज्ञानेश्वर महाराज स्वयं उच्च स्तर के संत थे और उनके माता-पिता एवं भाई-बहन भी संत थे । वर्तमान कलियुग में ऐसा ही एक उदाहरण है ‘सनातन संस्था’ और ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का !

चार पुरुषार्थ एवं पुरुषार्थ का महत्त्व

धर्म और मोक्षमें स्वयंका पराक्रम, प्रयास, कर्तृत्व, अर्थात् पुरुषार्थ मुख्य है और प्रारब्ध गौण है । धर्माचरण तथा मोक्षप्राप्ति दैवसे, प्रारब्धसे नहीं होती; यह पूरे निर्धारसे स्वयं ही करना पडता है ।

नामजप का अधिकाधिक लाभ लेने के लिए भावपूर्ण ध्वनिमुद्रण सभी को उपलब्ध करवानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘अनेक संप्रदायों के गुरु अथवा संत समाज को बताते हैं, ‘नामस्मरण करें’; परंतु ‘किस प्रकार नामस्मरण करने पर अधिक लाभ होगा’, यह कोई भी नहीं बताता । इसके विपरीत, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साधकों को कालानुसार भावपूर्ण नामस्मरण सिखाते हैं ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

प.पू. दादा (आध्यात्मिक स्तर ८३ प्रतिशत) और पू. ताई (मां) (आध्यात्मिक स्तर ७५ प्रतिशत) बचपन से ही हम पांचों भाईयों पर व्यावहारिक शिक्षा के साथ ही सात्त्विकता और साधना के संस्कार किए, इसलिए हम साधनारत हुए ।

जाधवपुर, पश्चिम बंगाल की श्री श्री अर्चनापुरी मां ने किया देहत्याग !

श्री ठाकुर के दिव्य मार्गदर्शन से प्रेरित, श्री अर्चना पुरी मां ने अकेले ही ४००० से अधिक गीतों का भंडार रचा था, जिसमें कविता, निबंध, नाटक, नृत्य-नाटक, कहानियां, गीतात्मक नाटक, गीत, मां शारदा एवं अन्य संतों की जीवनी आदि का एक समृद्ध संग्रह बनाया ।

सहनशील, सेवा की लगन एवं सनातन संस्था के प्रति श्रद्धाभाव रखनेवाले ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त जोधपुर (राजस्थान) निवासी दिवंगत बंकटलाल मोदी (वय ७५ वर्ष) !

‘पति का नामजप और त्याग होना, बीमारीरूपी प्रारब्ध सहन करने की शक्ति मिलना और अंततः सहजता से प्राण छोडना’, यह सबकुछ गुरुकृपा से ही संभव हुआ ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

तीर्थस्वरूप दादा और श्रीमती ताई के कारण हमारे घर का वातावरण आध्यात्मिक था । उनके निरंतर सहज वार्तालाप और आचरण के कारण हम पर साधना के संस्कार हुए ।

‘एसएसआरएफ’ के साधकों द्वारा दूरदर्शन पर प्रसारित धार्मिक धारावाहिक ‘महाभारत’ में श्रीकृष्ण की भूमिका करनेवाले एक सुप्रसिद्ध अभिनेता, इस धारावाहिक के निर्देश और संहितालेखिका से हुई भावस्पर्शी भेंट !

आध्यात्मिक प्रगति होने हेतु ‘स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन, नामजप एवं सत्सेवा’, ये साधना के प्रमुख चरण हैं । आप ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ नामजप करना आरंभ कर सकते हैं ।

चित्तशुद्धिके लिये एक अलग विचार

इंद्रियां, पञ्चतन्मात्रा आदिमें व्यक्त होनेवाले चैतन्यके अंशको भी देवता कहनेका प्रघात है; यथा वाणीकी देवता अग्नि, कानोंमें दिक देवता, आंखोंकी सूर्य, त्वचाकी वायु, चरणोंकी उपेन्द्र, हाथोंकी इन्द्र आदि ।

कलियुग में स्वभावदोष निर्मूलन सभी प्रकार की साधनाओं का मूलाधार !

वर्तमान कलियुग में अधिकांश लोग रज-तम प्रधान होने के कारण उनमें स्वभावदोष और अहं की तीव्रता अधिक है । इसलिए नामजप करना उन्हें कठिन होता है ।