बच्चो, स्वभावदोष दूर कर ‘व्यक्तित्व’ विकसित करें !

१. व्याख्या

     ‘स्वभावदोष-निर्मूलन’ अर्थात स्वभावदोष दूर करना । ‘स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया’ का अर्थ है, स्वभावदोष दूर करने के लिए उचित पद्धति से और नियमित की जानेवाली एक विशिष्ट प्रक्रिया ।

२. महत्त्व

अ. सुखी एवं आदर्श जीवन जी पाना : स्वभावदोषों से जीवन दुःखी एवं निराशाजनक हो जाता है । स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया से दोष नियंत्रण में आते हैं और स्वयं में गुणों का विकास होता है; जिससे जीवन सुखी एवं आदर्श बनता है ।

आ. व्यक्तित्व का वास्तविक विकास होना : अनेक बालक अपना व्यक्तित्व आदर्श बनाने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना, प्रिय क्षेत्र में कुशलता प्राप्त करना, विविध भाषाओं का अध्ययन करना, प्रतियोगिता परीक्षाएं देना, व्यायाम एवं खेल द्वारा शरीर सक्षम बनाना, ऐसे विविध मार्ग अपनाते हैं ।

इ. बच्चो, अनेक दोषों से युक्त व्यक्तित्व क्या किसी को अच्छा लगेगा ? : वास्तव में अपना भयग्रस्त स्वभाव, लोगों से बात न कर पाना, कम बोलना, अन्यों का विचार न करना इत्यादि स्वभावदोष दूर करने से व्यक्तित्व का वास्तविक विकास होता है । ऐसा दोष रहित व्यक्तित्व ही अन्य व्यक्ति अथवा समाज कोे प्रभावित कर सकता है; इसलिए व्यक्तित्व विकास के लिए स्वभावदोष नष्ट करना अनिवार्य है ।

ई. जीवन के कठिन प्रसंगों का सहजता से सामना कर पाना : अनेक बालक कठिन प्रसंगों में विचलित हो जाते हैं । स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया से मन एकाग्र एवं दृढ होने के साथ विवेकबुद्धि भी जागृत होती है । इससे कठिन प्रसंगों में स्थिर रह पाने के साथ ही हम मन को अनुचित अथवा अविचारी क्रिया करने से रोक सकते हैं ।

उ. आज के प्रतियोगिता-युग में शीर्ष पर रह पाना : यह प्रक्रिया करने से मन की शक्ति अनावश्यक बातों पर व्यय नहीं होती । इससे व्यक्ति की कार्यक्षमता का परिपूर्ण उपयोग होता है । इससे आज के प्रतियोगिता-युग में शीर्ष पर रहना संभव होता है ।

३. स्वभावदोषों पर विजय पाने हेतु प्रक्रिया करें !

अ. अपने स्वभावदोषों की सूची बनाना

अ १. उद्दंडता, हठ, लहरीपन, समय का पालन न करना, अन्योंको दोष देना, अव्यवस्थितता, आलस्य, एकाग्र न होना, अपनी वस्तुएं अन्यों को न देना, झूठ बोलना, डरपोक, चिडचिडापन, गुस्सैल इस प्रकार के दोष बच्चों में हो सकते हैं । इस प्रकार के दोषों की सूची बनाकर बच्चों में तीव्र दोष कौनसे हैं, वे निकालें ।

अ २. स्वयं की चूकें ढूंढें ! : बच्चो, दिनभर में हमसे हुई चूकें स्वभावदोष-निर्मूलन सारणी में समय-समय पर लिखनी होती है । प्रथम हम समझ लेते हैं कि चूकों का क्या अर्थ है । कभी-कभी हम ऐसा कुछ कह देते हैं, जिससे किसी का अपमान हो जाता है अथवा हमसे निरर्थक हठ करने जैसी कोई अनुचित क्रिया होती है । इन्हीं चूकों के समान मन में अनुचित विचार, प्रतिक्रियाएं अथवा भावनाएं उत्पन्न होना भी चूक ही है, उदा. दूसरे के प्रति मन में द्वेष की भावना उत्पन्न होना । अब हम देखते हैं कि इन चूकों को कैसे ढूंढें ।

अ ३. अपनी चूकें ढूंढने का अभ्यास करें ! : दैनिक व्यवहार करते समय यदि हम ‘मुझे मेरी चूकें ढूंढनी ही हैं’, ऐसा दृढ निश्चय कर सतर्क रहेंगे, तो हमें स्वयं को ही अपनी अधिकतर चूकें ध्यान में आ जाती हैं ।

अ ४. अपनी चूकें ध्यान में आने के लिए अन्यों की सहायता लें ! : बच्चो, कभी-कभी हमें अपनी चूकें ध्यान में नहीं आती । इसलिए अपने माता-पिता, भाई-बहन, मित्र-परिवार इत्यादि से अनुरोध करें कि वे चूकें ध्यान में लाकर दें ।

आ. दिनभर की चूकें लिखने हेतु एक बही में निम्नानुसार स्वभावदोष-निर्मूलन सारणी बनाएं ।

इ. ‘स्वसूचना’ अर्थात क्या यह समझें एवं निरंतर दें ! : स्वयं द्वारा हुई अनुचित क्रिया, मनमें आया अनुचित विचार एवं व्यक्त हुई अथवा मनमें उभरी अनुचित प्रतिक्रियाएं इत्यादि में परिवर्तन होकर उनके स्थानपर उचित क्रिया अथवा उचित प्रतिक्रिया उत्पन्न होने के लिए स्वयंको ही अपने अंतर्मन को (चित्त को) जो उचित सूचना देनी पडती है, उसे ‘स्वसूचना’ कहते हैं । केवल सरल शब्दों में ही बताना हो, तो स्वयं से हुई अनुचित बातों के लिए अपने अंतर्मन को (चित्त को) उचित बात करने का उपाय सुझाना ही ‘स्वसूचना’ है । १ सूचना ५ बार मन में बोलें । एसी दिनभर में ५ सूचना दें

इ १. स्वसूचना पद्धति

इ १ अ. स्वसूचना पद्धति क्र. १ – अनुचित क्रिया का भान एवं उसपर नियंत्रण

उदाहरण : ‘एकाग्रता का अभाव’ स्वभावदोष के लिए दी जानेवाली स्वसूचना -

     गणित की पढाई करते समय जब मैं दो-दो मिनट में यहां-वहां देखूंगा, तब मुझे भान होगा कि ‘एकाग्रता से पढाई करने पर ही वह अच्छे से मेरे ध्यान में रहेगी’ और मैं अपनी पढाई एकाग्रता से करूंगा ।

इ १ आ. स्वसूचना पद्धति क्र. २ – उचित प्रतिक्रिया

उदाहरण : ‘बुरा लगना’ स्वभावदोष के लिए दी जानेवाली स्वसूचना –

     पिताजी के खेलना छोड पढाई करने के लिए कहने पर जब मुझे बुरा लगेगा, तब मुझे भान होगा कि ‘पढाई कर मैं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो जाऊं, इसलिए पिताजी मुझे खेलना छोड पढने के लिए कह रहे हैं’, और मैं तुरंत पढने बैठूंगा ।

इ १ इ. स्वसूचना पद्धति क्र. ३ – मन में प्रसंग का अभ्यास करना

उदाहरण : ‘भय लगना’ स्वभावदोष के लिए दी जानेवाली स्वसूचना –

     आगे की बडी सूचना का मन ही मन अभ्यास करना – ‘सोमवार को इतिहास की परीक्षा है । मेरी तैयारी हो गई है । मैं शांति से इतिहास की बही पढ रहा हूं । अब ‘मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं किसी भी प्रश्न का उत्तर अच्छे से लिख सकूंगा ।’ मैं समय से परीक्षाभवन में पहुंच गया हूं । मैं शांति से अपने स्थान पर आंखें बंद करके बैठा हूं । अब दूसरी घंटी बज रही है । शिक्षक मेरे हाथों में प्रश्नपत्र दे रहे हैं । प्रत्येक प्रश्न एवं उसके अंक देखकर ‘कौनसे प्रश्न का उत्तर लिखूं’, इसका मैं विचार कर रहा हूं । प्रश्नपत्र के सर्व प्रश्न सरल हैं । मैं प्रत्येक प्रश्न का उचित उत्तर लिख रहा हूं । अंत के १० मिनट शेष रह गए हैं, यह सूचित करने के लिए घंटी बज रही है । मैं उत्तर-पुस्तिका के सर्व पृष्ठ पढकर यह जांच रहा हूं कि ‘मैंने सर्व प्रश्नों के उत्तर उचित प्रकार से लिखे हैं न ।’ अब अंतिम घंटी बज रही है । मैं उत्तरपुस्तिका पर्यवेक्षक के हाथमें दे रहा हूं । मैं अब घर आया हूं एवं घर में सभी को बता रहा हूं कि ‘आज की प्रश्नपत्रिका अत्यंत सरल थी ।’ ‘आज की प्रश्नपत्रिका सरल होने के कारण मेरा आत्मविश्वास बढा है । मैं अब विश्राम करूंगा एवं तदुपरांत कल के विषय की पढाई उत्साह से आरंभ करूंगा’, यह विचार कर अब मैं पलंग पर सो रहा हूं ।

इ १ ई. स्वसूचना पद्धति क्र. ४

उदाहरण : किसी बात का मन को भान निर्माण होने हेतु दी जानेवाली स्वसूचना –

     ‘जब मैं किसी से संभाषण नहीं कर रहा होऊंगा व मेरे मन में निरर्थक विचार आ रहे होंगे, तब मेरा नामजप आरंभ हो जाएगा ।

इ १ उ. स्वसूचना पद्धति क्र. ५ – स्वयं को दंड देना

उदाहरण : ‘कल्पनालोक में रम जाना’ स्वभावदोष के लिए दी जानेवाली स्वसूचना-

     जब हिन्दी की कक्षा में ‘सायंकाल घूमने के लिए जाऊंगा, तो क्या-क्या करूंगा’, इस प्रकार कल्पनालोक में रम जाऊंगा, तब अपनेआप को दंड देने का मुझे भान होगा और मैं स्वयं को जोर से चिकोटी काटूंगा ।

     उपरोक्त सूचनाओं के उदाहरणों के जैसे स्वयं में स्वभावदोषों की सूचना तैयार करें ।

ई. निरंतर ५ सूचना दें !

उ. चूकों के लिए दंड अथवा प्रायश्चित लें !

ऊ. नामजप करें एवं स्वभावदोष-निर्मूलन हेतु प्रार्थना करें !

ए. दोष-निर्मूलन प्रक्रिया का ब्यौरा अन्यों को दें !

(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘स्वभावदोष दूर कर आनन्दी बनें !’)