नामजपादि के उपाय करके साधकों के कष्ट कैसे दूर होते हैं इस विषय पर एक नई श्रृंखला
मानव जीवन में होने वाली ८० प्रतिशत समस्याएं आध्यात्मिक कारणों से होती हैं । इसलिए ऐसी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए साधना की आवश्यकता होती है । साधना के साथ, समस्याओं के उस उस प्रसंग में उस समस्या पर नामजपादि आध्यात्मिक उपाय ढूंंढकर करने की आवश्यकता होती है । वर्तमान में धर्माचरण के पतन से उत्पन्न संकट में अनिष्ट शक्तियों का प्रकोप हुआ है । इसलिए सत्कार्य में विघ्न लाकर कष्ट देने के प्रमाण में बहुत वृद्धि हुई है । ईश्वरी राज स्थापित करने के लिए समाज के लिए सत्कार्य, अर्थात समष्टि साधना करने वाले,सनातन के साधक वर्तमान में बार-बार इस प्रकार की कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं । इसलिए किसी भी शुभ कार्य को सुचारु रूप से करने के लिए पहले से ही नामजपादि उपाय ढूंढकर उसे करना पड रहा है, साथ ही आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रतिदिन की जाने वाली व्यष्टि साधना में अनिष्ट शक्तियां साधकों को बार-बार कष्ट दे रही हैं । उसके लिए भी साधकों को उपाय ढूंढ कर करने पड रहे हैं ।
किसी विशिष्ट देवता का जप ढूंढना, मुद्रा ढूंढना और शरीर पर उस मुद्रा से न्यास करने के लिए स्थान ढूंढना अर्थात आध्यात्मिक समस्या से छुटकारा पाने के लिए नामजप के संदर्भ में उपाय ढूंढना है । सूक्ष्म का भाग होने के कारण यह हमारी पांचों इंद्रियों, मन और बुद्धि से परे है । सूक्ष्म को जानने के लिए सूक्ष्म की पांचों इंद्रियों का कार्यरत करना आवश्यक है और वे साधना से कार्यरत होती हैं । चूंकि अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्म जगत में हैं, सूक्ष्म जगत से उनके द्वारा किए जा रहे आक्रमणों को जानने, उनके आक्रमण की पद्धति जानने और आक्रमण के प्रभाव को जानना, सूक्ष्म से ये सब जानकर हम नामजप ढूंढ सकते हैं । नामजपादि उपायों द्वारा हम अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और हमें होने वाले कष्ट दूर कर सकते हैं । साथ ही, सूक्ष्म को जानने से भविष्य में अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों को भी रोका जा सकता है ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन और कृपा से विगत कुछ वर्षों से मैं साधकों की सेवा में आ रही आध्यात्मिक समस्याओं पर नामजप उपाय ढूंढने तथा कुछ प्रसंगों में करने की सेवा कर रहा हूं । साथ ही साधकों की वस्तुओं, निवास की वास्तुओं, देवताओं के चित्र आदि पर हो रहे अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों पर भी नामजप उपाय कर पा रहा हूं । अनिष्ट शक्तियों के कष्ट पर उपाय करना अर्थात एक प्रकार से उनसे लडना है । पांचवें और छठे पातल में अनिष्ट शक्तियों की शक्ति अधिक होने के कारण उनसे लडना अर्थात अपने प्राण संकट में डालना, तो भी मैं यह सेवा केवल गुरु के सुरक्षा कवच और भगवान की कृपा के बल पर ही कर पा रहा हूं । इस लेख में, मैं इस सेवा में अपने विभिन्न अनुभवों के विषय में लिख रहा हूं, जो सूत्र मैंने सीखे हैं, उन साधकों के अनुभव, आदि । श्री गुरुचरण में प्रार्थना है कि इस पाठ को पढकर साधना, नामजप उपाय और जीवन में गुरुकृपा का महत्त्व सबके मन पर अंकित हो ।
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगील, पीएच.डी., महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा । (३१.८.२०२१)
ऑनलाइन नौवें अखिल भारतीय हिन्दू-राष्ट्र अधिवेशन के समय सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीलजी के बताए और कठिनाईयां दूर होने के लिए विविध संतों के किए गए उपाय और उनके परिणाम
हिन्दू जनजागृति समिति और सनातन संस्था द्वारा संयुक्त रूप से ३०.७.२०२० से २.८.२०२० और ६ से १०.८.२०२० की इस कालावधि में नौवें अखिल भारतीय हिन्दू-राष्ट्र्र अधिवेशन का आयोजन ऑनलाइन किया गया था । आयोजन सेवा में विभिन्न स्तरों पर बाधाएं देखी गईं । बाधाओं में प्रसारण के साथ तकनीकी समस्याएं, वक्ताओं को जोडने में कठिनाई, अधिवेशन के लिए आवश्यक ऑडियो रिकॉर्डिंग को अपलोड न होना और अल्प उपस्थिति आदि । इसके पीछे आध्यात्मिक कारण होने से, उनके निवारणार्थ सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीलजी को नामजपादि उपाय पूछे । उनके बताए गए नामजप उपाय परिणाम कारक होने से, अधिवेशन में आने वाली विभिन्न बाधाओं को पराजित करना हो पाया । ये नामाजप उपाय पू. उमेश शेणै, पू. शिवाजी वाटकर, पू. गुरुनाथ दाभोलकर और पू. सदाशिव सामंत, सनातन के इन संतों ने किए । ३०.७.२०२० से अधिवेशन आरंभ हुआ । उस दिन कोई भी विघ्न न आए इसलिए २९.७.२०२० को नामजप आदि उपाय किये गए । उस संदर्भ में रिपोर्ट यहां दी गई है ।
१. २९.७.२०२०
१ अ. कष्ट : अधिवेशन के आयोजन में भाग लेने वाले साधकों के माथे से ठुड्डी तक १ इंच आवरण की खडी पट्टी है । ऐसा डॉ. मुकुल गाडगीलजी ने कहा ।
१ आ. उपाय
१ आ १. जप: निर्गुण (इस जप को आरंभ करने से पूर्व दोनों हाथों की मध्यमा अंगुलियों को आपस में जोड लें, शेष चारों अंगुलियों को सीधा रखें, आंखें बंद करके, हाथों को सिर से पेट तक ७-८ बार घुमाकर आवरण निकालें । (फोटो १ से ३ देखें ।) उस समय निर्गुण का जप करें ।)
१ आ २. मुद्रा : नामजप का उपाय करने वाले साधक आवरण निकालने के उपरांत अपनी एक हथेली को आज्ञाचक्र के सामने १-२ सें.मी. अंतर पर रखें । दूसरी हथेली को मुंह के सामने १-२ सें.मी. की दूरी पर रखें और उस समय निर्गुण का जप करें । (फोटो नंबर ४ देखें) ।
१ आ ३. अवधि : २ घंटे
२. ३०.७.२०२० (प्रथम दिन)
२ अ. जप : महाशून्य
२ आ. मुद्रा : नामजपादी उपाय करनेवाले साधक ने अपनी तलहथेली आज्ञाचक्र के सामने १-२ सें.मी. अंतर पर आडा पकडें और महाशून्य का जप करें ।
२ इ. कालावधी : १ घंटा
३. ३१.७.२०२० (द्वितिय दिन)
३ अ. जप : शून्य
३ आ. मुद्रा : नामजपादी उपाय करनेवाले साधक ने अपनी तलहथेली मुंह के सामने १-२ सें.मी. अंतर पर आडा पकडें और शून्य का जप करें ।
३ इ. कालावधी : २ घंटे
३ ई. प्रार्थना : नामजपादी उपाय करनेवाले साधक ने यह कार्यक्रम निर्विघ्न रूपसे संपन्न हो, ऐसी श्रीकृष्ण को प्रार्थना करेंगे ।
– श्री. अरुण कुलकर्णी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१४.८.२०२०)
वर्तमान कोरोना महामारी में, चूंकि हिन्दूू जनजागृति समिति अथवा सनातन संस्था वास्तविक कार्यक्रम आयोजित नहीं कर सकती हैं, सभी कार्यक्रम ऑनलाइन आयोजित किए जाते हैं । इस कार्यक्रम में कभी-कभी विभिन्न प्रकार की समस्याएं होती हैं जैसे तकनीकी, कंप्यूटर शटडाउन, इंटरनेट का धीमा होना आदि । इन समस्याओं को हल करने के लिए तरह-तरह के प्रयास करने पर भी ये अडचनें दूर नहीं होतीं । क्या ऐसी समस्याओं के आध्यात्मिक कारण हो सकते हैं? इसके लिए सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीलजी से उपाय पूछे जाते हैं । इन उपायों के अंतर्गत जप करते समय विभिन्न मुद्राएं और न्यास किए जाते हैं । यह देखा गया है कि नामजपादि के उपाय करने से किसी भी प्रकार की समस्या दूर हो जाती है । इससे स्पष्ट है कि साधना में आने वाली समस्याओं पर नामजप उपायों का महत्व अद्वितीय है । परात्पर गुरुदेवजी की कृपा से हम साधकों को नामजप उपाय का महत्त्व जानने को मिल रहा है, हम इसके लिए कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, अल्प ही है । |
सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अंग नाक, कान, आंख, जीभ और त्वचा ये पंचज्ञानेंद्रिय हैं । पांचों इंद्रियों से परे मन और बुद्धि सूक्ष्म है । कुछ लोग जिन्होंने साधना में प्रगति की है वे इन सूक्ष्म संवेदनाओं का अनुभव करते हैं । इस सूक्ष्म ज्ञान का उल्लेख विभिन्न धर्म ग्रंथों में मिलता है । आध्यात्मिक कष्ट : इसका अर्थ है किसी व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । किसी व्यक्ति में ५०% या अधिक नकारात्मक स्पंदन होने का अर्थ है गंभीर कष्ट, ३० से ४९% वाले नकारात्मक स्पंदनों का अर्थ है मध्यम कष्ट, जबकि ३०% से कम होने का अर्थ है कम आध्यात्मिक कष्ट । आध्यात्मिक कष्ट आध्यात्मिक कारणों से होता है जैसे प्रारब्ध, पूर्वजों के कष्ट आदि । आध्यात्मिक संकट का निदान सूक्ष्म स्पंदनों को जानने वाले संतों अथवा साधकों द्वारा किया जा सकता है । बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं । अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं । इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, जहां भाव, वहां भगवान इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |