आध्यात्मिक स्तर घोषित होने पर स्तरानुसार जीव पर होनेवाले परिणाम और उसका अध्यात्मशास्त्र

‘सनातन प्रभात’ के जालस्थल पर पढिए नई लेखमाला !

सनातन के ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों को मिल रहा और समझने में कठिन अपूर्व ज्ञान !

परात्पर गुरु डॉ. आठवले
श्री. निषाद देशमुख

     सनातन संस्था के ज्ञानप्राप्तकर्ता साधकों को विविध विषयों के संदर्भ में ज्ञान मिलता है । कभी-कभी यह ज्ञान ज्ञात होने के लिए कठिन होता है, तो कभी-कभी उसमें व्याप्त कष्टदायक शक्ति के कारण उसे कई वर्षाें तक पढना संभव नहीं होता । ऐसा कुछ होता है, यह पाठकों की समझ में आए; इसके लिए ‘सनातन प्रभात’ एवं ‘सनातन संस्था’ के जालस्थलों पर नई लेखमाला आरंभ कर रहे हैं । स्थान के अभाव में इन लेखों की अनुक्रमणिका पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित कर रहे हैं । विस्तृत लेखों की लिंक लेख के अंत में दी गई है ।

लेख १

ज्ञान-प्राप्तकर्ता : श्री. निषाद देशमुख (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत)

संकलनकर्ता : परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी

अनुक्रमणिका

१. आध्यात्मिक स्तर घोषित करने का महत्त्व

१ अ. आध्यात्मिक स्तर घोषित नहीं किया गया, तो जीव में अप्रकट रूप में शक्ति का कार्यरत रहना

१ आ. आध्यात्मिक स्तर घोषित करने पर आकाशतत्त्व के कारण शक्ति की जागृति होना

१ इ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा निर्मित आध्यात्मिक स्तर की घोषणा करने की कार्यपद्धति के लाभ

२. विशिष्ट आध्यात्मिक स्तर और व्यष्टि एवं समष्टि साधना के अनुसार उससे संलग्न पंचतत्त्वों और उसका शास्त्र

२ अ. विशिष्ट आध्यात्मिक स्तर और व्यष्टि एवं समष्टि साधना के अनुसार उससे संलग्न पंचतत्त्व

२ आ. समष्टि साधना करने पर विशिष्ट आध्यात्मिक स्तर को उच्च स्तर की पंचतत्त्वों की शक्ति कार्यरत होने का कारण

पृथ्वी पर पहली ही बार उपलब्ध हुआ ईश्वरीय ज्ञान !

३. ५०, ६०, ७०, ८० एवं ९० जैसे विविध आध्यात्मिक स्तरों की घोषणा करने पर संबंधित साधकों और संतों पर होनेवाले अच्छे और अनिष्ट परिणाम

३ अ. आध्यात्मिक स्तर घोषित करने पर स्तर के अनुसार व्यष्टि स्तर घोषित करने पर स्तर के अनुसार व्यष्टि एवं समष्टि साधना करनेवाले साधकों और संतों की सूक्ष्मदेहों पर (टिप्पणी) होनेवाले परिणाम

     (टिप्पणी : स्थूलदेह का अर्थ शरीर एवं प्राणदेह (प्राणवहनसंस्था), तो सूक्ष्मदेह का अर्थ मनोदेह (मन), वासनादेह (चित्त), कारणदेह (बुद्धि) एवं महाकारणदेह (अहं)

३ आ. आध्यात्मिक स्तर घोषित करने पर स्तरानुसार व्यष्टि एवं समष्टि साधना करनेवाले साधकों और संतों पर होनेवाली ईश्वरीय कृपा और पाताल में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का अनुपात

३ इ. आध्यात्मिक स्तर की घोषणा करने पर स्तर के अनुसार व्यष्टि एवं समष्टि साधना करनेवाले जीवों पर होनेवाले अन्य परिणाम

४. ५०, ६० एवं ७० जैसे विविध स्तरों की घोषणा होने पर संबंधित बालसाधकों एवं बालसंतों पर होनेवाले अच्छे और अनिष्ट परिणाम

४ अ. आध्यात्मिक स्तर आकाशतत्त्व से संबंधित होने से उसकी घोषणा करने पर उसके होनेवाले परिणामों में बालसाधकों और बालसंतों की आयु के अनुसार बहुत बदलाव न आना

४ आ. बालसाधकों और बालसंतां का स्तर घोषित करने पर उनकी प्राणदेहों पर होनेवाले परिणाम

५. स्तर घोषित करने के उपरांत साधकों, बालसाधकों, संतों और बालसंतों के स्तर में पतन होने का कारण

६. निष्कर्ष

     बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।

इस अनुक्रमणिका का विस्तृत लेख जालस्थल पर उपलब्ध कराया गया है ।

लेख पढने के लिए देखें ‘सनातन प्रभात’ का जालस्थल : https://sanatanprabhat.org/hindi/47498.html