देहली के साधक दंपति श्री. संजीव कुमार (आयु ७० वर्ष) एवं श्रीमती माला कुमार (आयु ६७ वर्ष) सनातन के ११५ वें और ११६ वें समष्टि संतपद पर विराजमान !

धन के त्याग के माध्यम से स्वयं को धर्मकार्य में समर्पित करनेवाले और साधकों के प्रति प्रेमभाव रखनेवाले देहली के साधक दंपति श्री. संजीव कुमार (आयु ७० वर्ष) एवं श्रीमती माला कुमार (आयु ६७ वर्ष) सनातन के ११५ वें और ११६ वें समष्टि संतपद पर विराजमान !

पू. संजीव कुमारजी एवं पू. (श्रीमती) माला कुमारजी

     देहली – गुरुवार ! श्रीगुरु का दिवस ! २३ दिसंबर २०२१ को सनातन के ग्रंथों के संदर्भ में चलाए जा रहे ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ के प्रति श्री गुरुचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु आए देहली और हरियाणा के साधकों पर गुरुदेवजी ने गुरुकृपा की वर्षा की । गुरुदेवजी ने हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी का बहुमूल्य मार्गदर्शन सुनने के उपलक्ष्य में एकत्रित साधकों को देहली के पू. संजीव कुमार एवं पू. (श्रीमती) माला संजीव कुमार, इन २ संतरत्नों की अमूल्य भेंट देकर साधकों का आनंद द्विगुणित किया । इस अनुपम समारोह को अनुभव करने के उपरांत प्रत्येक साधक के मन में यही भाव था, ‘अमोल चीज जो दी गुरु ने, न दे सके भगवान भी !’

     पू. संजीव कुमार देहली के एक सफल उद्योगपति हैं । वे १९९९ से सनातन संस्था के मार्गदर्शन में साधना कर रहे हैं । उनके संतसम्मान समारोह का विस्तृत वृत्तांत यहां प्रकाशित कर रहे हैं ।

हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी द्वारा संतपद पर विराजमान कुमार दंपति के विषय में व्यक्त गौरवोद्गार !

अ. साधकों पर निरपेक्ष प्रीति करना, अखंड कृतज्ञभाव में रहना और जीवन का अध्यात्मीकरण करना पू. संजीव कुमारजी की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति का रहस्य है !

     पू. संजीव भैया एवं पू. (श्रीमती) माला दीदी की विशेषता यह है कि उन्होंने अपने घर को ही आश्रम बनाया । उसके साथ ही ‘आश्रम के साधकों को कोई समस्या तो नहीं है न ?’ और उनकी कैसे सहायता की जा सकेगी ?’, यह विचार रहता है । कई बार परिचितों की अपेक्षा वे साधकों को ही प्रधानता देते हुए दिखाई देते हैं । इससे उनकी साधकों के प्रति प्रीति ध्यान में आती है । उन्होंने अपने व्यवसाय के साथ ही स्वयं के जीवन का भी अध्यात्मीकरण किया है । मध्य में व्यवसाय में उन्हें बहुत हानि उठानी पडी । ‘ऐसी विकट परिस्थिति से केवल गुरुदेवजी की कृपा से ही मैं यथास्थिति में आ सका । इसलिए अब मेरे पास जो कुछ भी है, वह गुरुदेवजी की कृपा से है’, ऐसा उनमें भाव रहता है । वे सदैव अत्यंत कृतज्ञभाव में रहते हैं ।

     परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी जब दैवीय भ्रमण हेतु देहली जाती हैं, उस समय उनमें गुरुदेवजी का रूप देखकर वे संपूर्ण समर्पित होकर उनकी सेवा करते हैं । अध्यात्मप्रसार हेतु उनके घर आनेवाले संतों और साधकों का उन्होंने सहर्ष स्वागत किया । संतों और साधकों के आने पर ‘मैं रामनाथी आश्रम में ही हूं’, ऐसा उनका भाव रहता है ।

आ. वात्सल्यभाव, निर्मलता और गुरुसेवा की लगन से युक्त पू. (श्रीमती) माला कुमार से भी सीखने के लिए मिलता है ।

     वात्सल्यभाव, निर्मलता, गुरुसेवा की लगन आदि गुणों से युक्त पू. (श्रीमती) माला कुमार से भी ये गुण सीखने के लिए मिले । कई बार उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता; परंतु उनके पास सनातन-निर्मित सात्त्विक उत्पाद कोई लेने आ गए, तो वे अपने सभी कष्टों को भूलकर यह सेवा करने के लिए प्रधानता देती हैं । उनका निवास इमारत में तीसरी मंजिल पर है । उसके कारण जिज्ञासुओं को सात्त्विक उत्पादों का लेन-देन करने में कोई कठिनाई न हो; इसके लिए उन्होंने बरामदे में एक ‘पुली’ (रस्सी से बांधी हुई थैली से निचली मंजिल पर सामग्री भेजने की व्यवस्था) भी बना ली है । उसके कारण सामग्री को ऊपर से नीचे भेजना और जिज्ञासुओं से पैसे लेना सुविधाजनक हुआ । इससे पू. दीदी की समस्याओं में न फंसकर उसका समाधान निकालने की और सेवा करने की लगन दिखाई देती है । उनमें विद्यमान ऐसे अनेक गुणों के कारण उनकी ओर देखकर साधकों को विविध अनुभूतियां हुईं ।

त्यागी वृत्ति और निरंतर कृतज्ञभाव में स्थित देहली के श्री. संजीव कुमार सनातन के ११५ वें और सेवाभावी वृत्ति एवं निरंतर आनंदावस्था में स्थित श्रीमती माला कुमार ११६ वें संतपद पर विराजमान !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

     ‘देहली के साधक दंपति श्री. संजीव कुमार (आयु ७० वर्ष) एवं श्रीमती माला संजीव कुमार (आयु ६७ वर्ष) वर्ष १९९९ से साधना कर रहे हैं । श्री. संजीव कुमार एक प्रतिष्ठित एवं सफल उद्योगपति हैं ।

     अध्यात्म में सबसे महत्त्वपूर्ण होता है त्याग ! श्री. संजीव कुमार को साधना ज्ञात होने पर उन्होंने त्याग का महत्त्व समझ लिया और धन का त्याग करने का हर संभव अवसर ढूंढा । साधक, प्रसारकार्य, साथ ही प्रसारकार्य और सेवाकेंद्र के लिए निरपेक्ष वृत्ति से किए गए त्याग से उन्होंने तीव्रगति से अपनी आध्यात्मिक प्रगति करवा ली ।

     श्री. संजीव कुमार एवं श्रीमती माला कुमार, इन दोनों के मन में साधकों के प्रति अत्यंत प्रीति है । समस्त साधक परिवार उन्हें अपना ही लगता है । ये दोनों साधकों का आदरातिथ्य इतने प्रेम से करते हैं कि सेवा के लिए घर-बार छोडकर आए साधकों को वे स्वयं के माता-पिता ही लगते हैं । धर्म एवं अध्यात्मप्रसार का कार्य करनेवाले देहली के साधकों के लिए वे बडा आधारस्तंभ हैं ।

     श्रीमती माला कुमार की विशेषता है उनकी सेवाभावी वृत्ति ! वे प्रत्येक सेवा अत्यंत कलात्मक और सात्त्विक पद्धति से करती हैं । लगन से, उत्साह से और भावपूर्ण पद्धति से सेवा करनेवाली श्रीमती माला कुमार निरंतर आनंदावस्था में रहती हैं ।

     पिछले पौने दो वर्षाें से कोरोना संक्रमण के कारण सर्वत्र भयप्रद वातावरण बना हुआ है । देहली में भी सर्वत्र कोरोना ने हाहाकार मचाया । ऐसी स्थिति में ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के बल पर श्री. संजीव कुमार एवं श्रीमती माला कुमार ने इस प्रतिकूल परिस्थिति से साधना और भाववृद्धि के लिए लाभ उठाया । भावावस्था में रहने के कारण ऐसी आपातकालीन स्थिति में उन्हें कदम-कदम पर ‘जहां भाव, वहां भगवान’ की अनुभूति करना संभव हुआ और इसी काल में इन दोनों की आध्यात्मिक उन्नति तीव्रगति से हुई ।

     इस दंपति ने एकत्रित रूप से साधना का आरंभ किया । वर्ष २०१७ में एक ही दिन इन दोनों का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत हुआ और आज के इस मंगल दिवस पर इन दोनों ने ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर एक ही दिन संतपद भी प्राप्त कर लिया है ।

     निरंतर भावावस्था में रहनेवाले श्री. संजीव कुमार ‘समष्टि संत’ के रूप में सनातन के ११५ वें और निरंतर आनंदावस्था में रहनेवालीं श्रीमती माला संजीव कुमार ‘समष्टि संत’ के रूप में सनातन के ११६ वें संतपद पर विराजमान हुई हैं । उनका संपूर्ण परिवार साधनारत है । उनकी नातीन कु. मिराया (बेटे की बेटी, आयु १० वर्ष) महर्लाेक से पृथ्वी पर जन्मी दैवीय बालिका है । उनकी २ कन्याएं श्रीमती आनंदिता एवं अनन्या, इन दोनों को भी साधना में रुचि है ।

     ‘प्रांजलता, सीखने की वृत्ति और निरपेक्ष वृत्ति से युक्त और निरंतर कृतज्ञभाव में रहनेवाले पू. संजीव कुमारजी एवं पू. (श्रीमती) माला कुमारजी की आगे की प्रगति इसी प्रकार तीव्र गति से होगी, इसके प्रति मैं आश्वस्त हूं ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (२३.१२.२०२१)

संतपद पर विराजमान होने के उपरांत कुमार दंपति द्वारा व्यक्त हृदयस्पर्शी मनोगत

सनातन के मार्गदर्शन में साधना करने के कारण मेरा मन तृप्त हुआ ! – पू. संजीव कुमार

पू. संजीव कुमारजी को भेंटवस्तु देकर उनका सम्मान करते सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी

     मैं प.पू. गुरुदेवजी (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी), श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी, श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी एवं सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करता हूं । जीवन में मुझे ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना ही करनी है । मुझे बचपन से अध्यात्म में रुचि रही है; परंतु सनातन संस्था के मार्गदर्शन में साधना करने के कारण मेरा मन तृप्त हुआ ।

इस प्रगति में हमारा कुछ भी कर्तापन नहीं है ! – पू. (श्रीमती) माला कुमार

पू. (श्रीमती) माला कुमारजी को भेंटवस्तु देकर उनका सम्मान करते सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी

     इस प्रगति में हमारा कुछ भी कर्तापन नहीं है । सबकुछ गुरुदेवजी का ही है । सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी जब से अध्यात्मप्रसार हेतु देहली आए हैं, तब से उन्होंने ‘हम दोनों की साधना में प्रगति हो’, इसके लिए बहुत परिश्रम उठाए । हम पर यह कृपा की; इसलिए मैं परात्पर गुरुदेवजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी, श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करती हूं ।

पू. संजीव कुमारजी के परिजनों द्वारा व्यक्त मनोगत

१. ‘भाव कैसे होना चाहिए ?’, यह पूज्य माता-पिता से सीखने के लिए मिलता है ! – अनन्या कुमार (पू. संजीव कुमार एवं पू. (श्रीमती) माला कुमार की ज्येष्ठ पुत्री)

अनन्या कुमार

     मेरे जीवन में कुछ कठिन प्रसंग आए; परंतु पिताजी मेरा आध्यात्मिक आधार बनकर खडे रहे । वे एक क्षण के लिए भी भावनावश नहीं हुए । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के प्रति उनमें इतना भाव है कि ‘वे देहली आनेवाली हैं’, यह ज्ञात होते ही घर का वातावरण ही बदल जाता है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी द्वारा बताए अनुसार उन्होंने घर पर प्रतिदिन सवेरे अग्निहोत्र करना आरंभ किया है ।

     पिछले सप्ताह में हम सपरिवार रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम गए थे । संपूर्ण यात्रा में हम दोनों बहनें आपस में बातें कर रहे थे; परंतु उसी समय पिताजी विमान में स्थित अन्य यात्रियों को साधना बता रहे थे और मां जपमाला लेकर नामजप कर रही थीं । इस संपूर्ण यात्रा में उनके साथ किसी ने बात नहीं की; परंतु उनके साथ किसी को बातें करनी चाहिए, यह उनकी तनिक भी अपेक्षा नहीं थी । अन्य समय भी मां ‘मैं वृंदावन में ही हूं’, इस भाव में होती है । ‘वह पक्षी कितना सुंदर है’, ‘वह फूल कितना सुंदर है’, ‘ईश्वर ने सभी को कैसे सुंदर बनाया है’, ऐसा वे बताती रहती हैं । मां का स्वभाव खुला है, जिससे सभी आनंदित रहते हैं ।

२. पू. कुमारजी की कनिष्ठ पुत्री श्रीमती आनंदिता दासगुप्ता ने कहा, ‘‘संतों की कोख से मेरा जन्म हुआ’, इसके लिए मुझे कृतज्ञता लग रही है ।’ उन्होंने संगणकीय प्रणाली के माध्यम से इस समारोह का लाभ उठाया ।