‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नमः’ इन नामजपों का तुलनात्मक अध्ययन

‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नमः’ इन नामजपों में ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप में शांति के स्पंदन सबसे अल्प (१० प्रतिशत) तथा ‘ॐ निर्विचार’ नामजप में शांति के स्पंदन सबसे अधिक (२० प्रतिशत) है । शांति के स्पंदनों द्वारा नामजप का निर्गुण स्तर निश्चित होता है । नामजप में जितने शब्द अल्प, उतना उनके निर्गुण स्तर में वृद्धि होती है ।

प्रेमभाव, लगन आदि विविध गुणों के कारण जिज्ञासुओं को साधना हेतु प्रेरित करनेवालीं वाराणसी की श्रीमती सुमती सरोदे (आयु ६० वर्ष) ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

निरंतर सेवारत रहनेवालीं, प्रेमभाव एवं लगन आदि विविध गुणों के कारण जिज्ञासुओं को साधना के लिए प्रेरित करनेवालीं मूलतः महाराष्ट्र के वर्धा की, परंतु वर्तमान में वाराणसी में पूर्णकालीन सेवा करनेवालीं सनातन की साधिका श्रीमती सुमती सरोदे ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हुईं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का साधना के विषय में मार्गदर्शन !

अधिकांश पुरुष कार्य के निमित्त रज-तमप्रधान समाज में रहते हैं । इसका उनपर परिणाम होने से वे भी रज-तमयुक्त होते हैं । इसके विपरीत, अधिकांश स्त्रियां घर में रहती हैं । उनका समाज के रज-तम से संपर्क नहीं होता । इसलिए वे साधना में शीघ्र प्रगति करती हैं ।

दत्तगुरु की काल के अनुसार आवश्यक उपासना

अधिकांश हिन्दुओं को अपने देवता, आचार, संस्कार, त्योहार आदि के विषय में आदर और श्रद्धा होती है; परन्तु अनेक लोगों को अपनी उपासना का धर्मशास्त्र ज्ञात नहीं होता । यह शास्त्र समझकर धर्माचरण उचित ढंग से करने पर अधिक लाभ होता है ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

जब व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता है और उसे देश कल्याण की चिंता नहीं होती, तब समाज एवं देश के मूल्य अथवा गुणवत्ता अल्प होती है । लोग निःस्वार्थी हो और उनमें देश के प्रति आंतरिक प्रेम निर्माण हो, तो वे एक होते हैं तथा देश मजबूत और बलवान होता है ।

समष्टि साधना करने से जीव जन्म-मृत्यु के चक्र से शीघ्र मुक्त हो जाता है ! – पूजनीय नीलेश सिंगबाळ, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृति समिति

हम विज्ञान में इतनी प्रगति कर चुके हैं; परंतु छोटा सा कठिन प्रसंग हमारे जीवन में आने से हम निराश होकर हार मान लेते हैं । लाक्षागृह, चीरहरण, १४ वर्ष का वनवास, अज्ञातवास, इन सभी प्रसंगों से ध्यान में आता है कि जीवन में साधना और ईश्वर के प्रति अखंड विश्वास के बल पर हमारा रक्षण कैसे हो सकता है ।

सीधे ईश्वर से चैतन्य और मार्गदर्शन ग्रहण करने की क्षमता होने से, आगामी ईश्वरीय राज्य का संचालन करनेवाले सनातन संस्था के दैवी बालक !

सनातन संस्था में कुछ दैवी बालक हैं । उनका बोलना आध्यात्मिक स्तर का होता है । आध्यात्मिक विषय पर बोलते हुए उनके बोलने में ‘सगुण-निर्गुण’, ‘आनंद, चैतन्य, शांति’ जैसे शब्द होते हैं । ऐसे शब्द बोलने के पूर्व उन्हें रुककर विचार नहीं करना पडता ।

सनातन की संत श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

प्रत्येक कर्म को नाम से जोडें, तो वह कर्मयोग बन जाता है । नामजप करनेवाले मन को भाव के दृश्य में रमा दिया जाए, तो वह भक्तियोग और मन एवं बुद्धि नामजप के साथ चलने लगे, तो वह ज्ञानयोग होता है ।

सनातन संस्था द्वारा पूरे भारत में ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’

ग्रंथों में सरल भाषा और संस्कृत श्लोकों का यथोचित उपयोग है तथा ये ग्रंथ दिव्य ज्ञानामृत ही हैं । ये ग्रंथ अपने मित्र, परिजन, कर्मचारियों को उपहार स्वरूप देने के लिए भी उपयुक्त हैं ।

सीधे ईश्वर से चैतन्य और मार्गदर्शन ग्रहण करने की क्षमता होने से आगामी ईश्वरीय राज्य का संचालन करनेवाले सनातन संस्था के दैवी बालक !

सनातन संस्था में कुछ दैवी बालक हैं । उनका बोलना आध्यात्मिक स्तर का होता है । आध्यात्मिक विषय पर बोलते हुए उनके बोलने में ‘सगुण-निर्गुण’, ‘आनंद, चैतन्य, शांति’ जैसे शब्द होते हैं । ऐसे शब्द बोलने के पूर्व उन्हें रुककर विचार नहीं करना पडता ।