सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘आध्यात्मिक उन्नति हेतु साधना करने में ‘त्याग’ एक महत्त्वपूर्ण चरण होता है । इसमें तन, मन एवं धन गुरु अथवा ईश्वर को अर्पित करना आवश्यक होता है । अनेक संप्रदाय अपने भक्तों को नाम, सत्संग जैसे सैद्धांतिक विषय सिखाते हैं; परंतु त्याग के विषय में कोई नहीं सिखाता ।